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सिविल कानून

पंजीकरण प्राधिकारी विक्रेता के स्वत्व का निर्धारण नहीं कर सकता

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 08-Apr-2025

के. गोपी बनाम उप-रजिस्ट्रार एवं अन्य

"1908 अधिनियम के अंतर्गत कोई भी प्रावधान किसी भी प्राधिकारी को इस आधार पर अंतरण दस्तावेज के पंजीकरण से मना करने की शक्ति नहीं देता है कि विक्रेता के स्वत्व से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गए हैं, या यदि उसका स्वत्व स्थापित नहीं है,"

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ की पीठ ने तमिलनाडु पंजीकरण नियमों के नियम 55A(i) को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि पंजीकरण प्राधिकारी विक्रेता के स्वत्व के साक्ष्य के अभाव में किसी दस्तावेज को पंजीकृत करने से मना नहीं कर सकता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने के. गोपी बनाम सब-रजिस्ट्रार एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

के. गोपी बनाम सब-रजिस्ट्रार एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 2 सितंबर 2022 को, जयरामन मुदलियार नामक व्यक्ति ने एक संपत्ति के संबंध में अपीलकर्त्ता के. गोपी के पक्ष में एक विक्रय विलेख निष्पादित किया। 
  • उप-पंजीयक ने विक्रय विलेख को पंजीकृत करने से मना कर दिया, जिसके बाद अपीलकर्त्ता ने इस अस्वीकृति को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की। 
  • रिट याचिका खारिज होने के बाद, अपीलकर्त्ता ने उप-पंजीयक के आदेश के विरुद्ध जिला रजिस्ट्रार के समक्ष अपील दायर की। 
  • जिला रजिस्ट्रार ने 4 सितंबर 2023 को अपील की अनुमति दी तथा उप-पंजीयक को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। 

  • उप-पंजीयक ने तब अपीलकर्त्ता को संपत्ति अंतरित करने के लिये विक्रेता के स्वत्व के प्रमाण के साथ दस्तावेज़ फिर से जमा करने का निर्देश दिया। 
  • जब अपीलकर्त्ता ने 3 अक्टूबर 2023 को पंजीकरण के लिये फिर से विक्रय विलेख जमा किया, तो उप-पंजीयक ने एक बार फिर पंजीकरण से मना कर दिया।
  • अपीलकर्त्ता ने इस अस्वीकृति के विरुद्ध एक और रिट याचिका दायर की, जिसे मद्रास उच्च न्यायालय के संबंधित एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। 
  • इस अस्वीकृति के विरुद्ध एक रिट अपील को 20 मार्च 2024 को मद्रास उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने खारिज कर दिया। 
  • उच्च न्यायालय ने माना कि तमिलनाडु पंजीकरण नियमों के नियम 55A के अंतर्गत, उप-पंजीयक इस आधार पर पंजीकरण से मना करने का अधिकारी था कि अपीलकर्त्ता के विक्रेता ने अपना स्वत्व और स्वामित्व स्थापित नहीं किया था। 
  • अपीलकर्त्ता का दावा एक अपंजीकृत वसीयत पर आधारित था, तथा उच्च न्यायालय ने कहा कि जब संदेह उत्पन्न होता है और विधिक उत्तराधिकारियों को पक्षकार नहीं बनाया जाता है, तो पक्षों को सिविल कोर्ट में अपील करना चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत कोई भी प्रावधान किसी भी अधिकारी को इस आधार पर अंतरण दस्तावेज के पंजीकरण से मना करने की शक्ति नहीं देता है कि विक्रेता के स्वत्व से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये गए हैं, या यदि उसका स्वत्व स्थापित नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि पंजीकरण अधिकारी का निष्पादक के पास मौजूद स्वत्व से कोई सरोकार नहीं है तथा उसके पास यह निर्णय लेने की कोई न्यायिक शक्ति नहीं है कि निष्पादक के पास कोई स्वत्व है या नहीं।
  • भले ही निष्पादक किसी ऐसी संपत्ति के लिये दस्तावेज निष्पादित करता है जिसमें उसका कोई स्वत्व नहीं है, पंजीकरण अधिकारी पंजीकरण से मना नहीं कर सकता है यदि सभी प्रक्रियात्मक अनुपालन किये गए हैं तथा आवश्यक स्टाम्प ड्यूटी एवं पंजीकरण शुल्क का भुगतान किया गया है।
  • न्यायालय ने माना कि नियम 55A(i) पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों के साथ असंगत है, क्योंकि यह निष्पादक के स्वत्व को सत्यापित करने के लिये पंजीकरण अधिकारी को अनुचित रूप से शक्ति प्रदान करता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि पंजीकरण केवल निष्पादक के पास जो भी अधिकार हैं, उन्हें अंतरित करता है; यदि निष्पादक के पास संपत्ति में कोई अधिकार, स्वत्व या हित नहीं है, तो पंजीकृत दस्तावेज किसी भी अंतरण को प्रभावित नहीं कर सकता है। 
  • न्यायालय ने नियम 55A(i) को पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अधिकारिता से बाहर घोषित किया, क्योंकि धारा 69 के अंतर्गत नियम बनाने की शक्ति का प्रयोग मूल अधिनियम के प्रावधानों के साथ असंगत नियम बनाने के लिये नहीं किया जा सकता है।

