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सिविल कानून
आयकर अधिनियम की धारा 151
« »27-Sep-2024
अभिनव जिंदल HUF बनाम ITO “कराधान एवं अन्य संविधियाँ, 2020 आयकर अधिनियम की धारा 151 में उल्लिखित मूल्यांकन को पुनः कार्यान्वित करने के लिये स्वीकृत शक्तियों में कोई परिवर्द्धन नहीं करता है।” न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा एवं न्यायमूर्ति रविन्द्र डुडेजा। |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अवधारित किया कि कराधान एवं अन्य संविधियाँ, 2020 (TOLA) प्राधिकरण के सक्षम प्राधिकारी को विस्तारित समय सीमा के अंदर कार्य करने की अनुमति देता है, लेकिन आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 151 में अनुमोदित प्रक्रिया में कोई परिवर्द्धन नहीं करता है। धारा 151 के अंतर्गत, आयुक्त की स्वीकृत के बिना धारा 148 के अंतर्गत नोटिस चार वर्ष बाद जारी नहीं किये जा सकते।
- न्यायालय ने पाया कि यदि इस अवधि के बाद नोटिस जारी किया जाता है, तो यह आवश्यक अनुमोदन प्रक्रियाओं का अनुपालन नहीं करता है।
- न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा एवं न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा ने अभिनव जिंदल HUF बनाम ITO के मामले में यह निर्णय दिया।
अभिनव जिंदल HUF बनाम ITO मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ताओं ने कर निर्धारण वर्ष 2015-16 के लिये आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के अंतर्गत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस की वैधता को चुनौती दी।
- इन पुनर्मूल्यांकन को चुनौती देने का प्राथमिक आधार आयकर अधिनियम की धारा 151 का कथित उल्लंघन था, जो पुनर्मूल्यांकन नोटिस जारी करने की स्वीकृति से संबंधित है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि पुनर्मूल्यांकन प्रारंभ करने की स्वीकृति अधिनियम की धारा 151(1) के अंतर्गत उच्च अधिकारियों के बजाय संयुक्त आयकर आयुक्त (JCIT) द्वारा दी गई थी।
- नोटिस प्रासंगिक मूल्यांकन वर्ष से चार वर्ष की समाप्ति के बाद जारी किये गए थे, जिसके विषय में याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया कि धारा 151(1) के अनुसार उच्च अधिकारियों से अनुमोदन की आवश्यकता है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि संशोधित धारा 151 (वित्त अधिनियम 2021 के बाद) के अंतर्गत भी, जिसने "निर्दिष्ट प्राधिकरण" की अवधारणा प्रस्तुत की, JCIT द्वारा अनुमोदन मान्य नहीं होगा।
- प्रतिवादियों (कर अधिकारियों) ने कराधान एवं अन्य संविधियाँ (कुछ प्रावधानों में छूट एवं संशोधन) अधिनियम, 2020 (TOLA) के प्रावधानों के आधार पर अपने कार्यों का बचाव किया, जिसने COVID-19 महामारी के कारण समय सीमा बढ़ा दी थी।
- कर अधिकारियों ने तर्क दिया कि TOLA ने उन्हें सामान्य समय सीमा समाप्त होने के बावजूद पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही प्रारंभ करने की अनुमति दी, तथा इसलिये, JCIT द्वारा धारा 151 (2) के अंतर्गत अनुमोदन पर्याप्त था।
- पक्षकारों के बीच इस तथ्य को लेकर विवाद था कि धारा 151 का कौन सा संस्करण लागू होना चाहिये - वित्त अधिनियम 2021 से पहले का संस्करण या संशोधित संस्करण।
