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सिविल कानून

निजता का अधिकार वंशानुगत नहीं हैं

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 13-Aug-2023

चर्चा में क्यों?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के जीवन पर आधारित कथित फिल्म के आगे प्रसारण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
  • मुकदमे में फिल्म के आगे प्रसारण पर स्थायी निषेधाज्ञा की प्रार्थना की गई।
  • न्यायालय ने कृष्ण किशोर सिंह बनाम सरला ए. सरावगी और अन्य के मामले में टिप्पणियाँ कीं।

पृष्ठभूमि

  •  यह मुकदमा दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (SSR) के जीवन पर आधारित फिल्म "न्याय: द जस्टिस" (“Nyay: The Justice”) के प्रसारण के संबंध में है, जो जून 2021 में ओटीटी प्लेटफॉर्म लपालप (OTT platform Lapalap) पर रिलीज हुई थी।
  •  इस मुकदमे में प्रतिवादियों और अन्य सभी को वादी (SSR के पिता) की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी परियोजना या फिल्म में अभिनेता के नाम, कैरिकेचर जीवन शैली का उपयोग करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा आदेश की मांग की गई।
  •  वादी ने आरोप लगाया कि ऐसा कोई भी प्रयास अभिनेता के निजता के अधिकारों का उल्लंघन करेगा और जनता के मन में भी धोखा पैदा करेगा।
    •  मुकदमे में जिन अधिकारों पर विवाद किया गया है उनमें निजता का अधिकार, प्रचार का अधिकार और अभिनेता के व्यक्तित्व के अधिकार शामिल हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • पीठ ने कहा कि वाद पत्र में बताये गये निजता के अधिकार अभिनेता के लिये में वंशानुगत अधिकार नहीं हैं। वे अभिनेता की मृत्यु के साथ ही खत्म हो गये इसलिये वादी उन पर दावा नहीं कर सकता।
  • आम व्यक्ति और सेलिब्रिटी के बीच समानता को बढ़ावा देते हुये, अदालत ने कहा कि कानून खुद को "सेलिब्रिटी संस्कृति को बढ़ावा देने का माध्यम" नहीं बनने दे सकता है और किसी के व्यक्तित्व से निकलने वाले अधिकार सभी के लिये उपलब्ध होंगे, न कि केवल सेलिब्रिटी के लिये।

कानूनी प्रावधान

निजता का अधिकार

  • निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया है जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करता है।
  • एम. पी. शर्मा बनाम सतीश चंद्रा (1954) और खड़क सिंह बनाम भारत संघ (1962) मामले में न्यायालय ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।
  • हालाँकि, अदालत ने खड़क सिंह बनाम भारत संघ (1962) मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) अवशिष्ट व्यक्तिगत अधिकारों का भंडार है और निजता के सामान्य कानून के अधिकार को मान्यता देता है।
  • न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) के मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
  • उपर्युक्त फैसले ने डेटा की सुरक्षा के लिये एक अलग कानून के लिए धर्मयुद्ध को जन्म दिया।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में डिजिटल निजी डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) विधेयक को 2023 के आगामी मानसून सत्र में संसद में पेश करने की मंजूरी दे दी है।

स्थायी निषेधाज्ञा

  •  निषेधाज्ञा अदालत द्वारा किया गया एक ऐसा उपाय होती है जो किसी गलत काम को करने या पहले से ही शुरू किये गये गलत कार्य को जारी रखने पर रोक लगाता है।
  •  स्थायी निषेधाज्ञा अदालत के आदेश और मामले के तथ्यों और गुणों की जांच के बाद दी जाती है।
  •  इसे सतत निषेधाज्ञा (perpetual injuction) के रूप में भी जाना जाता है।
  •  स्थायी निषेधाज्ञा विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 38 से 42 द्वारा शासित होती हैं।
  •  इसका प्रमुख उद्देश्य निर्णायक और दीर्घकालिक राहत देना है