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आपराधिक कानून

चोरी की संपत्ति पर कब्ज़ा

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 26-Feb-2025

हीरालाल बाबूलाल सोनी बनाम महाराष्ट्र राज्य 

“एक बार जब निचले न्यायालयों ने पाया कि जब्त की गई सोने की छड़ें, वही सोने छड़ें नहीं हैं, तो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 411 के अधीन दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती।” 

न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 411 (भारतीय न्याय संहिता की धारा 317) के अधीन चोरी की गई संपत्ति पर कब्ज़े के संबंध में विधि निर्धारित की।  

  • उच्चतम न्यायालय ने हीरालाल बाबूलाल सोनी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) के मामले में यह निर्णय सुनाया। 

हीरालाल बाबूलाल सोनी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) वाद की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला फर्जी टेलीग्राफिक ट्रांसफर के माध्यम से कपट और उसके पश्चात् विजया बैंक, नासिक शाखा, महाराष्ट्र में 6,70,00,000/- रुप के निकासी से संबंधित था। 
  • 6 फरवरी 1997 को कूटरचित दस्तावेज़ों का प्रयोग करके ग्लोब इंटरनेशनल नामक एक काल्पनिक फर्म के लिये एक बैंक खाता खोला गया था। 
  • अप्रैल और अगस्त 1997 के बीच, इस खाते में कुल 6,70,00,000/- रु. के कई कपटपूर्ण वाले टेलीग्राफिक ट्रांसफर इस खाते में जमा किये गए और बाद में निकाल लिये गए। 
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने पाया कि अधिकांश डिमांड ड्राफ्ट मेसर्स चेनाजी नरसिंहजी (M/s. CN) को सोने की छड़ें खरीदने के लिये जारी किये गए थे, जिन्हें अभियुक्त नंबर 3 (नंदकुमार बाबूलाल सोनी) को सौंप दिया गया था। 
  • 1 जून 2001 को, अभियुक्त नंबर 3 की दुकान की तलाशी में 205 सोने की छड़ें और अन्य दस्तावेज जब्त किये गए। 
  • विचारण न्यायालय ने अभियुक्त नंबर 1 (एस.के. शीनप्पा राय), 2 (देवदास शेट्टी) और 3 (नंदकुमार बाबूलाल सोनी) को विभिन्न अपराधों के लिये दोषी ठहराया, किंतु निर्देश दिया कि 205 सोने की छड़ें अभियुक्त नंबर 3 को वापस कर दी जाएं 
  • उच्च न्यायालय ने अभियुक्त नंबर 1 और 2 की दोषसिद्धि को पलट दिया, किंतु अभियुक्त नंबर 3 की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। न्यायालय ने अभियुक्त नंबर 3 को सोने की छड़ें वापस करने के विचारण न्यायालय के आदेश को भी रद्द कर दिया और उन्हें जब्त करने का आदेश दिया। 
  • बाद में अभियुक्त नंबर 3 ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए और सोने की छड़ें वापस करने की मांग करते हुए आपराधिक अपील दायर की, और हीरालाल बाबूलाल सोनी और विजया बैंक ने भी सोने की छड़ें वापस करने की मांग की। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • वर्तमान तथ्यों में अभियोजन पक्ष ने अपराध के घटित होने को सिद्ध करने के लिये भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 411 (भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 317) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 106 (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 109) का सहारा लिया 
  • इस मामले में अपीलकर्त्ता/अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत बचाव यह था कि: 
    • सबसे पहले, संपत्ति का पता लगाने में चार वर्ष का विलंब हुआ 
    • दूसरे, अपीलकर्त्ता/अभियुक्त स्वयं जौहरी है। 
    • तीसरे, चिह्नों में अंतर के कारण सोने की छड़ें चोरी की संपत्ति साबित नहीं होती हैं। 
  • न्यायालय ने पाया कि मामले के तथ्यों में अभियोजन पक्ष जब्त किये गए सोने की पहचान साबित करने में असफल रहा है, क्योंकि यह वही सोना है जिसे मेसर्स सीएन ने मेसर्स ग्लोब इंटरनेशनल को विक्रय किया था। 
  • इसके अतिरिक्त, यह कहा गया कि संपत्ति की बरामदगी में 4 वर्ष के विलंब के कारण पहचान का आधार ही ध्वस्त हो गया था और इसलिये गलत पहचान की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी देखा कि वर्तमान मामले के तथ्यों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 को लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि अभियोजन पक्ष अपने प्रारंभिक दायित्त्व का निर्वहन करने में असफल रहा है। 
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के संबंध में न्यायालय ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 केवल तभी लागू होती है जब अभियोजन पक्ष उन तथ्यों को स्थापित करने में सक्षम होता है जिनसे एक उचित निष्कर्ष  निकाला जा सकता है कि कुछ तथ्य हैं जो विशेष रूप से अभियुक्त के ज्ञान में हैं।  
  • जहाँ मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है, यदि अभियुक्त भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अधीन भार के निर्वहन में उचित स्पष्टीकरण देने में असफल रहता है, तो ऐसी असफलता परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला में एक अतिरिक्त कड़ी प्रदान कर सकती है। 
  • यद्यपि, न्यायालय ने कहा कि वर्तमान तथ्यों में इस प्रावधान को लागू नहीं किया जा सकता है। 
  • इसलिये, न्यायालय ने कहा कि जब्त की गई संपत्ति की चोरी की संपत्ति होने की पहचान स्थापित नहीं हुई है और इसलिये विजया बैंक द्वारा प्रस्तुत अपील खारिज कर दी गई। 
  • इसलिये, न्यायालय ने सोना वापस करने की मांग करने वाली हीरालाल बाबूलाल सोनी की अपील को खारिज कर दिया। 

चोरी की संपत्ति रखने का अपराध क्या है? 

