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सांविधानिक विधि
भुला दिये जाने का अधिकार
« »22-Nov-2024
ABC बनाम राज्य एवं अन्य "ऐसा कोई कारण नहीं है कि किसी व्यक्ति को, जिसे कानून द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया हो, ऐसे आरोपों के अवशेषों से परेशान होने दिया जाए, जो जनता के लिये आसानी से सुलभ हों।" न्यायमूर्ति अमित महाजन |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि भुला दिये जाने का अधिकार भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त सम्मान के साथ जीने के अधिकार का हिस्सा है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने ABC बनाम राज्य एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।
ABC बनाम राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर न्यायालय रजिस्ट्री को निर्देश देने की मांग की गई कि आपराधिक मामले में दायर आदेशों और दलीलों से उसका नाम छिपाया जाए।
- उक्त व्यक्ति के विरुद्ध उपरोक्त कार्यवाही रद्द कर दी गई थी, इसलिये वह दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुआ।
- उसके अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इससे उसे अपूरणीय क्षति होगी तथा उसके सामाजिक जीवन या कैरियर की संभावनाएँ बाधित होंगी।
- उसने तर्क दिया कि वह ‘गोपनीयता के अधिकार’ और ‘भुला दिये जाने का अधिकार’ के तहत संरक्षण का हकदार है, जिन्हें अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है और मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने व्यवसायी और शिकायतकर्त्ता दोनों के नाम केस रिकॉर्ड और सर्च परिणामों से हटाने का निर्देश दिया।
- न्यायालय ने व्यवसायी को अपने निर्णय को छिपाने के लिये पोर्टलों और सार्वजनिक सर्च इंजनों के माध्यम से नाम के स्थान पर अनाम पहचानकर्त्ता लगाने की अनुमति दे दी।
- न्यायमूर्ति महाजन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और सर्च इंजनों से "गोपनीयता के अधिकार" और "भुला दिये जाने का अधिकार" के सिद्धांतों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है।
- न्यायालय ने संबंधित पक्षों की गोपनीयता की रक्षा के लिये आपराधिक मामले से संबंधित किसी भी अतिरिक्त सामग्री को हटाने की भी सलाह दी।
भुला दिये जाने का अधिकार क्या है?
- अर्थ:
- भुला दिये जाने का अधिकार व्यक्तियों को विशेष परिस्थितियों में अपनी निजी जानकारी को इंटरनेट, वेबसाइट या किसी अन्य सार्वजनिक मंच से हटाने का अधिकार देता है।
- इस अधिकार को ‘मिटाने का अधिकार’ भी कहा जाता है।
- मिटाने के अधिकार के नियम के पीछे नीति यह है कि जो कोई भी डेटा का उपयोग कर रहा है, उसके पास डेटा के मालिक की स्वैच्छिक सहमति है और इसलिये जब सहमति वापस ले ली जाती है, तो मालिक को अपना डेटा मिटाने का अधिकार होता है।
- ऐतिहासिक विकास:
- भुला दिये जाने के अधिकार का इतिहास फ्राँसीसी न्यायशास्त्र के 'विस्मरण के अधिकार' से संबंधित है।
- वर्ष 1998 में, मारियो कोस्टेजा गोंज़ालेज़ नामक एक स्पेनवासी वित्तीय कठिनाइयों से जूझ रहा था और इसलिये उसने नीलामी के लिये एक संपत्ति का विज्ञापन दिया, यह विज्ञापन इंटरनेट पर चला गया और उसकी सभी वित्तीय समस्याएँ ठीक हो जाने के बाद भी वहीं रहा।
- प्रतिष्ठा को हुए भारी नुकसान से दुखी होकर मारियो ने अंततः मामले को न्यायालय में ले जाया और इससे ‘भुला दिये जाने के अधिकार’ की अवधारणा का जन्म हुआ।
- यूरोपीय न्यायालय ने विशाल सर्च इंजन गूगल के विरुद्ध निर्णय दिया और कहा कि कुछ परिस्थितियों में यूरोपीय संघ के लोगों की जानकारी सर्च परिणामों और सार्वजनिक रिकॉर्ड डेटाबेस से हटाई जा सकती है।
वैश्विक स्तर पर स्थिति
- यूरोपीय संघ (EU)
