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सांविधानिक विधि

निर्धनों को विधिक सहायता के संबंध में उच्चतम न्यायालय का दिशानिर्देश

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 01-Nov-2024

सुहास चकमा बनाम भारत संघ एवं अन्य

"जागरूकता ही कुंजी है" तथा जागरूकता फ़ैलाने के लिये पुलिस स्टेशनों, बस स्टैंडों एवं डाकघरों तथा रेलवे जैसे सार्वजनिक स्थानों पर निकटतम विधिक सहायता अधिकारी का पता एवं संपर्क नंबर की उपलब्धता के लिये पर्याप्त उपाय किये जाने चाहिये।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि "जागरूकता ही कुंजी है" तथा जागरूकता फ़ैलाने के लिये पुलिस स्टेशनों, बस स्टैंडों एवं डाकघरों तथा रेलवे जैसे सार्वजनिक स्थानों पर निकटतम विधिक सहायता अधिकारी का पता एवं संपर्क नंबर की उपलब्धता के लिये पर्याप्त उपाय किये जाने चाहिये।

सुहास चकमा बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दायर एक रिट याचिका में भारत संघ, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये एक रिट, आदेश या निर्देश जारी करने की मांग की गई है, ताकि कैदियों को भीड़भाड़ वाले एवं अस्वास्थ्यकर जेल की स्थितियों के कारण यातना या अमानवीय व्यवहार से बचाया जा सके।
  • 22 अप्रैल 2024 को उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विजय हंसारिया को इस मामले में सहायता के लिये एमिकस क्यूरी (न्यायिक मित्र) नियुक्त किया। इसके बाद 9 मई 2024 को श्री के. परमेश्वर (एमिकस क्यूरी) एवं राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का प्रतिनिधित्व करने वाली सुश्री रश्मि नंदकुमार को मामले में शामिल किया गया।
  • एमिकस क्यूरी ने दोषियों को मुफ्त विधिक सहायता के उनके अधिकार के विषय में सूचित करने के लिये एक पत्र का प्रारूप का सुझाव दिया, जिसे बाद में नालसा के परामर्श से संशोधित किया गया और न्यायालय द्वारा अनुमोदित किया गया।
  • 15 जुलाई 2024 को, नालसा ने सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSA) को स्वीकृति पत्र का प्रारूप प्रेषित किया तथा कैदियों की मुफ्त विधिक सहायता तक मिलने के लिये डेटा के लिये निवेदन किया। सुश्री नंदकुमार ने 9 सितंबर 2024 को एक विस्तृत नोट प्रस्तुत किया, जिसमें कैदियों के लिये मुफ्त विधिक सहायता तक पहुँच सुनिश्चित करने में प्रतिक्रियाओं एवं प्रगति को रेखांकित किया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश जारी किये:

