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सिविल कानून
बिना मुहर वाले मध्यस्थ समझौते की स्थिति
« »30-Aug-2023
स्प्लेंडर लैंडबेस लिमिटेड बनाम अपर्णा आश्रम सोसायटी (Splendor Landbase Ltd v. Aparna Ashram Society) "न्यायालय बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते पर निर्णय लेने के लिये स्टांप संग्रहकर्त्ता को समयबद्ध निर्देश दे सकता है।" न्यायमूर्ति सचिन दत्ता |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
- न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि न्यायालय बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते पर निर्णय लेने के लिये स्टांप संग्रहकर्त्ता को समयबद्ध निर्देश दे सकता है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी स्प्लेंडर लैंडबेस लिमिटेड बनाम अपर्णा आश्रम सोसायटी (Splendor Landbase Ltd v. Aparna Ashram Society) के मामले में दी।
पृष्ठभूमि
- दिल्ली उच्च न्यायालय बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौतों के मुद्दे पर याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था।
- न्यायालय इस सवाल पर विचार कर रहा थी कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996 (A&C Act) की धारा 11(13) के तहत वैधानिक अधिदेश को एन. एन. ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड और अन्य (2021) के फैसले के साथ कैसे सुसंगत बनाया जा सकता है।
- उपरोक्त फैसले में उच्चतम न्यायालय ने न्यायालयों को मध्यस्थता समझौते से संबंधित मामले से निपटने के दौरान भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के अनुरूप कार्य करने का निर्देश दिया।
न्यायालय की टिप्पणी
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996 (A&C Act) की धारा 11 के तहत कार्यवाही में बिना मुहर लगे/अपर्याप्त मुहर लगे मध्यस्थता समझौते को अनिवार्य रूप से जब्त किया जाना आवश्यक है।
मध्यस्थता समझौता
- मध्यस्थता को कानूनी रूप से मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996 (A&C Act) द्वारा शासित न्यायालय के बाहर निपटान प्रक्रिया के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत, एक मध्यस्थता समझौते को धारा 7 के तहत पार्टियों द्वारा अपने मौजूदा या भविष्य के विवादों को मध्यस्थता के लिये प्रस्तुत करने के समझौते के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह समझौता अलग दस्तावेज़ के रूप में हो सकता है या पार्टियों के बीच मूल अनुबंध के भीतर एक खंड के रूप में शामिल किया जा सकता है।
- ऐसा मध्यस्थता समझौता लिखित रूप में होना चाहिये।
- इस अधिनियम की धारा 11 मध्यस्थों की नियुक्ति से संबंधित है।
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(2) के तहत, पार्टियाँ मध्यस्थ या मध्यस्थों को नियुक्त करने की प्रक्रिया पर सहमत होने के लिये स्वतंत्र हैं।
- जब किसी विवाद में शामिल पक्ष मध्यस्थ की नियुक्ति पर सहमत नहीं हो पाते हैं, तो मध्यस्थता की नियुक्ति की शक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित व्यक्ति पर स्थानांतरित हो जाती है।
बिना मुहर लगा मध्यस्थता समझौता
- यह अधिनियम विशेष रूप से यह नहीं बताता है कि बिना मुहर लगा हुआ समझौता शून्य या अप्रवर्तनीय है।
- इसके बजाय, यह रेखांकित करता है कि अपेक्षित स्टांप शुल्क और स्टांप में देरी के लिये लगाए गए किसी भी जुर्माने के भुगतान पर एक बिना स्टांप वाला समझौता लागू किया जा सकता है।
- एन. एन. ग्लोबल मर्केंटाइल मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बिना मुहर लगे मध्यस्थता समझौते को अप्रवर्तनीय अनुबंध माना जाएगा।
- न्यायालय ने इस मामले में यह भी कहा कि स्टाम्प अधिनियम की धारा 35, जो किसी भी बिना मुहर लगे या अपर्याप्त मुहर वाले दस्तावेज़ को साक्ष्य में अस्वीकार्य बनाती है, वही सिद्धांत मध्यस्थता समझौतों पर लागू होता है।
ऐतिहासिक मामले
- मैसर्स एस. एम. एस. टी एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैसर्स चांदमारी टी कंपनी लिमिटेड (2011) (M/S Sms Tea Estates P.Ltd vs M/S Chandmari Tea Co.P.Ltd (2011)
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब तक लिखत के संबंध में देय स्टांप शुल्क और जुर्माने का भुगतान नहीं किया जाता, तब तक न्यायालय लिखत पर कार्रवाई नहीं कर सकता है।
- इसका तात्पर्य यह है कि न्यायालय उस मध्यस्थता समझौते पर भी कार्रवाई नहीं कर सकता है, जो उस दस्तावेज़ का एक हिस्सा है।
- गरवारे वॉल रोपर्स लिमिटेड बनाम कोस्टल मरीन कंस्ट्रक्शन (2019):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि, जब एक मध्यस्थता खंड "अनुबंध में" शामिल होता है, तो यह महत्वपूर्ण है कि समझौता केवल तभी अनुबंध बनता है जब यह कानून द्वारा लागू करने योग्य हो।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि स्टाम्प अधिनियम के तहत, ऐसा समझौता एक अनुबंध नहीं बनता है, अर्थात्, यह कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं है, जब तक कि इस पर विधिवत मुहर न लगाई जाए।
- इसलिये, किसी समझौते में मध्यस्थता खंड तब अस्तित्व में नहीं होगा जब यह कानून द्वारा लागू करने योग्य न हो।
कानूनी प्रावधान
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11(13) में कहा गया है कि, मध्यस्थ या मध्यस्थों की नियुक्ति के लिये इस धारा के तहत किये गए आवेदन का निपटारा उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय या ऐसे न्यायालय द्वारा नामित व्यक्ति या संस्था द्वारा किया जाएगा। ऐसे मामले को यथासंभव शीघ्रता से निपटाया जाएगा और विपरीत पक्ष को नोटिस की तामील की तारीख से साठ दिनों की अवधि के भीतर मामले को निपटाने का प्रयास किया जाएगा।