- यूरोपीय संघ ने वर्ष 2014 में भुला दिये जाने के अधिकार को लागू किया था और यह कानून सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) का हिस्सा है।
- यूरोपीय संघ में भुला दिये जाने के अधिकार के मानदंड में शामिल हैं:
- जिस उद्देश्य के लिये डेटा एकत्रित किया गया था, अब उसकी आवश्यकता नहीं रह गई है।
- व्यक्ति डेटा के लिये अपनी सहमति वापस ले लेता है और इसका खंडन करने का कोई वैध आधार नहीं होता है।
- व्यक्तिगत डेटा का उपयोग विपणन उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है और व्यक्ति इस पर आपत्ति करता है।
- व्यक्तिगत डेटा को हटाने के अनुरोध को निम्नलिखित आधारों पर अस्वीकार किया जा सकता है:
- डेटा का उपयोग भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने के लिये किया जा रहा है।
- सार्वजनिक हित में किये जाने वाले कार्य को करने के लिये या संगठन के आधिकारिक प्राधिकार का प्रयोग करते समय उपयोग किया जाने वाला डेटा।
- संसाधित डेटा सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिये आवश्यक होता है और सार्वजनिक हित में होता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- अमेरिका में ऐसे कानून जो भुला दिये जाने के अधिकार से संबंधित हैं, प्रथम संशोधन का उल्लंघन करेंगे।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि फ्लोरिडा स्टार बनाम BJF (1989) के मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि स्वतंत्र प्रेस के लिये पहले संशोधन का संरक्षण किसी भी ऐसे कानून को रोकता है जो सत्य या शर्मनाक तथ्यों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाता हो, जब तक कि जानकारी कानूनी रूप से प्राप्त की गई हो।
- मार्टिन बनाम हर्स्ट कॉर्पोरेशन (2015) के मामले में कनेक्टिकट कोर्ट ने माना कि “ऐतिहासिक रूप से सटीक समाचार विवरणों” को हटाया नहीं जा सकता।
भारत में भुला दिये जाने के अधिकार पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?
- श्री वसुनाथन बनाम रजिस्ट्रार जनरल (2017)
- इस मामले में कर्नाटक न्यायालय ने कहा कि सामान्य रूप से महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मामलों और बलात्कार तथा संबंधित व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाले अत्यधिक संवेदनशील मामलों में ‘भुला दिये जाने के अधिकार’ की प्रवृत्ति का पालन किया जाना चाहिये।
- X बनाम इंडिया टुडे ग्रुप एवं अन्य (2024)
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने जॉन डो आदेश जारी कर X (पूर्व में ट्विटर) पर एक व्यवसायी के बारे में समाचार लेख और सोशल मीडिया पोस्ट हटाने के लिये कहा।
- ये पोस्ट और लेख वर्ष 2018 में उसके विरुद्ध दर्ज एक आपराधिक मामले से संबंधित थे, हालाँकि अगले वर्ष उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया था।
- न्यायमूर्ति विकास महाजन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस मामले में वादी के निजता के अधिकार को प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अधिक प्राथमिकता दी गयी है।
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी एवं अन्य बनाम भारत संघ (2017)
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के एक भाग के रूप में ‘भुला दिये जाने के अधिकार’ को मान्यता दी।
- न्यायालय ने इस अधिकार को स्वीकार किया, लेकिन स्पष्ट किया कि यह पूर्ण नहीं होना चाहिये तथा उन परिदृश्यों को रेखांकित किया जहाँ यह अधिकार लागू नहीं हो सकता है, जैसे सार्वजनिक हित, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अभिलेखीकरण, अनुसंधान आदि।
- न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अधिकार को मान्यता देने का अर्थ केवल यह होगा कि कोई व्यक्ति अपना व्यक्तिगत डेटा तब हटा सकेगा जब वह प्रासंगिक न हो या किसी वैध उद्देश्य की पूर्ति न करता हो।