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आपराधिक कानून

POCSO अधिनियम के तहत कार्यवाही को रद्द करना

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 19-Dec-2024

अखिल मोहनन बनाम केरल राज्य

POCSO अधिनियम के तहत गंभीर अपराधों से जुड़ी कार्यवाही को पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।”

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन की पीठ ने कहा कि POCSO अधिनियम के तहत गंभीर अपराधों से जुड़ी कार्यवाही को पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।      

  • केरल उच्च न्यायालय ने अखिल मोहनन बनाम केरल राज्य (2024) मामले में यह निर्णय सुनाया।

अखिल मोहनन बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि पीड़िता की आयु 17 वर्ष है और B.Sc रसायन विज्ञान की पढ़ाई के दौरान उसकी अभियुक्त से पहचान हुई थी।
  • अभियुक्त ने पीड़िता से विवाह का वचन किया था।
  • 14 फरवरी, 2021 को जब पीड़िता के माता-पिता अपने काम पर गए हुए थे, तो अभियुक्त पीड़िता के घर आया।
  • वह आइसक्रीम लेकर पीड़िता के घर पहुँचा और उसके बाद उसे यौन संबंध बनाने के लिये मजबूर किया।
  • उसने विवाह के वचन के प्रति पीड़िता के प्रतिरोध को नज़रअंदाज़ करते हुए उसके साथ ज़बरदस्ती यौन संबंध बनाए।
  • उसने बाद की तिथियों में भी यही जारी रखा।
  • अभियोजन पक्ष ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 450, 376 (2) (n), 354, 354A (1) (i), 354D (1) (i), 354D (1) (ii), के साथ पठित लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 4 को 3, 6 (1) के साथ पठित 5 (1) के साथ पठित, 8 को 7 के साथ पठित, 10 को 9 (1) के साथ पठित, 12 को 11 (iv) के साथ पठित, धारा 15 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 66 E के तहत अपराध किये जाने का आरोप लगाया।
  • अभियुक्त ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत उसके विरुद्ध कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।
    • अभियुक्त द्वारा दृढ़तापूर्वक यह दलील दी गई है कि लगाए गए आरोप झूठे हैं तथा प्रथम दृष्टया अभियुक्त के विरुद्ध कोई भी अपराध नहीं बनता है।
    • उपरोक्त के लिये अभियुक्त ने विजयलक्ष्मी एवं अन्य बनाम राज्य एवं अन्य (2021) में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया।
    • अभियुक्त का कहना है कि चूँकि वर्तमान मामला ऐसा है, जहाँ संबंध और सहमति से यौन संबंध पक्षकारों की किशोरावस्था के दौरान बने हैं, इसलिये यह कार्यवाही को रद्द करने का उपयुक्त मामला है।
  • इस प्रकार, न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह है कि कार्यवाही रद्द की जाए या नहीं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि विजयलक्ष्मी के मामले में अनुपात रामजी लाल बैरवा एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2024) के मामले में भी यथावत रखा गया है।
  • इस प्रकार, कानूनी स्थिति यह है कि POCSO अधिनियम के तहत बहुत गंभीर अपराधों से संबंधित आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि पक्षों ने मामले को सुलझा लिया है।
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
  • इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी माना कि कार्यवाही को इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि दोषसिद्धि की संभावना क्षीण हो गई है, क्योंकि पक्षों के बीच समझौता हो चुका है।
  • इसलिये, वर्तमान तथ्यों को देखते हुए न्यायालय ने CrPC की धारा 482 के तहत कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया।

 POCSO अधिनियम के तहत अपराध क्या हैं?

अपराध

परिभाषा

सज़ा

प्रवेशन लैंगिक हमला (POCSO की धारा 3 और 4 के तहत)

इसमें किसी के लिंग, वस्तु या शरीर के भाग को बालक की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग, या गुदा में घुसाना, या प्रवेश के लिये बालक के शरीर के भाग के साथ छेड़छाड़ करना शामिल है।

कठोर कारावास जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला (POCSO की धारा 5 और 6 के तहत)

इसमें पुलिस, सशस्त्र बलों, लोक सेवकों, कुछ संस्थानों के प्रबंधन/कर्मचारियों द्वारा लैगिक उत्पीड़न, सामूहिक हमला, घातक आयुधों का उपयोग आदि शामिल है।

कठोर कारावास जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

 

लैंगिक हमला (POCSO की धारा 7 और 8 के तहत)

जो कोई, लैंगिक आशय से बालक की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को स्पर्श करता है या बालक से ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन का स्पर्श कराता है या लैंगिक आशय से कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किये बिना शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, लैंगिक हमला करता है, यह कहा जाता है।

