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सिविल कानून

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 59 के अंतर्गत परिशोधन

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 11-Sep-2024

चलसानी उदय शंकर एवं अन्य बनाम मेसर्स लेक्सस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य

"CA की धारा 59 में 'पर्याप्त कारण' वाक्यांश का परीक्षण उस सांविधिक आदेश के संबंध में किया जाना है, जो अधिनियम एवं बनाए गए नियमों के उल्लंघन में किया गया है या करने से चूक गया है।"

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एवं न्यायमूर्ति संजय कुमार

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने चलसानी उदय शंकर एवं अन्य बनाम मेसर्स लेक्सस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले में माना है कि कंपनी विधि अधिकरणों को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 59 के अंतर्गत सुधार का आदेश देने की शक्ति है, जब मामला प्रथम दृष्टया प्रवंचना के शिकार पक्ष को संकेत करता है।

चलसानी उदय शंकर एवं अन्य बनाम मेसर्स लेक्सस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, प्रतिवादी कंपनी (मेसर्स लेक्सस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड) आंध्र प्रदेश में निगमित की गई थी।
  • प्रतिवादी संख्या 2, 3 एवं 4 कंपनी में शेयर प्राप्त करने के बाद इसके निदेशक बन गए।
  • यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्त्ता संख्या 1,2 एवं 3 के पास कंपनी में बहुसंख्यक शेयर थे, इसके बावजूद उन्होंने नियंत्रण एवं प्रबंधन का कार्य प्रतिवादियों के स्वामित्व में छोड़ दिया था।
  • प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्त्ताओं द्वारा प्राप्त शेयर प्रमाण-पत्र जाली थे।
  • प्रतिवादी द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि कोरे कागज़ों पर लिये गए हस्ताक्षरों का अपीलकर्त्ताओं द्वारा दुरुपयोग किया गया था।
  • अपीलकर्त्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने वित्तीय वर्ष 2014-15, 2015-16 तथा 2016-17 के लिये वार्षिक आम बैठकें (AGM) आयोजित नहीं कीं, जिसके कारण कंपनी रजिस्ट्रार ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 248 के अनुसार कंपनी का नाम कंपनी रजिस्टर से हटा दिया।
  • बाद में कंपनी के पोर्टल पर ब्राउज़ करते समय, अपीलकर्त्ताओं ने पाया कि प्रतिवादियों ने डिफ़ॉल्ट वित्तीय वर्षों के लिये दोषपूर्ण वित्तीय विवरण एवं वार्षिक रिपोर्ट दायर की हैं।
  • यह भी आरोप लगाया गया कि प्रतिवादियों ने कंपनी के रिकॉर्ड से अपीलकर्त्ता की शेयरहोल्डिंग का नाम हटा दिया।
  • यह भी आरोप लगाया गया कि प्रतिवादियों ने कंपनी की संपत्ति हड़पने के आशय से कई बार उत्पीड़न के विभिन्न कार्य किये हैं।
  • राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (NCLAT) के समक्ष अपीलकर्त्ताओं द्वारा यह मांग की गई:
    • कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में उनके नाम दर्ज करके सुधार करना।
    • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 447 एवं धारा 448 के अंतर्गत प्रतिवादियों के विरुद्ध उचित कार्यवाही प्रारंभ करना।
    • प्रतिवादियों पर उत्पीड़न एवं कुप्रबंधन का आरोप लगाना।
  • NCLAT ने अपीलकर्त्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद राष्ट्रीय कंपनी विधिक अपीलीय अधिकरण (NCLAT) में अपील की गई।
  • NCLAT ने अपील को भी खारिज कर दिया, जिससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान सिविल अपील दायर की।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने NCLAT के निर्णय पर टिप्पणी की कि:
    • NCLAT द्वारा 'ज्ञात व्यक्तियों' द्वारा भुगतान के अंतरण एवं शेयरों के आवंटन को स्पष्ट रूप से नहीं समझा गया।
    • गहन जाँच के बाद यह पाया गया कि जिन 'ज्ञात व्यक्तियों' ने पैसे का भुगतान किया वे केवल अपीलकर्त्ता थे।
    • इसलिये, NCLAT द्वारा निकाला गया निष्कर्ष कि अपीलकर्त्ताओं ने प्रतिवादी को कोई पैसा अंतरित नहीं किया, तथ्यात्मक रूप से दोषपूर्ण माना गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने कंपनी अधिनियम की धारा 59 के प्रावधानों का व्यापक रूप से अवलोकन किया:
    • न्यायालय ने कहा कि धारा 59 का उद्देश्य दोष को ठीक करना है, उन दोषों के नाम जोड़ना है जो की जानी चाहिये थीं लेकिन नहीं की गईं।
    • न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रावधानों के अंतर्गत 'पर्याप्त कारण' वाक्यांश की न्यायालयों द्वारा मामले-दर-मामला आधार पर बारीकी से जाँच की जानी चाहिये।
    • वाक्यांश की जाँच इस तरह से की जानी चाहिये कि यह CA के नियमों का अनुपालन करता हो और रजिस्टर में नाम के मिटाए जाने के कारण की जाँच तद्नुसार की जानी चाहिये।
    • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि NCLAT का यह अवलोकन कि वर्तमान मामला प्रथम दृष्टया प्रवंचना का मामला है तथा अपीलकर्त्ता पीड़ित हैं, तो NCLAT द्वारा सुधार का आदेश दिया जा सकता था।
  • उच्चतम न्यायालय ने NCAT एवं NCLAT द्वारा की गई टिप्पणियों की भी आलोचना की:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि NCAT सुधार के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग न करके अनिवार्य विधि को लागू करने में विफल रहा है।
    • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले अधिकरणों द्वारा उपलब्ध दस्तावेज़ों का गहन अध्ययन किया जाना चाहिये तथा NCLAT ऐसा करने में विफल रहा।
    • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि NCAT भी पक्षों द्वारा प्रस्तुत तर्कों की जाँच करने में विफल रहा तथा प्रस्तुत साक्ष्यों का पर्याप्त सत्यापन नहीं किया।
  • उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान अपीलों को स्वीकार कर लिया तथा मामले के गुण-दोषों की नए सिरे से जाँच करने तथा याचिका का शीघ्रता से निपटान करने का दायित्व NCAT को सौंप दिया।

