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आपराधिक कानून

विवाह करने का वचन

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 09-Apr-2025

गोवा राज्य बनाम XXX 

यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी सम्मति 'धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह करने के वचन पर आधारित थी, क्योंकि पक्षकार पहले से ही विधिक रूप से विवाहित थे। 

न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता 

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति निवेदिता पी मेहता की की खंडपीठ ने कहा कि यदि विवाह विधिक रूप से पंजीकृत है तो तो पति के विरुद्ध इस आधार पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता कि उसने प्रथाओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह का मिथ्या वचन किया था। 

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गोवा राज्य बनाम XXX (2025) के वाद में यह निर्णय दिया 

गोवा राज्य बनाम XXX (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के अधीन दायर की गई वर्तमान याचिका में याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 और 420 के अधीन दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की गई है। 
  • याचिकाकर्त्ता का विवाह प्रतिवादी संख्या 3 से हुआ था और उनके बीच विवाह सिविल रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकृत था। 
  • इस बात पर विवाद नहीं था कि विवाह रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं हुआ था। 

  • याचिकाकर्त्ता का मामला यह था कि यह विवाह याचिकाकर्त्ता के पिता द्वारा उस पर डाले गए दबाव का परिणाम था। 
  • इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्त्ता ने यह भी दावा किया है कि उसे प्रतिवादी 3 और दो अन्य व्यक्तियों के बीच साझा किये गए कुछ परेशान करने वाले संदेश मिले हैं। 
  • 2 जुलाई 2024 को याचिकाकर्त्ता ने विवाह को रद्द करने की मांग करते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन पणजी के न्यायालय में वैवाहिक याचिका दायर की। 
  • प्रतिवादी संख्या 3 ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375, 376 और 420 के अधीन अपराध करने का आरोप लगाते हुए परिवाद दर्ज किया 
  • यह उपरोक्त FIR है जिसे याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय के समक्ष रद्द करने की प्रार्थना की है।  

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 90 यह निर्धारित करती है कि सम्मति क्या होती है 
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 90 में उपबंध है कि यदि तथ्य के भ्रम के अधीन  कोई सम्मति प्राप्त की जाती है, तो वह सम्मति नहीं है।  
    • यदि कोई महिला विवाह के मिथ्या वचन पर लैंगिक संबंध बनाती है तो उसकी सम्मति “तथ्य के भ्रम” पर आधारित होती है और ऐसा लैंगिक कृत्य बलात्संग के समान होगा। 
  • न्यायालय ने कहा कि विवाह का मिथ्या वचन साबित करने के लिये यह साबित करना आवश्यक है कि वचन करते समय अभियुक्त का आशय परिवादकर्त्ता को प्रवंचना देने का था। 
  • यह प्रवंचना ऐसी होनी चाहिये जिससे प्रेरित होकर परिवादकर्त्ता ने अभियुक्त के साथ लैंगिक संबंध बनाए हों।  
  • वर्तमान तथ्यों में प्रतिवादी को लैंगिक संबंध बनाने से पूर्व अपने और याचिकाकर्त्ता के बीच विधिक रूप से पंजीकृत विवाह के बारे में पता था। 
  • इसके अतिरिक्त, प्रतिवादी ने यह भी स्वीकार किया कि उनके विवाह विधिक पंजीकरण के पश्चात् दोनों पक्षकारों ने कई अवसरों पर आपसी सहमति से सहवास किया। 
  • इससे पता चलता है कि प्रतिवादी को विवाह के बंधन के बारे में पता था और उसने जानबूझकर सहमति से लैंगिक संबंध बनाने का फैसला किया। 
  • न्यायालय ने आगे दोहराया कि “विवाह करने का मिथ्या वचन” और “विवाह करने का वचन-भंग” के बीच अंतर है। 
  • वर्तमान तथ्यों में न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ताओं के कार्यों की व्याख्या केवल विवाह करने के वचन-भंग के रूप में की जा सकती है क्योंकि उसने प्रतिवादी के अन्य पुरुषों के साथ संबंधों का पता चलने के पश्चात् धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार उनके विवाह करने से इंकार कर दिया।  
  • इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान तथ्यों में अभियुक्त के विरुद्ध बलात्संग और विवाह के मिथ्या वचन के आधार पर छल का अपराध स्थापित नहीं होता है। 
  • इस प्रकार, न्यायालय ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया और FIR को रद्द कर दिया। 

विवाह करने का मिथ्या वचन करने का अपराध क्या है? 

  • भारतीय दण्ड संहिता में ऐसा कोई स्पष्ट अपराध नहीं है। यद्यपि, भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 69 में इस तरह के अपराध का उल्लेख किया जा सकता है। 
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 69 में प्रवंचनापूर्ण साधनों, आदि का प्रयोग करके मैथुन करने को उपबंधित किया गया है। 
    • जो कोई प्रवंचनापूर्ण साधनों द्वारा या किसी महिला को विवाह करने का वचन देकर, उसे पूरा करने के किसी आशय के बिना, उसके साथ मैथुन करता है, ऐसा मैथुन बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता है, तो वह दोनों में से किसी भाँति के ऐसी अवधि के कारावास से दण्डनीय होगा, जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने के लिये भी दायी होगा। 
    • स्पष्टीकरण- "प्रवंचनापूर्ण साधनों" में, नियोजन या प्रोन्नति, या पहचान छिपाकर विवाह करने के लिये, उत्प्रेरण या उनका मिथ्या वचन, सम्मिलित है।