  • चुराई हुई संपत्ति का अपराध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 410 में सम्मिलित था। यह अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 317 में सम्मिलित है। 
  • दोनों उपबंधों का तुलनात्मक विश्लेषण इस प्रकार है 

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 

धारा 410: चुराई हुई संपत्ति- 

वह संपत्ति, जिसका कब्ज़ा चोरी द्वारा, या उद्दापन द्वारा या लूट द्वारा अंतरित किया गया है, और वह संपत्ति, जिसका आपराधिक दुर्विनयोग किया गया है, या जिसके विषय में आपराधिक न्यासभंग किया गया है “चुराई हुई संपत्ति” कहलाती है, चाहे वह अंतरण या वह दुर्विनियोग या न्यासभंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहरकिंतु यदि ऐसी संपत्ति तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुँच जाती है, जो उसके कब्जे के लिये वैध रूप से हकदार है, तो वह चुराई हुई संपत्ति नहीं रह जाती। 

धारा 317 (1): 

वह संपत्ति, जिसका कब्ज़ा चोरी द्वारा, या उद्दापन द्वारा या लूट द्वारा अंतरित किया गया है, और वह संपत्ति, जिसका आपराधिक दुर्विनयोग किया गया है, या जिसके विषय में आपराधिक न्यासभंग किया गया है “चुराई हुई संपत्ति” कहलाती है, चाहे वह अंतरण या वह दुर्विनियोग या न्यासभंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहर, किंतु यदि ऐसी संपत्ति तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुँच जाती है, जो उसके कब्जे के लिये वैध रूप से हकदार है, तो वह चुराई हुई संपत्ति नहीं रह जाती। 

धारा 411: चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना –  

जो कोई भी किसी चुराई हुई संपत्ति को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुराई हुई संपत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, या रखेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

धारा 317 (2):  

 

जो कोई भी किसी चुराई हुई संपत्ति को, यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुराई हुई संपत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, या रखेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। 

धारा 412: डकैती के दौरान चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना  

जो कोई ऐसी चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखेगा, जिसके कब्जे के विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डकैती द्वारा अंतरित की गई है, अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके संबंध में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डाकुओं की टोली का है या रहा है, ऐसी संपत्ति, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा। 

धारा 317 (3):  

जो कोई ऐसी चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखे रहेगा, जिसके कब्जे के विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डकैती द्वारा अंतरित की गई है, अथवा किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके संबंध में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह डाकुओं की टोली का है या रहा है, ऐसी संपत्ति, जिसके विषय में वह यह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है कि चुराई हुई है, बेईमानी से प्राप्त करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने का भी, दायी होगा। 

धारा 413: चुराई हुई संपत्ति का अभ्यासतः व्यापार करना-  

जो कोई ऐसी संपत्ति, जिसके संबंध में, वह यह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, अभ्यासतः प्राप्त करेगा, अभ्यासतः उसमें व्यवहार करेगा वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 

धारा 317 (4):  

जो कोई ऐसी संपत्ति, जिसके संबंध में, वह यह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, अभ्यासतः प्राप्त करेगा, अभ्यासतः उसमें व्यवहार करेगा वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से का भी दायी होगा। 

धारा  414: चुराई हुई संपत्ति का अभ्यासत: व्यापार करना- 

जो कोई ऐसी संपत्ति को छिपाने में, या व्ययनित करने में, या इधर-उधर करने में स्वेच्छया सहायता करेगा, जिसके विषय में वह यह जानता है या वश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा 

धारा 317 (5): 

 

जो कोई ऐसी संपत्ति को छिपाने में, या व्ययनित करने में, या इधर-उधर करने में स्वेच्छया सहायता करेगा, जिसके विषय में वह यह जानता है या वश्वास करने का कारण रखता है कि वह चुराई हुई संपत्ति है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा 

  •  भारतीय दण्ड संहिता की धारा 411 के अधीन आरोप साबित करने के लिये अभियोजन पक्ष का यह कर्त्तव्य है कि वह साबित करे कि 
    • चोरी की गई संपत्ति अभियुक्त के कब्जे में थी। 
    • अभियुक्त के कब्जे में आने से पूर्व अभियुक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य लोगों के पास संपत्ति थी। 
    • अभियुक्त को ज्ञात था कि संपत्ति चुराई हुई संपत्ति है।