- याचिकाकर्त्ताओं ने नोटिस जारी करने की वास्तविक तिथि के विषय में भी चिंता व्यक्त की, क्योंकि कुछ नोटिस डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित थे तथा अप्रैल 2021 के बाद दिये गए, जब नई पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था लागू हुई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने माना कि TOLA (कराधान एवं अन्य संविधियाँ (कुछ प्रावधानों में छूट एवं संशोधन) अधिनियम, 2020) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 151 के संचालन को प्रभावित या संशोधित नहीं करता है।
- TOLA ने धारा 151 के मूल प्रावधानों में कोई परिवर्द्धन किये बिना, निर्दिष्ट प्राधिकारियों को नोटिस जारी करने या स्वीकृति देने के लिये केवल समय-सीमा बढ़ा दी।
- न्यायालय ने नोटिस की तिथि (31 मार्च, 2021) और डिजिटल हस्ताक्षर की तिथि (1 अप्रैल, 2021) के बीच विसंगति का उल्लेख किया, तथा तंत्र के कारण होने वाले विलंब के कारण प्रतिवादियों के स्पष्टीकरण को स्वीकार किया।
- न्यायालय ने TOLA की धारा 3 की व्याख्या 20 मार्च 2020 तथा 31 दिसंबर 2020 के बीच आने वाली सांविधिक समय सीमा को 31 मार्च 2021 तक या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित बाद की तिथि तक बढ़ाने के रूप में की।
- न्यायालय ने देखा कि वित्त अधिनियम 2021, जो 1 अप्रैल 2021 से लागू हुआ, TOLA की प्रारंभिक विस्तार अवधि के बाद अधिनियमित किया गया था।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि TOLA को महामारी के कारण सांविधिक सीमाओं को दूर करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, न कि नए अधिकार क्षेत्र प्रदान करने या निर्दिष्ट अधिनियमों के अंदर मौजूदा शक्ति संरचनाओं को बदलने के लिये।
- न्यायालय ने माना कि TOLA का निर्वचन आयकर अधिनियम की धारा 151 द्वारा निर्धारित शक्ति या वर्गीकरण के वितरण में संशोधन के रूप में नहीं की जा सकती।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि TOLA द्वारा प्रदान किया गया अतिरिक्त समय धारा 151 द्वारा स्थापित पदानुक्रम या संरचना को संशोधित नहीं करता है।
- न्यायालय ने कहा कि पुनर्मूल्यांकन के लिये अनुमोदन, TOLA के विस्तार की परवाह किये बिना, धारा 151 में निर्दिष्ट समय-सीमा पर आधारित होना चाहिये।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि यदि TOLA की विस्तारित समयसीमा के अंतर्गत पुनर्मूल्यांकन प्रारंभ भी कर दिया गया, तो अनुमोदन प्रदान करने के लिये अधिकृत प्राधिकारी, प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष से बीते समय के आधार पर, धारा 151 में निर्दिष्ट के अनुसार ही रहेगा।
आयकर अधिनियम 1961
- आयकर अधिनियम 1961 भारत में एक व्यापक विधि है जो व्यक्तियों एवं व्यवसायों के लिये आय के कराधान को नियंत्रित करता है।
- यह 1 अप्रैल, 1962 को लागू हुआ तथा देश में आयकर एवं सुपर-टैक्स की गणना, लगाने व संग्रह करने के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
- यह अधिनियम विगत वर्ष (जब आय अर्जित की जाती है) और मूल्यांकन वर्ष (जब आय पर कर लगाया जाता है) जैसी महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं को परिभाषित करता है और कर अधिकारियों, मूल्यांकनों और उच्च न्यायालयों में अपील के लिये संरचना स्थापित करता है।
आयकर अधिनियम 1961 की धारा 151 क्या है?