चलसानी उदय शंकर एवं अन्य बनाम मेसर्स लेक्सस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले में कौन से मामले संदर्भित हैं?

  • आदेश कौर बनाम आयशर मोटर्स लिमिटेड एवं अन्य (2018):
  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि तथ्यों के आधार पर, प्रवंचना का एक स्पष्ट मामला बनता है तथा सुधार की मांग करने वाला व्यक्ति पीड़ित था, राष्ट्रीय कंपनी विधिक अधिकरण CA की धारा 59 के अंतर्गत ऐसी शक्ति का प्रयोग करने का अधिकारी होगा।
  • यह भी माना गया कि धारा 59 के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग केवल इसलिये वर्जित नहीं होगा क्योंकि चूककर्त्ताओं के विरुद्ध गंभीर कार्यवाही चल रही है (इस मामले में कंपनी के सदस्यों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही चल रही थी)।
  • अमोनिया सप्लाइज कॉर्पोरेशन (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम मेसर्स मॉडर्न प्लास्टिक कंटेनर (1998):
  • इस मामले में यह माना गया कि CA, 1956 की धारा 155 (अब CA की धारा 59) के अंतर्गत शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, जब उठाया गया मुद्दा सुधार की परिधि में नहीं आता है।

CA की धारा 59 क्या है?

