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सिविल कानून

साम्या एवं निष्पक्षता का सिद्धांत

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 05-Aug-2024

मारुती ट्रेडर्स बनाम इट्राॅन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 

"किसी प्रस्ताव की स्वीकृति पूर्ण, बिना किसी शर्त के होनी चाहिये तथा उसे किसी सामान्य एवं उचित तरीके से व्यक्त किया जाना चाहिये"।

न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मारुति ट्रेडर्स बनाम इट्राॅन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले में माना है कि संविदा की शर्तें वाणिज्यिक मामलों में साम्या एवं निष्पक्षता के सिद्धांत को पीछे छोड़ देंगी।

मारुति ट्रेडर्स बनाम इट्राॅन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता को प्रतिवादी द्वारा छत्तीसगढ़ में घरेलू, थोक जल मीटर एवं सहायक उपकरण के लिये एक गैर-अनन्य डीलर के रूप में कार्य करने के लिये अधिकृत किया गया था। 
  • दस्तावेज़  की कीमत एवं मीटर के निर्माण से संबंधित विशिष्टताओं के संबंधित सभी शर्तों को पक्षों के मध्य सुलझा लिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने दावा किया कि दोनों पक्षों के मध्य एक अंतर्निहित समझ थी कि याचिकाकर्त्ता ग्राहकों से ऐसी कीमत वसूल सकता है जिसमें प्रतिवादी द्वारा तय की गई कीमत से अधिक शुद्ध लाभ निहित हो। 
  • याचिकाकर्त्ता ने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी ने दूसरों को डीलरशिप अधिकार दिये जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्त्ता को क्षति कारित हुई।
  • याचिकाकर्त्ता ने यह भी तर्क दिया कि जिन पक्षों को प्रतिवादी ने डीलरशिप अधिकार दिये हैं, वे प्रारंभ में याचिकाकर्त्ता के संपर्क में थे, जो उनके संविदा का उल्लंघन है। 
  • प्रतिवादी ने तर्क दिया कि पक्षों के मध्य ऐसा कोई बाध्यकारी करार नहीं है कि प्रतिवादी सीधे बाजार में पानी के मीटर नहीं विक्रय कर सकता।
  • प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि पुनर्विक्रेता संविदा के खंड 2.01 में उन्हें सीधे विक्रय करने एवं अन्य पुनर्विक्रेताओं को नियुक्त करने की अनुमति दी गई थी, जो उल्लंघन नहीं था। 
  • विवाद के कारण पक्षों के मध्य मध्यस्थता की कार्यवाही संपन्न हुई तथा प्रतिवादी के पक्ष में पंचाट पारित किया गया। 
  • पंचाट से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 (A&C) की धारा 34 की परिधि का अवलोकन किया। 
  • न्यायालय ने विभिन्न मामले संबंधी विधियों का हवाला देते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि मध्यस्थ अधिकरण के निर्णयों में न्यायालय के हस्तक्षेप का दायरा केवल A&C की धारा 34 के अंतर्गत दिये गए प्रावधानों तक ही सीमित होना चाहिये। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि जब लोक नीति, सिद्धांतों एवं विधियों को कोई हानि होती है, तभी न्यायालय पंचाटों के विषय में हस्तक्षेप कर सकता है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्त्ता प्रतिवादी द्वारा उल्लंघन को सिद्ध करने में विफल रहा क्योंकि भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 10 एवं धारा 7 के अनुसार पुनर्विक्रेता करार से पहले पक्षों के मध्य ऐसा कोई संविदा नहीं था जो याचिकाकर्त्ता के दावों को स्वीकार कर सके।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि वाणिज्यिक संविदाओं में साम्या लागू नहीं होगी क्योंकि यह संविदाओं की शर्तों द्वारा सख्ती से शासित होती है तथा राहत केवल विधि के अंतर्गत दिये गए अधिकारों के आधार पर ही दी जा सकती है। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने पंचाट को सही पाया तथा याचिका को खारिज कर दिया।

साम्या क्या है?

  • यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अंतर्गत न्याय का एक रूप है। 
  • साम्या, आवश्यकता पड़ने पर अच्छे विवेक का प्रयोग करके निष्पक्षता एवं न्याय सुनिश्चित करने का एक तरीका है। 
  • साम्या की अवधारणा तर्कसंगतता, अनुचित कार्यों को चुनौती देने एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विचारों का पूरक है।
  • साम्या मुख्य रूप से उचित प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करती है तथा अनुचित एवं अन्यायपूर्ण प्रथाओं पर अंकुश लगाती है। 
  • साम्या संविदाओं के विनिर्दिष्ट पालन को सुनिश्चित करती है, न्यायसंगत रोक को लागू करती है तथा संविदात्मक विवादों के मामलों में अनुचित प्रभाव के मामलों में न्यायसंगत राहत प्रदान करती है। 
  • साम्या विधिक सूत्र पर कार्य करती है "साम्या बिना उपाय के दोषपूर्ण कृत्य सहती है" जिसका अर्थ है कि साम्या तब भूमिका में आती है जब विधि में कोई कमी होती है।

साम्या एवं समानता में क्या अंतर है?

साम्या

समानता

व्यक्तिगत साम्या पर ध्यान केंद्रित करता है।

सभी के बीच समानता पर ध्यान केंद्रित करता है।

यह आवश्यकता के आधार पर संसाधनों का वितरण है।

यह सभी लोगों के लिये संसाधनों का वितरण है।

यह समानता का साधन है।

यह समानता का परिणाम है

यह निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।

यह एकरूपता सुनिश्चित करता है।

साम्या, विधि का द्वितीयक स्रोत कैसे है?

  • साम्या न तो प्रथागत विधियों से ली गई है तथा न ही सांविधिक विधियों से। यह चांसरी न्यायालयों में ब्रिटिश विधियों द्वारा विवेक पर आधारित न्यायिक पूर्वनिर्णय से ली गई है।
  • इंग्लैंड में विशेष न्यायालयों की स्थापना "साम्या न्यायालयों" के रूप में की गई थी, जो साम्या के सिद्धांत को लागू करके विवादों को हल करने के लिये स्थापित किये गए थे, जहाँ सामान्य विधि लागू नहीं किया जा सकता है। 
  • यह उन विवादों का समाधान प्रदान करता है, जहाँ सामान्य विधि उचित रूप से उपाय नहीं दे सकता है। 
  • साम्या निष्पक्षता एवं न्याय सुनिश्चित करने के लिये असंहिताबद्ध नियमों का एक समूह है।

निष्पक्षता का सिद्धांत क्या है?

  • निष्पक्षता न्याय का साधन है। 
  • निष्पक्षता का सिद्धांत किसी भी मनमाने या अनुचित व्यवहार को रोकने के लिये विधि की उचित प्रक्रिया में प्रक्रियागत निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। 
  • यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय सुनाने वाला या पक्षों के मध्य विवाद को सुलझाने के लिये उत्तरदायी तीसरा पक्ष निष्पक्ष होना चाहिये।
  • निष्पक्षता का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि नियमों या विधियों को इस तरह से लागू किया जाना चाहिये कि परिणाम न्यायसंगत, निष्पक्ष एवं साम्यापूर्ण हो। 
  • निष्पक्षता का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन करके न्याय के लक्ष्यों को पूरा करना है।