उल्लिखित विधिक प्रावधान क्या हैं?

पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 69

  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 - भारत में दस्तावेजों के पंजीकरण को नियंत्रित करने वाली प्राथमिक विधि। 
  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 69 - यह प्रावधान महानिरीक्षक को पंजीकरण कार्यालयों का पर्यवेक्षण करने तथा अधिनियम के अनुरूप नियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
    • धारा 69(1)(a) से (j) उन विशिष्ट क्षेत्रों को सूचीबद्ध करती है, जहाँ नियम बनाए जा सकते हैं, जिनमें दस्तावेजों की सुरक्षित अभिरक्षा, भाषा का उपयोग, क्षेत्रीय विभाजन, जुर्माना विनियमन, पंजीकरण अधिकारी का विवेक, ज्ञापन का प्रारूप, पुस्तक प्रमाणीकरण, उपकरण प्रस्तुति, सूचकांक सामग्री, अवकाश घोषणाएँ और सामान्य कार्यवाही विनियमन शामिल हैं। 
    • धारा 69(2) के अनुसार इस धारा के अंतर्गत बनाए गए नियमों को राज्य सरकार के अनुमोदन के लिये प्रस्तुत किया जाना चाहिये, आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाना चाहिये तथा उसके बाद ही अधिनियम में अधिनियमित होने के रूप में प्रभावी होना चाहिये।
    • धारा 69(1)(a) से (j) तक में सूचीबद्ध नियम बनाने की कोई भी शक्ति पंजीकरण अधिकारियों को स्वत्व सत्यापन के आधार पर पंजीकरण से मना करने की अनुमति देने वाले नियमों के निर्माण को अधिकृत नहीं करती है।
    • उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि धारा 69 के अंतर्गत बनाए गए सभी नियम "इस अधिनियम के अनुरूप" होने चाहिये - यह प्रमुख आवश्यकता नियम 55A(i) को अधिकारहीन घोषित करने का आधार बनी।
    • न्यायालय ने माना कि नियम 55A(i) इन उल्लिखित शक्तियों की सीमा से बाहर है तथा इस मौलिक सिद्धांत का खंडन करता है कि पंजीकरण अधिकारियों को स्वत्व के मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

तमिलनाडु पंजीकरण

  • तमिलनाडु पंजीकरण नियमों का नियम 55A - राज्य का वह नियम जिसे निरस्त कर दिया गया, जिसके अंतर्गत पंजीकरण से पहले प्रस्तुतकर्त्ताओं को पिछले मूल विलेख एवं विल्लंगम प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती थी। 
  • पंजीकरण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 22-A और 22-B - राज्य संशोधन जो सीमित परेस्थितियों को निर्दिष्ट करते हैं जिसके अंतर्गत पंजीकरण से मना किया जा सकता है। 
  • तमिलनाडु टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट, 1971 (धारा 9-A) - चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी से संबंधित संपत्तियों के संबंध में धारा 22-A में संदर्भित। 
  • तमिलनाडु धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 - धार्मिक संस्थान संपत्तियों के संबंध में धारा 22-A में संदर्भित। 
  • तमिलनाडु भूदान यज्ञ अधिनियम, 1958 (धारा 3) - दान की गई भूमि के संबंध में धारा 22-A में संदर्भित।