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पारिवारिक कानून
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14(1)
« »30-Aug-2023
एम. शिवदासन (मृत) कानूनी प्रतिनिधि के माध्यम से बनाम ए.सौदामिनी (मृत) कानूनी प्रतिनिधि और अन्य के माध्यम से। "हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत अधिकारों का दावा करने के लिये एक महिला के लिये संपत्ति पर कब्ज़ा आवश्यक है"। न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और सुधांशु धूलिया |
स्रोत- उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने कानूनी प्रतिनिधियों और अन्य के माध्यम से एम. सिवादासन (मृत) बनाम ए.सौदामिनी (मृत) के मामले में कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की धारा 14(1) के तहत अधिकारों का दावा करने के लिए एक हिंदू महिला के पास संपत्ति का कब्ज़ा होना चाहिये।
पृष्ठभूमि
- किसी संपत्ति पर पैतृक अधिकार का दावा करने के लिये, अपीलकर्त्ताओं ने केरल में ट्रायल कोर्ट के समक्ष विभाजन और मध्यवर्ती लाभ (mesne profit) पाने के लिये मुकदमा दायर किया था।
- ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर यह मुकदमा खारिज कर दिया कि जिस महिला से वे अपना अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, कभी भी संपत्ति उसके कब्जे में नहीं थी और इसलिये हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की धारा 14 (1) लागू नहीं थी।
- ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष को प्रथम अपीलीय न्यायालय और अंततः केरल उच्च न्यायालय ने दूसरी अपील में बरकरार रखा।
- इसके बाद, उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी।
- ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए उच्चतम न्यायालय ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया।
मध्यवर्ती लाभ (mesne profit)
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 2 मध्यवर्ती लाभ से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि संपत्ति के न्यूनतम लाभ का अर्थ उन लाभों से है जो ऐसी संपत्ति पर गलत तरीके से कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति को वास्तव में प्राप्त हुए हैं या साधारण परिश्रम से प्राप्त हो सकते हैं, साथ ही ऐसे लाभों पर ब्याज भी शामिल है, लेकिन इसमें गलत तरीके से कब्जा की गई संपत्ति पर उस व्यक्ति द्वारा किये गए सुधारों के कारण होने वाले लाभ शामिल नहीं होंगे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि धारा 14 (1) का इस मामले में कोई उपयोग नहीं है क्योंकि धारा 14 (1) का आवश्यक घटक इस धारा के तहत अधिकारों का दावा करने के लिये एक हिंदू महिला के लिये संपत्ति पर कब्ज़ा है।
- न्यायालय ने यह कहा कि इस अधिनियम की धारा 14 की उपधारा (1) के तहत दावा कायम रखने के लिये कब्ज़ा एक शर्त थी। हिंदू महिला के पास न केवल संपत्ति होनी चाहिये, बल्कि उसके द्वारा संपत्ति अर्जित भी की होनी चाहिये थी। ऐसा अधिग्रहण या तो विरासत या वसीयत के माध्यम से या विभाजन के माध्यम से या भरण-पोषण के बदले में या भरण-पोषण के बकाया के रूप में या उपहार द्वारा या अपने स्वयं के कौशल या परिश्रम से या खरीद या आदेश द्वारा होना चाहिये।
कानूनी प्रावधान
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
- इसे 17 जून, 1956 को हिंदुओं के बीच निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून में संशोधन और संहिताबद्ध करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने सहदायिक संपत्ति के प्रावधानों में संशोधन किया, जिससे मृतक की बेटियों को बेटों के समान अधिकार दिये गए और उन्हें समान देनदारियों के अधीन कर दिया गया।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14
- धारा 14 एक महिला हिंदू की संपत्ति से संबंधित है और इसे उसकी पूर्ण संपत्ति मानती है। यह कहती है कि हिन्दू नारी की सम्पत्ति उसकी आत्यंतिकतः अपनी सम्पत्ति होगी--(1) हिन्दू नारी के कब्जे में की कोई भी सम्पत्ति, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व या पश्चात् अर्जित की गई हो, उसके द्वारा पूर्ण स्वामी के तौर पर न कि परिसीमित स्वामी के तौर पर धारित की जाएगी।
स्पष्टीकरण--इस उपधारा में “सम्पत्ति” के अंतर्गत वह जंगम और स्थावर सम्पत्ति आती है जो हिन्दू नारी ने विरासत द्वारा अथवा वसीयत द्वारा अथवा विभाजन में अथवा भरण-पोषण के या भरण-पोषण की बकाया के बदले में अथवा अपने विवाह के पूर्व या विवाह के समय या पश्चात् दान द्वारा किसी व्यक्ति से, चाहे वह सम्बन्धी हो या न हो, अथवा अपने कौशल या परिश्रम द्वारा अथवा क्रय द्वारा अथवा चिरभोग द्वारा अथवा किसी अन्य रीति से, चाहे वह कैसी ही क्यों न हो, अर्जित की हो और ऐसी सम्पत्ति भी जो इस अधिनियम के प्रारम्भ से अव्यवहित पूर्व स्त्रीधन के रूप में उसके द्वारा धारित थी।
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट कोई बात ऐसी किसी सम्पत्ति पर लागू नहीं होगी जो दान अथवा विल द्वारा या अन्य किसी 'लिखत के अधीन सिविल न्यायालय की डिक्री या आदेश के अधीन या पंचाट के अधीन अर्जित की गई हो यदि दान, विल या अन्य लिखत अथवा डिग्री, आदेश या पंचाट के निबन्धन ऐसी सम्पत्ति में निर्वन्धित सम्पदा विहित करते हों।
- चौधरी बनाम अजुधिया (2003) में, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना कि यह बात मायने नहीं रखती कि महिला ने संपत्ति कैसे अर्जित की और यदि उसके पास कोई संपत्ति है, तो वह संपत्ति उसकी पूर्ण संपत्ति मानी जाती है।