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सांविधानिक विधि
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण
«15-Jan-2025
कबीर सी. बनाम केरल राज्य एवं अन्य “सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने में उनके अधिकारों के कार्यान्वयन में देरी नहीं कर सकती।” न्यायमूर्ति ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति पी. कृष्ण कुमार |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति पी. कृष्ण कुमार की पीठ ने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश दिया।
- केरल उच्च न्यायालय ने कबीर सी. बनाम केरल राज्य (2024) मामले में यह निर्णय सुनाया।
कबीर सी. बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता ट्रांसजेंडर व्यक्ति थे।
- उन्होंने शिक्षा और सार्वजनिक रोज़गार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने के लिये केरल सरकार को निर्देश देने वाले परमादेश से अनुतोष की मांग की।
- ये रिट याचिकाएँ राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ एवं अन्य (2014) में निर्धारित कानून की घोषणा के आलोक में दायर की गई थीं।
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता सार्वजनिक रोज़गार के आकांक्षी थे और किसी भी सार्वजनिक रोज़गार अधिसूचना में ट्रांसजेंडरों के लिये आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया था, इसलिये उन्होंने रिट दायर की है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि सामान्यतः यह न्यायालय मौलिक अधिकारों से संबंधित मामलों में सरकार के नीतिगत क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा, तथा इन्हें लागू करने में न्यायिक भूमिका अनिवार्य है।
- स्पष्ट कानूनी और संवैधानिक दायित्वों के बावजूद सरकार की निरंतर निष्क्रियता के कारण इस न्यायालय के पास संवैधानिक और कानूनी अधिदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये उचित निर्देश जारी करने पर विचार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
- उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि ट्रांसजेंडरों के साथ अन्य लिंग समूहों के समान ही समान व्यवहार किया जाए।
- संसद द्वारा अधिनियमित ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसरण में, केरल सरकार ने वैधानिक प्रावधानों के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्रभावी बनाने के लिये नियम भी बनाए हैं।
- न्यायालय ने इस मामले में कहा कि शिक्षा एक मौलिक मानव अधिकार है और हमारा संविधान मौलिक अधिकारों के एक भाग के रूप में समान अधिकार प्रदान करता है।
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं के पक्ष में अनुतोष प्रदान करते हुए कहा कि सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये आरक्षण के कार्यान्वयन में देरी नहीं कर सकती है और उसे छह महीने के भीतर आरक्षण प्रदान करने के उपायों को लागू करना होगा।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति कौन हैं?
- ट्रांसजेंडर समुदाय व्यक्तियों का एक विविध समूह है, जिनकी लिंग पहचान उनके जन्म के समय निर्धारित लिंग से भिन्न होती है।
- लिंग पहचान से तात्पर्य किसी व्यक्ति की अपने लिंग के बारे में आंतरिक भावना से है, जो पुरुष, महिला, दोनों का संयोजन या दोनों में से कोई भी नहीं हो सकता है।
- यह पहचानना महत्त्वपूर्ण है कि ट्रांसजेंडर लोग एक विविध समूह हैं जिनके अनुभव, पहचान और पृष्ठभूमि भिन्न-भिन्न हैं।
- उन्हें अन्य मुद्दों के अलावा सामाजिक कलंक, भेदभाव, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच से संबंधित अनूठी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) मामले में न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश क्या हैं?
