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आपराधिक कानून

विवाह से इनकार, आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण नहीं

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 02-Dec-2024

कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी बनाम कर्नाटक राज्य एसएचओ काकती पुलिस के माध्यम से

“धारा 306 IPC: विवाह से इनकार करना आत्महत्या के लिये उकसाने के बराबर नहीं है, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया।”

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के आरोप में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया, क्योंकि उसकी प्रेमिका ने उससे विवाह करने से इनकार करने पर आत्महत्या कर ली थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल विवाह से इनकार करना उकसाने या दुष्प्रेरण के बराबर नहीं होता है, जब तक कि व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिये उकसाने का कोई साक्ष्य न हो।

  • निर्णय में कहा गया है कि केवल टूटे हुए संबंधों के कारण धारा 306 के तहत आपराधिक दायित्व नहीं बनाया जा सकता।

कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी बनाम कर्नाटक राज्य एसएचओ काकती पुलिस के माध्यम से मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 21 वर्षीय एम.ए. की छात्रा सुवर्णा, कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी से आठ वर्षों से प्रेम करती थी, वह उसे 13 वर्ष की उम्र से जानती थी।
  • पहले कमरुद्दीन ने गाँव के बुज़ुर्गों के सामने सुवर्णा से विवाह करने पर सहमति जताई थी, लेकिन बाद में वह गाँव छोड़कर कर्नाटक के काकती चला गया।
  • 18 अगस्त, 2007 को सुवर्णा काकती गई और कमरुद्दीन से मिली, जिसने उसके अनुरोध पर उससे विवाह करने से इनकार कर दिया।
  • अस्वीकार किये जाने के बाद सुवर्णा ने काकती बस स्टैंड पर रात बिताई और अगली सुबह अपने गृहनगर से लाया हुआ ज़हर खा लिया।
  • कमरुद्दीन के रिश्तेदार सुवर्णा को अस्पताल ले गए और 19 अगस्त, 2007 को उसकी मृत्यु से पहले दो मृत्युकालिक कथन दर्ज कराए गए।
  • उसकी माँ ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि कमरुद्दीन ने उनकी बेटी को विवाह का वचन करके धोखा दिया और फिर इनकार कर दिया, जिसके कारण सुवर्णा ने आत्महत्या कर ली।
  • ट्रायल कोर्ट ने शुरू में कमरुद्दीन को धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिये उकसाने सहित सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
  • बाद में उच्च न्यायालय ने कमरुद्दीन को धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिये उकसाने का दोषी ठहराया, जिसके बाद उसने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
  • उच्चतम न्यायालय ने अंततः कमरुद्दीन को बरी कर दिया तथा निर्णय सुनाया कि विवाह से इनकार करना आत्महत्या के लिये कानूनी उकसावा नहीं था।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि टूटे हुए संबंध और दिल टूटना रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं और ये स्वतः ही आत्महत्या के लिये उकसाने का मामला नहीं बनते।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिये उकसाने को साबित करने के लिये अभियोजन पक्ष को स्पष्ट मेन्स रीआ (दोषी आशय) साबित करना होगा और एक सक्रिय या प्रत्यक्ष कृत्य का प्रदर्शन करना होगा, जिसने जानबूझकर मृतक को बिना किसी अन्य विकल्प के आत्महत्या करने के लिये प्रेरित किया।
  • 'उकसाने' की कानूनी परिभाषा के लिये उकसावे, उत्तेजना या प्रोत्साहन का सकारात्मक कार्य आवश्यक है, जो महज़ भावनात्मक शब्दों या एक साधारण संबंध विच्छेद से कहीं अधिक है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक आत्महत्या का मामला अद्वितीय होता है, तथा न्यायालयों को विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों की सावधानीपूर्वक जाँच करनी चाहिये, तथा यह स्वीकार करना चाहिये कि व्यक्तियों के आत्म-सम्मान और भावनात्मक लचीलेपन की सीमाएँ अलग-अलग होती हैं।
  • केवल विवाह से इनकार करना या संबंध टूट जाना आत्महत्या के लिये कानूनी रूप से उकसाना नहीं माना जाता, जब तक कि यह निर्णायक रूप से साबित न हो जाए कि अभियुक्त ने जानबूझकर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीं, जिससे मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषसिद्धि कायम रखने के लिये जानबूझकर उकसावे या पीड़ित को आत्महत्या के लिये प्रेरित करने के लिये व्यवस्थित आचरण का स्पष्ट सबूत होना चाहिये।
  • निर्णय में दोहराया गया कि भावनात्मक कलह और संबंधों से जुड़ी चुनौतियाँ आम सामाजिक अनुभव हैं, तथा हर भावनात्मक आघात या अस्वीकृति को आत्महत्या के लियुए उकसाने के कृत्य के रूप में अपराध नहीं माना जा सकता।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रत्यक्ष, जानबूझकर और सकारात्मक उकसावे की कार्रवाई स्थापित किये बिना, किसी व्यक्ति को दूसरे की आत्महत्या के लिये अपराधी ठहराना अनुचित है, खासकर तब जब कोई स्पष्ट आपराधिक मंशा प्रदर्शित नहीं की जा सकती।

दुष्प्रेरण क्या है?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अध्याय IV में दुष्प्रेरण, आपराधिक साजिश और प्रयास का प्रावधान है।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में इसे अध्याय V में रखा गया है।
  • BNS की धारा 108 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या के लिये उकसाता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी देना होगा।
  • यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 306 के रूप में था।

कानूनी प्रावधान क्या हैं?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 45:
    • इसमें दुष्प्रेरण को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि जब कोई व्यक्ति किसी को कोई कार्य करने के लिये उकसाता है, दूसरों के साथ मिलकर कुछ करने की साजिश रचता है (जिससे कोई अवैध कार्य या चूक होती है) या जानबूझकर उसके निष्पादन में सहायता करता है।
  • धारा 108 आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण से संबंधित है:
    • मूल प्रावधान:
      • यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है
      • और कोई व्यक्ति उस आत्महत्या को उकसाता है (प्रोत्साहित करता है, सहायता करता है, या उकसाता है)।
    • सज़ा:
      • 10 वर्ष तक का कारावास।
      • जुर्माना भरने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी।
    • प्रमुख बिंदु:
      • यह धारा उन मामलों पर लागू होती है जहाँ कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिये सीधे प्रोत्साहित करता है या सहायता करता है।
      • दुष्प्रेरण विभिन्न तरीकों से हो सकता है जैसे:
        • आत्महत्या करने के साधन उपलब्ध कराना।
        • आत्महत्या के विचारों को प्रोत्साहित करना।
        • ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करना जो आत्महत्या की ओर ले जाएँ।
      • यह सज़ा कठोर होती है ताकि ऐसे कार्यों को हतोत्साहित किया जा सके जो किसी को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं।
  • संबंधित निर्णयज विधि:
    • एम. मोहन बनाम राज्य (2011): उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि धारा 306 IPC के तहत आत्महत्या के लिये उकसाने को साबित करने के लिये प्रत्यक्ष आशय से कार्य करना आवश्यक होता है, जिससे पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
    • उदे सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2019): उच्चतम न्यायालय ने माना कि आत्महत्या के लिये उकसाने को साबित करना मामले की बारीकियों पर निर्भर करता है, जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसावे की आवश्यकता होती है जिससे पीड़ित के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।