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पारिवारिक कानून

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19

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 02-Nov-2023

श्रीमती आदित्य रस्तोगी बनाम अनुभव वर्मा

"हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19, किसी स्थान की आकस्मिक यात्रा तलाक की कार्यवाही पर फैसला करने के लिये उस क्षेत्र के न्यायालय को अधिकार क्षेत्र नहीं देगी।"

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और सैयद आफताब हुसैन

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, श्रीमती आदित्य रस्तोगी बनाम अनुभव वर्मा के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय  ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19 में इस्तेमाल किया गया शब्द इस अधिनियम के तहत परिभाषित नहीं है, और इसलिये किसी स्थान पर आकस्मिक यात्रा उस क्षेत्र में न्यायालय को तलाक की कार्यवाही पर निर्णय लेने का अधिकार क्षेत्र नहीं देगी।

श्रीमती आदित्य रस्तोगी बनाम अनुभव वर्मा मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली अपीलकर्त्ता ने भारत में अपनी छोटी यात्रा के दौरान तलाक की कार्यवाही शुरू की है।
  • फैमिली कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्त्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 के तहत एक आवेदन दायर किया।
  • फैमिली कोर्ट ने आवेदन को खारिज़ कर दिया क्योंकि वर्तमान अपीलकर्त्ता द्वारा शुरू की गई कार्यवाही क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार में कमी थी।
  • इसके बाद, वर्तमान अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति सैयद आफताब हुसैन रिज़वी की पीठ ने कहा कि 'निवास' शब्द हालाँकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के तहत परिभाषित नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर आने वाले स्थान की आकस्मिक यात्रा से अधिक को दर्शाता है जहाँ तलाक की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
  • न्यायालय ने यह कहा कि एक बार जब अपीलकर्त्ता को यह स्वीकार हो जाता है कि वह परिस्थितिवश ऑस्ट्रेलिया में निवास कर रही है, तो कानून में यह स्थिति बनाए रखनी होगी कि वह परिवार न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में नहीं रह रही है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 19 क्या है?

  • इस धारा में उन न्यायालयों के संबंध में प्रावधान शामिल हैं जिनमें याचिका प्रस्तुत की जायेगी। यह प्रकट करता है कि –

धारा 19. वह न्यायालय जिसमें अर्जी उपस्थापित की जायेगी-इस अधिनियम के अधीन हर अर्जी उस ज़िला न्यायालय के समक्ष पेश की जायेगी जिसकी मामूली आरंभिक सिविल अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर-

(I) विवाह का अनुष्ठान हुआ था; या

(II) प्रत्यर्थी, अर्जी के पेश किये जाने के समय, निवास करता है; या

(III) विवाह के पक्षकारों ने अंतिम बार एक साथ निवास किया था; या

(IIIक) यदि पत्नी अर्जीदार है तो जहाँ वह अर्जी पेश किये जाने के समय निवास कर रही है, या

(IV) अर्जीदार के अर्जी पेश किये जाने के समय निवास कर रहा है, यह ऐसे मामले में, जिसमें प्रत्यर्थी उस समय ऐसे राज्यक्षेत्र के बाहर निवास कर रहा है जिस पर इस अधिनियम का विस्तार है अथवा वह जीवित है या नहीं इसके बारे में सात वर्ष या उस से अधिक की कालावधि के भीतर उन्होंने कुछ नहीं सुना है, जिन्होंने उसके बारे, में, यदि वह जीवित होता तो, स्वभाविकतया सुना होता।

  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 19 काफी उदार प्रावधान है क्योंकि यह दोनों पक्षों को वैवाहिक याचिका लड़ने की सुविधा प्रदान करती है।
  • इस खंड के खंड (ii) में प्रयुक्त निवास शब्द वास्तविक निवास स्थान का प्रतिनिधित्व करता है, न कि कानूनी या निर्माणाधीन निवास का।

महादेवी बनाम एन.एन. सिरथिया (1973), के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 19 निवास की अवधि से संबंधित नहीं है। यहाँ तक कि एक छोटा-सा निवास भी न्यायालय को याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र देने के लिये पर्याप्त हो सकता है। यदि पति-पत्नी एक ही निवास में एक साथ रहते थे, तो उन्हें एक साथ निवास माना जाना चाहिये। इस प्रकार, निवास का तथ्य महत्त्वपूर्ण है न कि निवास का उद्देश्य।