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ एवं अन्य (2014) मामले में न्यायालय ने निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किये:
क्र. सं. |
दिशानिर्देश |
1. |
हमारे संविधान के भाग III के तहत उनके अधिकारों की सुरक्षा के उद्देश्य से, द्विआधारी लिंग के अलावा, हिजड़ों, किन्नरों को "तीसरे लिंग" के रूप में माना जाता है। |
2. |
ट्रांसजेंडर व्यक्ति के स्वयं के लिंग का निर्णय करने के अधिकार को भी बरकरार रखा गया है। |
3. |
केंद्र और राज्य सरकार को ऐसे व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने के लिये कदम उठाने चाहिये। |
4. |
केंद्र और राज्य सरकारों को अलग-अलग HIV सीरो निगरानी केंद्र संचालित करने का निर्देश दिया गया है। |
5. |
केंद्र और राज्य सरकारों को हिजड़ों/ट्रांसजेंडरों के सामने आने वाली समस्याओं जैसे भय, शर्म, लिंग भेद, सामाजिक दबाव, अवसाद, आत्महत्या की प्रवृत्ति, सामाजिक कलंक आदि का गंभीरता से समाधान करना चाहिये। |
6. |
केंद्र और राज्य सरकारों को अस्पतालों में ट्रांसजेंडरों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिये उचित कदम उठाने चाहिये और उन्हें अलग सार्वजनिक शौचालय और अन्य सुविधाएँ भी प्रदान करनी चाहिये। |
7. |
केंद्र और राज्य सरकारों को भी उनकी बेहतरी के लिये विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाएँ तैयार करने के लिये कदम उठाने चाहिये। |
8. |
केंद्र और राज्य सरकारों को जन जागरूकता उत्पन्न करने के लिये कदम उठाने चाहिये ताकि अल्पसंख्यकों को यह महसूस हो कि वे भी सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग हैं और उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिये। |
9. |
केंद्र और राज्य सरकारों को भी समाज में उनका सम्मान और स्थान पुनः प्राप्त करने के लिये कदम उठाने चाहिये, जो कभी उन्हें हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में प्राप्त था। |
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शासित करने वाले कानून क्या हैं?
- इस संबंध में संसद द्वारा पारित कानून ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 है।
- अधिनियम की धारा 2 (k) में ट्रांसजेंडर को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांसमेन और ट्रांस-वुमन, इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति, लिंग-विचित्र और किन्नर और हिजड़ा जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति शामिल होते हैं।
- अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- भेदभाव रहित: शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सुविधाओं में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, तथा आवागमन, संपत्ति और कार्यालय के अधिकारों की पुष्टि करता है।
- पहचान प्रमाण पत्र: यह विधेयक स्वयं-अनुभूत लिंग पहचान का अधिकार प्रदान करता है तथा ज़िला मजिस्ट्रेटों को बिना मेडिकल परीक्षण के प्रमाण पत्र जारी करने की आवश्यकता बताता है।
- चिकित्सा देखभाल: HIV निगरानी, चिकित्सा देखभाल तक पहुँच, लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी और बीमा कवरेज के साथ चिकित्सा सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद: सरकार को सलाह देने और शिकायतों का समाधान करने के लिये स्थापित।
- अपराध और दंड: बलपूर्वक श्रम, दुर्व्यवहार और अधिकारों से वंचित करने जैसे अपराधों के लिये कारावास (6 महीने से 2 वर्ष) और जुर्माने का प्रावधान है।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?
- आर. अनुश्री बनाम सचिव TNPSC एवं अन्य (2024)
- मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को रोज़गार और शिक्षा में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये अलग मानदंड स्थापित करने का निर्देश दिया, तथा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को वर्गीकृत करने में राज्य की निरंतर उलझन की आलोचना की।
- न्यायालय ने एक ट्रांसवुमन के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिसे योग्यता होने के बावजूद प्रमाण-पत्र सत्यापन से वंचित कर दिया गया था। न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक विशेष श्रेणी के रूप में मान्यता देने तथा उन्हें समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
- 6 सितंबर, 2018 को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंगटन नरीमन, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने IPC की धारा 377 को आंशिक रूप से अपराधमुक्त कर दिया।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अप्राकृतिक अपराधों को अपराध मानती है।
- इस प्रावधान को इस हद तक अपराधमुक्त कर दिया गया कि यह समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था।
- पीठ ने पाया कि यह अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- 6 सितंबर, 2018 को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रोहिंगटन नरीमन, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने IPC की धारा 377 को आंशिक रूप से अपराधमुक्त कर दिया।