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आपराधिक कानून
CrPC पर PMLA की अधिमान्यता
« »10-Sep-2024
अभिषेक बनर्जी एवं अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय “धारा 50 PMLA और धारा 160/161 CrPC के बीच स्पष्ट विसंगतियों को देखते हुए, धारा 50 PMLA के प्रावधान धारा 71 के साथ धारा 65 के अनुसार लागू होंगे”। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अभिषेक बनर्जी एवं अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2024) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के प्रावधानों के अधीन व्यक्ति को समन भेजने से संबंधित मामले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) पर अधिमान्य होंगे।
अभिषेक बनर्जी एवं अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), प्रतिवादी द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 120 B और 409 और PMLA की धारा 13 (2) के साथ धारा 13 (1) (A) के अधीन अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
- यह आरोप लगाया गया था कि ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL) के पट्टाकृत भूमिक्षेत्रों में ECL के कुछ कर्मचारियों की सक्रिय मिलीभगत से कोयले का अवैध उत्खनन एवं चोरी हो रही है।
- प्रतिवादी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा अपीलकर्त्ताओं को दस्तावेज़ों के साथ व्यक्तिगत उपस्थिति दर्ज कराने के लिये कई समन जारी किये गए, परंतु दोनों अपीलकर्त्ताओं ने समन का अनुपालन नहीं किया।
- प्रतिवादी ने इन समन का उत्तर देते हुए मांगे गए दस्तावेज़ों को एकत्र करने और उनका मिलान करने के लिये चार सप्ताह का समय मांगा। प्रतिवादी को उत्तर के उसी दिन फिर से समन भेजा गया, जिसे उसने दिल्ली उच्च न्यायालय में आपराधिक रिट याचिका के तहत चुनौती दी।
- अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी के पास केवल PMLA की धारा 50 के अधीन समन जारी करने का मूल अधिकार है तथा प्रक्रियात्मक शक्तियों का प्रयोग केवल CrPC के प्रावधानों के अनुसार किया जाना चाहिये।
- अपीलकर्त्ता ने यह भी तर्क दिया कि समन जारी करने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
- प्रतिवादी ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (CMM) के न्यायालय में अपीलकर्त्ता संख्या 2 के विरुद्ध धारा 190 (1) (A) के साथ CrPC की धारा 200 के साथ तथा PMLA की धारा 63 (4) के अधीन शिकायत दर्ज की, जिसमें समन का पालन न करने पर IPC की धारा 174 के अधीन अपराध का आरोप लगाया गया।
- अपीलकर्त्ता संख्या 2 ने सुनवाई की तिथि पर न्यायालय के समक्ष वर्चुअल रूप से उपस्थित होकर व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट का आवेदन मांगा।
- संबंधित मुख्य मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट ने केवल उसी दिन के लिये छूट आवेदन को स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया तथा अपीलकर्त्ता संख्या 2 को आगे की कार्यवाही के लिये व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश दिया।
- उक्त आदेश को अपीलकर्त्ता संख्या 2 द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई।
- अपीलकर्त्ता संख्या 2 द्वारा यह तर्क दिया गया कि उसे दिल्ली में भौतिक रूप से उपस्थित होने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता, बल्कि केवल कोलकाता में ही उपस्थित होने के लिये बाध्य किया जा सकता है, क्योंकि दिल्ली, वाद के स्थान की प्रादेशिक सीमा से बाहर है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ताओं द्वारा दायर दोनों अपीलों को अस्वीकार कर दिया।
- इसके उपरांत दोनों अपीलकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि:
- PMLA की धारा 65 के प्रावधानों में कहा गया है कि जब CrPC और PMLA के प्रावधानों में कोई असंगति होगी तो PMLAलागू होगा।
- धारा 71 के प्रावधानों में कहा गया है कि PMLA का अन्य सभी विधानों पर अधिभावी प्रभाव होगा।
- CrPC पर PMLA की प्रयोज्यता की जाँच करने के लिये CrPC की धारा 4(2) और धारा 5 पर भी विचार किया गया।
- CrPC की धारा 160 पर भी विचार किया गया, जिसमें कहा गया है कि CrPC के प्रावधान उन सभी पहलुओं पर लागू नहीं होंगे जहाँ धन शोधन के मामलों से संबंधित जानकारी प्राप्त की जानी है।
- उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि PMLA की धारा 50 और CrPC की धारा 160 के बीच असंगतताएँ हैं:
- PMLA की धारा 50 लिंग-तटस्थ प्रावधान है, जबकि CrPC की धारा 160 लिंग-तटस्थ प्रावधान नहीं है।
- PMLA की धारा 50 जाँच से संबंधित है, जबकि CrPC की धारा 160 केवल पूछताछ से संबंधित है।
- PMLA की धारा 50 संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत नहीं आती, जबकि CrPC की धारा 160 के तहत एकत्रित साक्ष्य को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, बल्कि CrPC की धारा 162 के साथ पढ़ने पर केवल विशेष उद्देश्य के लिये प्रस्तुत किया जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय ने व्यक्ति को समन भेजने के संबंध में PMLA नियम, 2005 पर भी विचार किया।
- उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि PMLA की धारा 50 के अनुसार:
- खंड (3) इस प्रकार बुलाए गए सभी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत अभिकर्त्ताओं के माध्यम से उपस्थित होने के लिये बाध्य होंगे, जैसा कि ऐसा अधिकारी निर्देश दे, और किसी भी विषय पर सच्चाई बताने के लिये बाध्य होंगे जिसके संबंध में उनकी जाँच की जा रही है या बयान देने और ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिये बाध्य होंगे जिनकी आवश्यकता हो।
- खण्ड (4) के अनुसार प्रत्येक कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही होगी।
- उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि PMLA की धारा 63 के अनुसार:
- खंड (4) में कहा गया है कि जो व्यक्ति जानबूझकर धारा 50 के तहत जारी किसी निर्देश की अवहेलना करता है, उसके विरुद्ध IPC की धारा 174 के अधीन भी कार्यवाही की जा सकती है।
- उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई उपरोक्त टिप्पणियों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने अपीलकर्त्ताओं द्वारा दायर अपीलों को अस्वीकार कर दिया।
PMLA का अवलोकन:
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PMLA की धारा 50 क्या है?
- समन जारी करने, दस्तावेज़ प्रस्तुत करने और साक्ष्य देने आदि के संबंध में प्राधिकारियों की शक्तियाँ।
- इसमें समन जारी करने, दस्तावेज़ प्रस्तुत करने और साक्ष्य देने में प्राधिकारियों की शक्तियों का विवरण दिया गया है।
- यह निदेशक की शक्तियों को खोज एवं निरीक्षण, उपस्थिति सुनिश्चित करने, दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करने के लिये बाध्य करने तथा कमीशन जारी करने जैसे मामलों के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय की शक्तियों के समान मानता है।
- धारा 50(2) निदेशक और अन्य अधिकारियों को PMLA के अधीन किसी भी जाँच या कार्यवाही के दौरान किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार देती है। PMLA नियम, 2005 के नियम 2(p) और नियम 11 में इन शक्तियों को और अधिक स्पष्ट किया गया है।
- धारा 50(3) के अनुसार सभी सम्मनित व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत अभिकर्त्ताओं के माध्यम से उपस्थित होना होगा, जाँच के दौरान सच्चाई बतानी होगी और आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
- धारा 50(4) धारा 50(2) और धारा 50(3) के तहत प्रत्येक कार्यवाही को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 193 और 228 के अनुसार न्यायिक कार्यवाही मानती है।
- धारा 50(5) धारा 50(2) में निर्दिष्ट किसी भी अधिकारी को 2003 के अधिनियम 15 के तहत किसी भी कार्यवाही में उसके समक्ष प्रस्तुत किसी भी रिकॉर्ड को ज़ब्त करने और बनाए रखने की अनुमति देती है। इस शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये सुरक्षा उपाय मौजूद हैं।
अभिषेक बनर्जी एवं अन्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले में क्या मामला संदर्भित है?
- विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और ज़ब्ती का अधिकार प्रवर्तन निदेशालय को दिया गया है।
- यह माना गया कि CrPC की धारा 160 को भी ध्यान में रखा गया, जिसमें कहा गया है कि CrPC के प्रावधान उन सभी पहलुओं पर लागू नहीं होंगे जहाँ धन शोधन के मामलों से संबंधित जानकारी प्राप्त की जानी है।