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आपराधिक कानून
मृत शरीर (शव) के साथ बलात्संग
«25-Dec-2024
नीलकंठ @ नीलू नागेश बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और इससे जुड़े मामले “इस मुद्दे पर कोई असहमति नहीं हो सकती कि गरिमा और उचित व्यवहार संबंधी अधिकार न केवल जीवित व्यक्ति के लिये उपलब्ध है, बल्कि उसके मृत शरीर के लिये भी हैं और प्रत्येक मृत शरीर सम्मानजनक उपचार का हकदार है, लेकिन वर्तमान विधि को मामले के तथ्यों पर लागू किया जाना चाहिये।” मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु |
स्रोत: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने नीलकंठ @ नीलू नागेश बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और इससे जुड़े मामलों में माना है कि शव के साथ बलात्संग करना जघन्य है, लेकिन वर्तमान विधि के अंतर्गत यह बलात्संग नहीं माना जाएगा।
नीलकंठ @ नीलू नागेश बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं संबंधित मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला अनुसूचित जाति समुदाय की 9 वर्षीय लड़की के साथ बलात्संग और हत्या से जुड़ा है।
- पीड़िता की माँ उस दिन अपनी बेटी को घर पर छोड़कर फॉरेस्ट कॉलोनी डीएफओ बंगले में काम करने गई थी। जब वह दोपहर करीब 1:20 बजे लौटी तो उसकी बेटी वहाँ नहीं थी।
- शुरुआत में, एक गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज़ की गई, उसके बाद अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 363 (व्यपहरण) के तहत प्राथमिकी दर्ज़ की गई।
- अगले दिन, पीड़िता का शव एक पहाड़ी पर पाया गया, जिसे आंशिक रूप से दफनाया गया था। शव अर्धनग्न अवस्था में मिला था।
- इस मामले में दो आरोपियों की पहचान की गई:
- नितिन यादव (23 वर्ष): मुख्य आरोपी जो पीड़िता के पड़ोस में रहता था।
- नीलकंठ उर्फ नीलू नागेश (22 वर्ष): दूसरा आरोपी जो लगभग 2 किमी दूर रहता था।
- जाँच के मुताबिक:
- नितिन यादव अक्सर पीड़िता के घर टीवी देखने जाता था।
- पीड़िता की माँ ने उसे पहले भी लड़की को गलत तरीके से छूने के लिये चेतावनी दी थी।
- दशहरे के दिन, जब माँ घर से बाहर थी, नितिन ने कथित तौर पर पीड़िता के साथ बलात्संग किया और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी।
- इसके बाद उसने शव को अपने घर में छिपा दिया।
- बाद में, उसने शव को ठिकाने लगाने के लिये नीलकंठ से मदद मांगी।
- दोनों आरोपी शव को मोटरसाइकिल के माध्यम से एक पहाड़ी पर ले गए।
- शव को दफनाने से पहले, नीलकंठ ने कथित तौर पर शव का नेक्रोफीलिया का कृत्य किया।
- उन्होंने शव को कोसम के पेड़ के नीचे दफना दिया।
- मेडिकल जाँच में पुष्टि हुई:
- मौत गला घोंटने से दम घुटने के कारण हुई।
- यौन उत्पीड़न हुआ था।
- मौत का समय शव मिलने के 24 घंटे के भीतर था।
- दोनों आरोपी यौन रूप से सक्रिय पाए गए।
- DNA परीक्षण द्वारा पीड़िता के शरीर से लिये गए नमूनों में दोनों आरोपियों के प्रोफाइल का पता चला।
- अपीलकर्ता नितिन यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 376(3), 302, 201, 34 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये आरोप तय किये गए।
- अधिनियम 1989 की धारा 3(2)(v) और अपीलार्थी- नीलू नागेश के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 376(3), 201, 34, पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (1989 का अधिनियम) की धारा 3(2)(v) के तहत मामला दर्ज़ किया गया है।
- अपीलकर्ताओं ने दोष स्वीकार करते हुए मुकदमा चलाने की प्रार्थना की।
- ट्रायल जज ने गवाहों के बयान और रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के बाद अपीलकर्ताओं को दोषी करार दिया और सजा सुनाई।
- ट्रायल कोर्ट के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- दोनों अभियुक्तों द्वारा आपराधिक अपील पर:
- न्यायालय ने पाया कि दोषसिद्धि को बरकरार रखने के लिये पर्याप्त साक्ष्य मौजूद थे।
- यद्यपि कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था, फिर भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य अपराध सिद्ध करने के लिये पर्याप्त थे।
- DNA साक्ष्य, भौतिक वस्तुओं की बरामदगी, मेडिकल रिपोर्ट और ज्ञापन बयानों ने घटना को स्पष्ट कर दिया है।
- मृत्यु और यौन उत्पीड़न पर:
- न्यायालय ने चिकित्सीय साक्ष्य के माध्यम से हत्या की मानवघाती प्रकृति की पुष्टि की।
- डॉ. बी. बारा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर गौर किया गया, जिसमें गला घोंटकर हत्या किये जाने की बात कही गई थी।
