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सिविल कानून

रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर (2019)

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 13-Feb-2025

परिचय

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो यह निर्धारित करता है कि प्रतिकूल कब्जे के अभिवाक का उपयोग न केवल प्रतिवादी द्वारा कवच के रूप में किया जा सकता है, बल्कि वादी द्वारा तलवार के रूप में भी किया जा सकता है। 
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर एवं न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा दिया गया।

तथ्य 

  • परिसीमा अधिनियम, 1963 (LA) के अनुच्छेद 65 में प्रावधान है कि अचल संपत्ति पर कब्जे के लिये वाद संस्थित करने की परिसीमा अवधि 12 वर्ष है।
  • यह अवधि तब से प्रारंभ होती है जब प्रतिवादी का कब्जा वादी के प्रतिकूल हो जाता है।
  • प्रतिकूल कब्जा एक विधिक सिद्धांत है जो किसी व्यक्ति को सांविधिक रूप से परिभाषित अवधि के लिये स्वामी की अनुमति के बिना लगातार उस पर कब्जा करके अचल संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करने की अनुमति देता है।
  • इस मामले में न्यायालय केवल विधि के प्रश्न से संबंधित था।

शामिल मुद्दे  

  • क्या प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वामित्व का दावा करने वाला व्यक्ति स्वामित्व की घोषणा और अपने कब्जे की सुरक्षा की मांग करते हुए स्थायी निषेधाज्ञा के लिये LA के अनुच्छेद 65 के अंतर्गत वाद ला सकता है?

टिप्पणी 

  • प्रतिकूल कब्जे की अवधारणा एक सामान्य विधिक अवधारणा है।
  • परिसीमा अवधि की विधि कहीं भी प्रतिकूल कब्जे को परिभाषित नहीं करता है तथा इसमें ऐसा प्रावधान भी नहीं है कि वादी प्रतिकूल कब्जे के आधार पर वाद नहीं ला सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि विधि का यह कभी आशय नहीं था कि अनुच्छेद 65 के आधार पर अपना स्वामित्व पूर्ण करने वाले व्यक्ति को वाद लाने के उसके अधिकार से वंचित किया जाए तथा उसे उपचारहीन कर दिया जाए।
  • इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि प्रतिकूल कब्जे का विधान स्वामी के अधिकारों के विलुप्त होने की समय परिसीमा समाप्त होने से पहले कब्जा वापस पाने के अधिकार को प्रतिबंधित करता है।
  • न्यायालय ने अनुच्छेद 65 का निर्वचन इस प्रकार किया:
    • अनुच्छेद 65 के आरंभिक भाग में “अचल संपत्ति या उसमें स्वामित्व के आधार पर किसी हित के कब्जे के लिये” वाद का प्रयोग किया गया है।
    • अभिव्यक्ति “स्वामित्व” में वादी द्वारा प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से अर्जित स्वामित्व शामिल होगा।
  • इसके अतिरिक्त, कई निर्णयों में यह माना गया है कि प्रतिकूल कब्जे से स्वामित्व पूर्ण होता है। 
  • न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि प्रतिकूल कब्जे से अधिकार का कोई प्रावधान नहीं होता। 
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने प्रतिकूल कब्जे के लिये तीन मूल आवश्यकताएँ भी निर्धारित किया:
    • नेक- वी अर्थात निरंतरता में पर्याप्त
    • नेक-क्लैम यानी प्रचार में पर्याप्त
    • नेक- प्रीकैरियो यानी प्रतिस्पर्धी के प्रतिकूल
  • हालाँकि, अतिचारी द्वारा लंबे समय तक कब्जा करना प्रतिकूल कब्जे का पर्याय नहीं है। 
  • न्यायालय ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बिंदु निर्धारित किये:
    • किसी व्यक्ति को विधि की उचित प्रक्रिया के बिना किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बेदखल नहीं किया जा सकता है।
    • 12 वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद भी स्वामी का व्यक्ति को बेदखल करने का अधिकार समाप्त हो जाता है तथा कब्जाधारी स्वामी संपत्ति में अधिकार, स्वामित्व एवं हित प्राप्त कर लेता है।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि प्रतिकूल कब्जे का अभिवाक का उपयोग न केवल प्रतिवादी द्वारा कवच के रूप में किया जा सकता है, बल्कि वादी द्वारा विधि की धारा 65 की सीमाओं के अंदर तलवार के रूप में भी किया जा सकता है।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि प्रतिकूल कब्जे द्वारा स्वामित्व के अधिग्रहण का अभिवाक वादी द्वारा LA की धारा 65 के तहत ली जा सकती है और वादी के किसी भी अधिकार के उल्लंघन के मामले में LA के अंतर्गत पूर्वोक्त आधार पर वाद लाने पर कोई रोक नहीं है। 

निष्कर्ष 

  • यह प्रतिकूल कब्जे का अभिवाक से निपटने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है। 
  • न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया कि प्रतिकूल कब्जे का अभिवाक तलवार एवं कवच दोनों है।