  • सतत प्रशंसा एवं प्रयासों की निरंतरता: न्यायालय NALSA, SLSA एवं DLSA के प्रयासों की सराहना करता है तथा उन्हें विधिक सहायता प्रदान करने के संवैधानिक एवं सांविधिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किये जाने वाले प्रयास को प्रोत्साहित करता है।
  • SOP का कुशल संचालन: SLSA एवं DLSA के सहयोग से NALSA को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विधिक सहायता सेवाओं एवं PLAC तक अभिगम पर SOP प्रभावी ढंग से संचालित हो, तथा क्षेत्र-स्तरीय मुद्दों को संबोधित करने के लिये समय-समय पर उपायों को अद्यतन किया जाए।
  • PLAC की बढ़ी हुई निगरानी: विभिन्न स्तरों पर विधिक सेवा प्राधिकरणों को PLAC का मूल्यांकन करने के लिये सशक्त निगरानी एवं समीक्षा प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
  • सांख्यिकीय विश्लेषण एवं सुधार: विधिक सेवा प्राधिकरणों को नियमित रूप से डेटा को अद्यतन एवं विश्लेषण करना चाहिये, तथा आवश्यकतानुसार सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिये।
  • विधिक सहायता बचाव परामर्शदाता प्रणाली का प्रभावी संचालन: प्रणाली की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये विधिक सहायता बचाव परामर्शदाताओं के लिये सेवा शर्तों का आवधिक निरीक्षण एवं सुधार सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • सुदृढ़ जागरूकता तंत्र: विधिक सहायता सेवाओं के विषय में जनता को सूचित करने के लिये एक व्यापक, नियमित रूप से अद्यतन जागरूकता तंत्र लागू किया जाना चाहिये, विशेष रूप से स्थानीय भाषाओं एवं सुलभ सार्वजनिक क्षेत्रों में प्रचार अभियानों के माध्यम से।
  • विधिक सहायता की सुलभता को बढ़ावा देना:
    • सार्वजनिक स्थानों पर जानकारी प्रदर्शित करें तथा स्थानीय भाषा में प्रचार अभियान चलाएँ।
    • दैनिक जीवन को बाधित किये बिना जागरूकता बढ़ाने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में नुक्कड़ नाटक जैसे रचनात्मक तरीके अपनाएँ।
  • UTRC के लिये SOP-2022 की समीक्षा: विचाराधीन समीक्षा समितियों के लिये SOP-2022 पर समय-समय पर समीक्षा एवं अद्यतन लागू किये जाने चाहिये।
  • UTRC अंतराल को संबोधित करना: UTRC द्वारा पहचाने गए व्यक्तियों एवं उनकी रिहाई के लिये अनुशंसित या सफलतापूर्वक आवेदन करने वाले व्यक्तियों के बीच असमानता को NALSA एवं अन्य अधिकारियों द्वारा संबोधित किया जाना चाहिये।
  • "न्याय तक शीघ्र अभिगम" ढाँचे का परिश्रमपूर्वक पालन: गिरफ्तारी से पहले एवं रिमांड चरणों में मुकदमेबाजी से पहले सहायता के लिये नालसा के ढाँचे का सक्रिय रूप से पालन किया जाना चाहिये तथा नियमित रूप से इसकी समीक्षा की जानी चाहिये।
  • दोषियों के साथ समय-समय पर बातचीत: विधिक सेवा प्राधिकरणों को उन दोषियों के साथ बातचीत करनी चाहिये जिन्होंने अपील नहीं की है, उन्हें मुफ्त विधिक सहायता के उनके अधिकार के विषय में जानकारी देनी चाहिये।
  • JVL एवं PLV के साथ नियमित संपर्क: जेल विजिटिंग अधिवक्ताओं एवं पैरा लीगल वालंटियर्स के साथ नियमित संपर्क होना चाहिये ताकि उनका ज्ञान अद्यतन बना रहे और सिस्टम कुशलतापूर्वक कार्य करे।
  • अधिवक्ताओं के लिये सतत शिक्षा एवं संसाधन: विधिक सेवा प्राधिकरणों को मुकदमे-पूर्व एवं बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं के लिये सतत शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये, विधिक संसाधनों एवं ऑनलाइन पुस्तकालयों तक अभिगम प्रदान करनी चाहिये।
  • डिजिटल रिपोर्टिंग प्रणाली: DLSA, SLSA एवं NALSA को वास्तविक समय के डेटा अपडेट और निगरानी की सुविधा के लिये एक डिजिटल रिपोर्टिंग प्रक्रिया को लागू करना चाहिये।
  • सरकारी अधिकारियों से सहयोग: भारत संघ एवं राज्य सरकारों को इन निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरणों का समर्थन करना चाहिये।
  • न्यायिक दस्तावेजों में निःशुल्क विधिक सहायता की सूचना: रजिस्ट्री इस निर्णय को सभी उच्च न्यायालयों को भेजेगी, जिसमें सुझाव दिया जाएगा कि वे सभी न्यायालय निर्णयों एवं नोटिसों के साथ निःशुल्क विधिक सहायता की सूचना प्रदान करने के लिये अभ्यास निर्देश जारी करें। इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालयों को अपनी वेबसाइटों पर विधिक सहायता की सूचना प्रदर्शित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।