जो कोई, लैंगिक हमला करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

गुरुतर लैंगिक हमला (POCSO की धारा 9 और 10 के तहत)

प्रवेशन लैंगिक हमले के समान लेकिन इसमें हथियारों का उपयोग, गंभीर चोट पहुँचाना, मानसिक बीमारी, गर्भावस्था या पिछली सज़ा जैसे गंभीर कारक शामिल हैं।

जो कोई, गुरुतर लैंगिक हमला करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम की नहीं होगी, किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

लैंगिक उत्पीड़न (POCSO की धारा 11 और 12 के तहत)

लैंगिक संतुष्टि के आशय से किये जाने वाले विभिन्न कार्य जिनमें इशारे, शरीर के अंगों का प्रदर्शन, अश्लील उद्देश्यों के लिये प्रलोभन आदि शामिल हैं।

जो कोई, किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अश्लील प्रयोजनों के लिये बालक का उपयोग (POCSO की धारा 13, 14 और 15 के तहत)

इसमें किसी बालक को अश्लील सामग्री या कृत्यों में कार्य कराना शामिल है। धारा 15 अश्लील सामग्री के भंडारकरण के लिये दण्डित करती है।

कम-से-कम पाँच वर्ष का कारावास, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

किसी अपराध का दुष्प्रेरण और उसे करने का दुष्प्रेरण ((POCSO की धारा 16, 17 और 18 के तहत)

किसी अपराध के किये जाने का दुष्प्रेरण, साज़िश करना या सहायता करना शामिल है।

दुष्प्रेरण या प्रयत्न की गंभीरता के आधार पर, संबंधित अपराध के लिये सज़ा के अनुसार भिन्नता होती है।

किसी मामले की रिपोर्ट करने या अभिलिखित करने में विफलता (POCSO की धारा 21)

अधिनियम के तहत किसी अपराध की रिपोर्ट करने या उसे अभिलिखित करने में विफलता।

छह महीने तक का कारावास, ज़ुर्माना या दोनों से दण्डनीय होगा।

मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना (POCSO की धारा 22)

विद्वेषपूर्ण आशय से मिथ्या परिवाद करना या मिथ्या सूचना प्रदान करना।

परिस्थितियों के आधार पर छह महीने तक का कारावास, ज़ुर्माना या दोनों से दण्डनीय।

 कार्यवाही रद्द करने के प्रावधान क्या हैं?

  • CrPC की धारा 482 के तहत प्रावधान लागू करके कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है।
  • यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 में निहित है।
  • इसमें कहा गया है कि इस संहिता की कोई भी बात उच्च न्यायालय की इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिये, या किसी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये, या अन्यथा न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिये आवश्यक आदेश देने की अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी।
  • यह धारा तीन उद्देश्यों को सूचीबद्ध करती है जिनके लिये उच्च न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है:
    • संहिता के तहत किसी भी आदेश को प्रभावी करने के लिये आवश्यक आदेश देना।
    • किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना।
    • न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करना।

POCSO अधिनियम के तहत कार्यवाही रद्द करने के संबंध में क्या कानून है?

  • रामजी लाल बैरवा एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (2024)
    • वर्तमान मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष POCSO अधिनियम के तहत दर्ज FIR को रद्द करने से संबंधित है।
    • इस मामले में न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण (2019) के मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने माना कि कोई FIR रद्द करने योग्य है या नहीं, यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
      • क्या अपराध समाज के विरुद्ध है या अकेले व्यक्ति के विरुद्ध है।
      • अपराध की गंभीरता और यह कैसे किया गया।
      • क्या अपराध किसी विशेष कानून के तहत किया गया है।
      • कार्यवाही का चरण और अभियुक्त ने परिवादी के साथ समझौता कैसे किया।
    • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान तथ्यों के आधार पर अपराध गंभीर प्रकृति के हैं और केवल इस आधार पर FIR को रद्द नहीं किया जा सकता कि पक्षों के बीच समझौता हो गया है।
  • सुनील रायकवार बनाम राज्य एवं अन्य (2021)
    • यह दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय है।
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि:
      • पीड़िता के पिता को अभियुक्त के साथ विवाद सुलझाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
      • यह बात नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती कि अभियुक्त पर ऐसे अपराध के लिये मुकदमा चलाया जा रहा है जो समाज की मूल्य प्रणाली को आघात पहुँचाता है और यह ऐसा मामला नहीं है जिसे समझौता योग्य छोटे अपराध के रूप में निपटाने की अनुमति दी जा सके।