होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
TPA की धारा 106
« »06-Dec-2024
सनातन वर्धन (अब मृत) अपने एलआर बनाम रानू सेन एवं अन्य के माध्यम से "यह स्पष्ट है कि जब पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद पट्टेदार का कब्ज़ा पट्टाकर्त्ता की सहमति से होता है, तो वह 'अभिधारी द्वारा धारण' होगा, लेकिन यदि उसका कब्ज़ा पट्टाकर्त्ता की सहमति से नहीं है, तो वह केवल 'अननुज्ञात अभिधारी' है।" न्यायमूर्ति शशिकांत मिश्रा |
स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति शशिकांत मिश्रा की पीठ ने कहा कि जहाँ अभिधृति लंबे समय से चल रही है, वहाँ उसे बेदखल करने से पहले कम-से-कम 15 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिये।
- उड़ीसा उच्च न्यायालय ने सनातन वर्धन (अब मृत) अपने एलआर बनाम रानू सेन एवं अन्य के माध्यम से, के मामले यह निर्णय दिया।
सनातन वर्धन (अब मृत) अपने एलआर बनाम रानू सेन एवं अन्य के माध्यम से के मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह वाद वादी-प्रतिवादियों द्वारा प्रतिवादी को विवादित संपत्ति से बेदखल करने के लिये दायर किया गया था।
- वादग्रस्त संपत्ति सिसिर चौधरी सेन (वादी के पूर्ववर्ती) की थी, जिन्होंने प्रतिवादी को 300 रुपए मासिक किश्त पर एक वर्ष के लिये किराये पर रखा था।
- प्रतिवादी ने सिसिर को उसकी मृत्यु तक मकान का किराया दिया, जिसके बाद संपत्ति पर उत्तराधिकार प्राप्त करने वाले वादी ने उससे किराया स्वीकार कर लिया
- वादी ने प्रतिवादियों से 800 रुपए प्रति माह का बढ़ा हुआ किराया देने को कहा।
- हालाँकि, उन्होंने न तो भुगतान किया और न ही बकाया राशि का भुगतान किया।
- 15 दिसम्बर, 1996 को विवादित मकान जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पाया गया, जिसके लिये वादीगण ने प्रतिवादियों से मकान खाली करने को कहा, लेकिन उन्होंने मकान खाली नहीं किया तथा अक्तूबर 1995 से बढ़ा हुआ किराया भी अदा नहीं किया।
- इसलिये, यह वाद दायर किया गया।
- प्रतिवादी का मामला यह है कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 106 के तहत कोई वैध नोटिस जारी नहीं किया गया था।
- प्रतिवादी ने किराया चुकाने के अपने प्रयासों का विस्तृत विवरण दिया। उसने किराया बढ़ाने के लिये बाद में भेजे गए कानूनी नोटिस का विरोध किया।
- ट्रायल कोर्ट ने माना कि यहाँ किरायेदारी को मनमाने किरायेदारी के तौर पर माना जाएगा और यह माना गया कि प्रतिवादी को वाद वाले घर से बेदखल करने के लिये धारा 106 के तहत नोटिस देना जरूरी है। इसलिये ट्रायल कोर्ट ने वाद खारिज कर दिया।
- यह अपील प्रथम अपीलीय न्यायालय में दायर की गई जिसमें न्यायालय ने निम्नलिखित निर्णय दिये:
- पट्टा समझौता अपंजीकृत था और केवल एक वर्ष के लिये वैध था, इसलिये इसे भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 के अनुसार महीने-दर-महीने की किरायेदारी माना गया।
- आगे यह माना गया कि प्रतिवादी सहनशीलता के आधार पर किरायेदार बना है और TPA की धारा 111 (a) के तहत किरायेदारी समाप्त करने के लिये किसी नोटिस की आवश्यकता नहीं थी।
- इसलिये, इस मामले में न्यायालय ने वादी की अपील स्वीकार कर ली तथा प्रतिवादी को विवादित संपत्ति खाली करने का निर्देश दिया।
- प्रतिवादी ने दूसरी अपील पेश की, जिसमें निम्नलिखित कानूनी प्रश्न उठाया गया था कि "क्या अपीलीय न्यायालय का यह निष्कर्ष कि TPA की धारा 106 के तहत प्रतिवादी को घर खाली करने के लिये कोई नोटिस देने की आवश्यकता नहीं है, कानूनी रूप से टिकने योग्य है?"
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि यह स्वीकार किया जाता है कि पट्टा एक वर्ष के लिये था और इसलिये TPA की धारा 111 (a) के आधार पर पट्टा एक वर्ष की समाप्ति पर स्वतः ही निर्धारित हो जाता है।
- न्यायालय ने "अभिधारी द्वारा धारण" और "अननुज्ञात अभिधारी" के बीच अंतर स्पष्ट किया।
- जब पट्टेदार का कब्ज़ा पट्टे की समाप्ति के बाद पट्टाकर्त्ता की सहमति से होता है तो वह "अभिधारी द्वारा धारण" होगा, लेकिन यदि पट्टाकर्ता की सहमति से जारी नहीं रहता है, तो वह केवल "अननुज्ञात अभिधारी" है।
- न्यायालय ने कहा कि TPA की धारा 106 के तहत 15 दिन के नोटिस की आवश्यकता होती है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने माना कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने प्रतिवादी को किरायेदार मानकर गलती की है, न कि उसे किरायेदार मानकर।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि प्रथम अपीलीय न्यायालय ने यह मान कर अवैधानिकता की है कि TPA की धारा 106 के अंतर्गत कोई नोटिस आवश्यक नहीं है।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों के आधार पर अपील सफल हो गई है।
TPA की धारा 106 क्या है?