- चिकित्सीय परीक्षण के आधार पर यौन उत्पीड़न के स्पष्ट साक्ष्य स्वीकार किये गए।
- पीड़ित की आयु पर:
- घटना के समय पीड़ित की उम्र 8 वर्ष 10 महीने और 7 दिन थी।
- स्कूल रिकॉर्ड और गवाहों के माध्यम से इसकी पुष्टि हुई।
- यह पीड़ित स्पष्टतः POCSO अधिनियम की धारा 2(d) के तहत 'बालक' थी।
- भौतिक साक्ष्य पर:
- महत्वपूर्ण साक्ष्यों की बरामदगी को मान्य किया गया, जिनमें शामिल हैं:
- पीड़िता की पायल और अंडरगारमेंट्स।
- आरोपी व्यक्ति के कपड़े।
- कुदाल जिसका इस्तेमाल दफ़नाने के लिये किया गया था।
- मिट्टी के नमूने दफ़नाने वाली जगहों से मेल खाते थे।
- महत्वपूर्ण साक्ष्यों की बरामदगी को मान्य किया गया, जिनमें शामिल हैं:
- DNA साक्ष्य पर:
- पीड़िता से लिये गए सैंपल में दोनों आरोपियों के DNA प्रोफाइल पाए गए।
- इसे मजबूत पुष्टिकारक साक्ष्य माना गया।
- नीलकंठ के नेक्रोफीलिया पर:
- इसे "सबसे जघन्य अपराधों में से एक" मानते हुए।
- ट्रायल कोर्ट से सहमत हैं कि मौजूदा कानून बलात्संग/POCSO के आरोपों के लिये दोषी ठहराए जाने की अनुमति नहीं देता है, जब पीड़ित की मृत्यु हो जाती है।
- केवल धारा 201 IPC (साक्ष्य नष्ट करना) के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
- माँ की अपील पर:
- नीलकंठ के विरुद्ध अतिरिक्त आरोप लगाने की अपील खारिज कर दी गई।
- यह स्वीकार करते हुए कि शवों को सम्मान मिलना चाहिये।
- ध्यान दें कि मौजूदा विधि बलात्संग की धाराओं के तहत नेक्रोफीलिया को कवर नहीं करते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसी तरह के मुद्दे पर विचार किये जाने का उल्लेख किया गया।
- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने दोनों आरोपियों की अपील खारिज कर दी तथा उन्हें 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
नेक्रोफीलिया के अपराध के खिलाफ विधि की आवश्यकता
नेक्रोफीलिया क्या है?
- नेक्रोफीलिया शवों के प्रति यौन आकर्षण या उनके साथ यौन क्रियाकलाप है, जो मानवीय गरिमा और शारीरिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन दर्शाता है।
- इसे विश्वभर के कई न्यायालयों द्वारा एक मानसिक विकार और एक आपराधिक कृत्य दोनों माना गया है।
- यह कृत्य शव की गरिमा का उल्लंघन करता है और मृतक के परिवार को गंभीर भावनात्मक आघात पहुँचाता है।
भारत में वर्तमान विधिक स्थिति:
- भारत में नेक्रोफीलिया को अपराध घोषित करने वाली कोई विशेष विधि नहीं है।
- इस तरह के कृत्यों पर धारा 375/376 आईपीसी (बलात्संग) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि इन धाराओं के तहत पीड़ित का जीवित व्यक्ति होना ज़रूरी है।
- वर्तमान में, इन कृत्यों पर आमतौर पर धारा 297 आईपीसी (कब्रिस्तान, उपासना के स्थान, अंतिम संस्कार क्रियाओं में विघ्न कारित करने) या धारा 201 आईपीसी (साक्ष्य नष्ट करना) के तहत मुकदमा चलाया जाता है। इसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 301 और धारा 241 के तहत कवर किया गया है।
विशिष्ट विधान की आवश्यकता:
- संवैधानिक आधार:
- गरिमा के अधिकार का विस्तार मृतक के शव की अवस्था तक है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार में शव के साथ सम्मानजनक व्यवहार भी शामिल है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मानव अवशेषों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने का प्रावधान है।
- सामाजिक एवं नैतिक आधार:
- विशिष्ट विधियों की अनुपस्थिति मृतक की गरिमा की रक्षा करने में न्याय को कमजोर करती है।
- वर्तमान विधिक ढाँचा अपराध की गंभीरता और प्रकृति को अपर्याप्त रूप से संबोधित करता है।
- अपराध की अपर्याप्त विधिक मान्यता के कारण पीड़ितों के परिवारों को अतिरिक्त आघात का सामना करना पड़ता है।
- विधिक सुधार की आवश्यकता:
- नेक्रोफीलिया को परिभाषित करने और अपराधीकरण करने के लिये विशिष्ट वैधानिक प्रावधानों की आवश्यकता।
- अपराध की गंभीरता के अनुरूप उचित दंड की आवश्यकता।
- ऐसे मामलों की जाँच और अभियोजन के लिये प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देशों की आवश्यकता।
- नेक्रोफीलिया से निपटने के लिये विशिष्ट विधियों की कमी भारतीय आपराधिक कानून में एक महत्त्वपूर्ण अंतर को दर्शाती है, विशेष रूप से मानवीय गरिमा की संवैधानिक गारंटी को देखते हुए जो मृत्यु से परे है।
- इस अंतर को व्यापक विधियों के माध्यम से संबोधित करने की आवश्यकता है जो कृत्य की आपराधिक प्रकृति और समाज के नैतिक ताने-बाने पर इसके प्रभाव दोनों को समाहित करती हों।