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 151 धारा 148 के अंतर्गत नोटिस जारी करने के लिये स्वीकृति हेतु प्रक्रिया निर्धारित करती है।
- यह धारा प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद से बीते समय के आधार पर स्वीकृति देने के लिये द्वि-स्तरीय प्रणाली स्थापित करती है।
- उप-धारा (1) के अनुसार, यदि प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति से चार वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, तो धारा 148 के अंतर्गत नोटिस केवल उच्च अधिकारियों की संतुष्टि एवं अनुमोदन से जारी किया जा सकता है, अर्थात्:
- प्रधान मुख्य आयुक्त
- मुख्य आयुक्त
- प्रधान आयुक्त
- आयुक्त
- उप-धारा (1) में उल्लिखित उच्च अधिकारियों को कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों के आधार पर संतुष्ट होना चाहिये कि यह ऐसा नोटिस जारी करने के लिये युक्तियुक्त मामला है।
- उप-धारा (2) उन मामलों से संबंधित है, जहाँ प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष के अंत से चार वर्ष से कम समय बीत चुका है।
- उप-धारा (2) के अंतर्गत आने वाले मामलों में, यदि कर निर्धारण अधिकारी संयुक्त आयुक्त के पद से नीचे है, तो नोटिस केवल संयुक्त आयुक्त की संतुष्टि एवं अनुमोदन से जारी किया जा सकता है।
- संयुक्त आयुक्त को कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों के आधार पर संतुष्ट होना चाहिये कि यह ऐसा नोटिस जारी करने के लिये उपयुक्त मामला है।
- उपधारा (3) स्पष्ट करती है कि स्वीकृति देने वाले अधिकारियों (प्रधान मुख्य आयुक्त, मुख्य आयुक्त, प्रधान आयुक्त, आयुक्त या संयुक्त आयुक्त) को स्वयं नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है।
- अनुमोदन देने वाले अधिकारियों की भूमिका धारा 148 के अंतर्गत नोटिस जारी करने के लिये मामले की युक्तियुक्तता के विषय में कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों से संतुष्ट होने तक सीमित है।
- यह धारा स्पष्ट रूप से मान्यता देती है कि संयुक्त आयुक्त या उससे वरिष्ठ पद के मूल्यांकन अधिकारी अतिरिक्त स्वीकृति के बिना धारा 148 के अंतर्गत नोटिस जारी कर सकते हैं, बशर्ते यह प्रासंगिक मूल्यांकन वर्ष की समाप्ति से चार वर्ष के अंदर हो।
- यह धारा मूल्यांकन को मनमाने ढंग से या अनुचित तरीके पुनः मूल्यांकन के विरुद्ध एक सुरक्षा के रूप में कार्य करती है, विशेषकर उन मामलों में जहाँ मूल मूल्यांकन के बाद काफी समय बीत चुका है।
- यह धारा कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों के महत्त्व पर बल देती है, जो स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि का आधार बनते हैं।
कराधान एवं अन्य संविधियाँ, 2020
परिचय:
- कोविड-19 महामारी के कारण करदाताओं को राहत प्रदान करने तथा उनके सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत में कराधान एवं अन्य संविधियाँ, 2020 लागू किया गया था।
- इसने विभिन्न कर संविधियों में संशोधन किया तथा रिटर्न दाखिल करने, कर भुगतान करने एवं अन्य अनुपालन-संबंधी गतिविधियों को पूरा करने की समय-सीमा बढ़ा दी।
- इस अधिनियम ने कई अन्य संविधियों में भी परिवर्द्धन किये , जिनमें धर्मार्थ ट्रस्ट, प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास एवं बेनामी संपत्ति लेनदेन पर रोक से संबंधित संविधियाँ सम्मिलित हैं।
विधिक प्रावधान:
- यह अधिनियम कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों के कारण विभिन्न कर संविधियों और अन्य संबंधित संविधियों में निर्दिष्ट समय-सीमा में छूट प्रदान करता है।
- यह आयकर अधिनियम, 1961, बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 तथा प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020 सहित कई निर्दिष्ट अधिनियमों पर लागू होता है।
- यह अधिनियम 20 मार्च, 2020 एवं 29 जून, 2020 (या सरकार द्वारा निर्दिष्ट बाद की तिथि) के बीच आने वाली कार्यवाहियों को पूरा करने या अनुपालन करने की समय सीमा को बढ़ाकर 30 जून, 2020 (या अधिसूचित बाद की तिथि) कर देता है।
- यह विलंबित कर भुगतान पर देय ब्याज दर को घटाकर 0.75% प्रति माह या उसके हिस्से तक कर देता है तथा निर्दिष्ट अवधि के दौरान इस तरह की देरी के लिये दण्ड एवं अभियोजन को क्षमा कर देता है।
- यह कर कटौती के उद्देश्यों के लिये पीएम केयर्स फंड को शामिल करने के लिये आयकर अधिनियम, 1961 सहित अन्य अधिनियमों के कुछ प्रावधानों में भी संशोधन करता है तथा प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास अधिनियम, 2020 में समयसीमा को संशोधित करता है।