निःशुल्क विधिक सहायता के संबंध में विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 39A: समान न्याय एवं निःशुल्क विधिक सहायता
    • संविधान के भाग IV अर्थात राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) के अंतर्गत निःशुल्क विधिक सहायता का उपबंध है।
    • इसे 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।
    • इस उपबंध में यह प्रावधानित किया गया है कि राज्य विशेष रूप से उपयुक्त विधि या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए।
    • इस प्रकार, उपरोक्त संवैधानिक लक्ष्य है।
  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (एलएसए अधिनियम)
    • समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त एवं सक्षम विधिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरणों का गठन करने के लिये विधि बनाया गया है।
    • इस विधि का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी नागरिक को किसी भी आर्थिक या अन्य अक्षमता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए।
    • LSA अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का गठन किया गया है।
    • LSA की धारा 4 में NALSA के कार्यों का उल्लेख किया गया है तथा प्रासंगिक कार्य इस प्रकार हैं:
      • इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये नीतियाँ एवं सिद्धांत निर्धारित करना।
      • इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत विधिक सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सबसे प्रभावी एवं किफायती योजनाएँ तैयार करना।
      • अपने निपटान में उपलब्ध निधियों का उपयोग करना एवं राज्य प्राधिकरणों एवं जिला प्राधिकरणों को निधियों का उचित आवंटन करना।
      • आवधिक अंतराल पर विधिक सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी एवं मूल्यांकन करना तथा इस अधिनियम के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा पूर्णतः या आंशिक रूप से कार्यान्वित कार्यक्रमों एवं योजनाओं के स्वतंत्र मूल्यांकन की व्यवस्था करना।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 341
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अंतर्गत यह प्रावधान कुछ मामलों में राज्य के व्यय पर अभियुक्तों को विधिक सहायता प्रदान करता है।
    • धारा 341 (1) में प्रावधान है कि न्यायालय निम्नलिखित मामलों में राज्य के खर्च पर अभियुक्तों के बचाव के लिये एक अधिवक्ता नियुक्त कर सकता है:
      • जहाँ न्यायालय के समक्ष किसी वाद या अपील में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी अधिवक्ता द्वारा नहीं किया जाता है, तथा
      • जहाँ न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्त के पास अधिवक्ता नियुक्त करने के लिये पर्याप्त साधन नहीं हैं
    • धारा 341 (2) में प्रावधान है कि उच्च न्यायालय राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से निम्नलिखित के लिये नियम बना सकता है:
      • उप-धारा (1) के अधीन बचाव के लिये अधिवक्ताओं के चयन की पद्धति न्यायालयों द्वारा
      • ऐसे अधिवक्ताओं को दी जाने वाली सुविधाएँ सरकार द्वारा ऐसे अधिवक्ताओं को देय फीस
      • तथा सामान्यतः उप-धारा (1) के प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिये
    • धारा 341 (3) में यह प्रावधान है कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निर्देश दे सकती है कि अधिसूचना में निर्दिष्ट तिथि से उप-धारा (1) एवं (2) के प्रावधान राज्य में अन्य न्यायालयों के समक्ष किसी भी वर्ग के परीक्षणों के संबंध में उसी तरह लागू होंगे जैसे वे सत्र न्यायालयों के समक्ष परीक्षणों के संबंध में लागू होते हैं।

निर्णयज विधियाँ

  • हुसैनारा खातून एवं अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, पटना (1980)
    • ऐसी प्रक्रिया जो किसी अभियुक्त व्यक्ति को विधिक सेवाएँ उपलब्ध नहीं कराती, जो अधिवक्ता का व्यय वहन करने में असमर्थ है तथा इसलिये उसे विधिक सहायता के बिना ही वाद से गुजरना पड़ता है, उसे संभवतः "उचित, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत" नहीं माना जा सकता।
    • किसी कैदी के लिये जो न्यायालय की प्रक्रिया के माध्यम से अपनी उन्मुक्ति चाहता है, यह उचित, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रक्रिया का एक अनिवार्य तत्त्व है कि उसे विधिक सेवाएँ उपलब्ध होनी चाहिये।
  • माधव हयावदनराव होसकोट बनाम महाराष्ट्र राज्य (1978)
    • कैदी के लिये अधिवक्ता प्राप्त करने का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है।
    • विधिक सहायता का अधिकार राज्य का कर्त्तव्य है, न कि सरकार का दान।
    • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वतंत्रता के सार के लिये प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय अपरिहार्य हैं।