  • CA की धारा 59 को पहले CA, 1956 की धारा 155 के अंतर्गत शामिल किया गया था।
  • सदस्यों के रजिस्टर से संबंधित प्रावधान CA की धारा 88 के अंतर्गत दिये गए हैं।

इस धारा में सदस्यों के रजिस्टर के परिशोधन के विषय में बताया गया है:

1. सदस्यों के रजिस्टर का परिशोधन:

  • यदि किसी व्यक्ति का नाम, बिना पर्याप्त कारण के, निम्नलिखित रूप में प्रकाशित किया जाता है:
    • किसी कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में दर्ज किया गया हो, या
    • रजिस्टर में दर्ज किये जाने के बाद, बिना किसी पर्याप्त कारण के, उसमें से हटा दिया गया हो, या
    • यदि कोई चूक हुई हो, या रजिस्टर में दर्ज करने में अनावश्यक विलंब हुआ हो, तो किसी व्यक्ति के सदस्य बनने या न रहने का तथ्य,
  • पीड़ित व्यक्ति, कंपनी का कोई सदस्य, या कंपनी निम्नलिखित के पास अपील कर सकती है:
    • अधिकरण(जैसा कि निर्धारित है), या
    • रजिस्टर के परिशोधन के लिये भारत के बाहर रहने वाले विदेशी सदस्यों या डिबेंचर धारकों के संबंध में भारत के बाहर एक सक्षम न्यायालय (केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट)।

2. अपील के संबंध में अधिकरण की शक्तियाँ:

  • अधिकरण उपधारा (1) के अधीन अपील के पक्षकारों को सुनने के पश्चात् आदेश द्वारा:
    • या तो अपील खारिज करें या
    • निर्देश दें कि आदेश की प्राप्ति के दस दिनों के अंदर कंपनी द्वारा अंतरण या संचरण पंजीकृत किया जाएगा, या डिपॉजिटरी या रजिस्टर के रिकॉर्ड में परिशोधन का निर्देश दें,
    • और ऐसे मामले में, कंपनी को पीड़ित पक्ष द्वारा उठाए गए क्षति, यदि कोई हो, का भुगतान करने का निर्देश दें।

3. प्रतिभूतियों के अंतरण का अधिकार:

  • इस धारा के प्रावधान प्रतिभूतियों के धारक के ऐसे प्रतिभूतियों को अंतरित करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करेंगे तथा ऐसी प्रतिभूतियों को प्राप्त करने वाला कोई भी व्यक्ति मतदान के अधिकार का अधिकारी होगा, जब तक कि अधिकरण के आदेश द्वारा मतदान के अधिकार को निलंबित नहीं कर दिया गया हो।

4. उल्लंघनों के लिये सुधार:

  • जहाँ प्रतिभूतियों का अंतरण निम्नलिखित में से किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है:
    • प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956,
    • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992,
    • यह अधिनियम, या
    • कोई अन्य लागू विधि,
  • अधिकरण, डिपॉजिटरी, कंपनी, डिपॉजिटरी भागीदार, प्रतिभूतियों के धारक या प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड द्वारा किये गए आवेदन पर, किसी भी कंपनी या डिपॉजिटरी को अपने रजिस्टर या संबंधित रिकॉर्ड को परिशोधन करने और उल्लंघन को ठीक करने का निर्देश दे सकता है।

कंपनी द्वारा सदस्यों का रजिस्टर का रखरखाव:

  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 88, खंड (1) के अनुसार, प्रत्येक कंपनी निम्नलिखित रजिस्टरों को ऐसे प्रारूप और तरीके से रखेगी जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है, अर्थात्:
    • भारत में या भारत से बाहर रहने वाले प्रत्येक सदस्य द्वारा धारित इक्विटी एवं वरीयता शेयरों के प्रत्येक वर्ग को अलग-अलग दर्शाने वाले सदस्यों का रजिस्टर।
    • डिबेंचर धारकों का रजिस्टर।
    • किसी अन्य सुरक्षा धारकों का रजिस्टर
  • यदि कंपनी इन रजिस्टरों को बनाए रखने में विफल रहती है तो कंपनी तीन लाख रुपए के अर्थदण्ड के लिये उत्तरदायी होगी तथा कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो चूककर्त्ता होगा, पचास हज़ार रुपए के अर्थदण्ड के लिये उत्तरदायी होगा।