- TPA की धारा 106 लिखित संविदा या स्थानीय उपयोग के अभाव में कुछ पट्टों की अवधि का प्रावधान करती है।
- TPA की धारा 106 (1) में प्रावधान है कि:
- जब पट्टा कृषि और विनिर्माण प्रयोजनों के लिये हो:
- इसे डिफाॅल्ट रूप से वर्ष दर वर्ष का पट्टा माना जाएगा।
- पट्टादाता या पट्टाधारक दोनों में से कोई भी पट्टा समाप्त कर सकता है।
- समाप्ति के लिये छह महीने का नोटिस देना आवश्यक है।
- जब पट्टा अन्य प्रयोजनों के लिये हो:
- इसे डिफाॅल्ट रूप से महीने-दर-महीने पट्टा माना जाएगा।
- पट्टा देने वाला या पट्टाधारक दोनों में से कोई भी पट्टे को समाप्त कर सकता है।
- समाप्ति के लिये पंद्रह दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
- जब पट्टा कृषि और विनिर्माण प्रयोजनों के लिये हो:
- धारा 106 (2) के अनुसार उपधारा (1) में उल्लिखित अवधि नोटिस प्राप्ति की तिथि से प्रारंभ होगी।
- धारा 106 (3) के अनुसार उपधारा (1) के अंतर्गत नोटिस केवल इसलिये अवैध नहीं माना जाएगा कि उसमें उल्लिखित अवधि उस उपधारा के अंतर्गत निर्दिष्ट अवधि से कम है, जहाँ कोई वाद या कार्यवाही उस उपधारा में उल्लिखित अवधि की समाप्ति के बाद दायर की जाती है।
- धारा 106 (4) के अनुसार नोटिस की पूर्व आवश्यकताएँ प्रदान की गई हैं:
- नोटिस लिखित रूप में होना चाहिए, तथा इसे देने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित होना चाहिये।
- इसे अवश्य भेजा जाना चाहिये:
- डाक द्वारा पक्षकार को भेजा जाना चाहिये।
- या पक्षकार को या उसके परिवार या सेवकों में से किसी को उसके निवास पर व्यक्तिगत रूप से दिया जाना चाहिये, या (यदि ऐसी निविदा या डिलीवरी व्यवहार्य नहीं है) संपत्ति के किसी प्रमुख भाग पर चिपका दिया जाना चाहिये।
"अभिधारी द्वारा धारण" और "अननुज्ञात अभिधारी" कौन होता है?
- जहाँ पट्टे की समाप्ति के बाद पट्टेदार का कब्ज़ा पट्टाकर्त्ता की सहमति से होता है, वहाँ वह अभिधारी द्वारा धारण होता है।
- जहाँ पट्टे की समाप्ति के पश्चात् पट्टेदार का कब्जान पट्टाकर्त्ता की सहमति के बिना होता है, वहाँ वह अननुज्ञात अभिधारी होता है।
- TPA की धारा 116 में धारण करने के प्रभाव को बताया गया है। इसमें प्रावधान है:
- यदि पट्टेदार मूल पट्टा समाप्त होने के बाद भी संपत्ति पर कब्ज़ा बनाए रखता है और पट्टाकर्त्ता किराया स्वीकार कर लेता है या अन्यथा उसके कब्ज़े को जारी रखने की सहमति दे देता है, तो पट्टा स्वतः ही नवीनीकृत माना जाता है।
- पट्टे का नवीकरण डिफाॅल्ट रूप से वर्ष दर वर्ष या माह दर माह होता है, जो संपत्ति पट्टे के मूल उद्देश्य पर निर्भर करता है, जैसा कि पिछली धारा 106 में निर्दिष्ट किया गया है।
- यह नवीकरण तंत्र पट्टाकर्त्ता और पट्टाधारक के बीच किसी भी विपरीत समझौते की अनुपस्थिति में लागू होता है, तथा प्रभावी रूप से पट्टे को जारी रखने के लिये एक डिफाॅल्ट तंत्र प्रदान करता है, जब दोनों पक्ष इस प्रकार कार्य करना जारी रखते हैं मानो मूल पट्टा अभी भी प्रभावी होता है।
- राज किशोर बिस्वाल एवं अन्य बनाम बिंबाधर बिस्वाल एवं अन्य (1992) के मामले में न्यायालय ने अभिधारी द्वारा धारण और अननुज्ञात अभिधारी के संबंध में निम्नलिखित टिप्पणी की थी:
- "अननुज्ञात अभिधारी" एक अभिव्यक्ति है जो उसे अतिचारी से अलग करने के लिये मात्र एक कल्पना है।
- अतिचारी का कब्ज़ा, उसके आरंभ में तथा उसके जारी रहने दोनों में ही सदोष है, जबकि "अननुज्ञात अभिधारी" के मामले में उसका कब्ज़ा, उसके आरंभ में तो सही था, लेकिन किरायेदारी की समाप्ति के बाद उसका जारी रहना सदोष हो गया।
- 'मकान मालिक' और 'अननुज्ञात अभिधारी' के बीच पट्टाकर्त्ता और पट्टाधारक के रूप में कोई संबंध नहीं है और उसके निष्कासन के लिये वाद दायर करने से पहले TPA की धारा 106 के तहत नोटिस देना आवश्यक नहीं है।
- कब्ज़े की मांग करने पर या मकान मालिक द्वारा बिना सूचना दिये प्रवेश करने पर या किरायेदार के चले जाने पर अननुज्ञात अभिधारी हो जाती है।