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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 223
« »31-Jan-2025
सुबी एंटनी बनाम आर1 “मजिस्ट्रेट को पहले परिवादकर्त्ता और साक्षियों की शपथ पर परीक्षा करनी चाहिये और उसके पश्चात्, यदि मजिस्ट्रेट अपराध/अपराधों का संज्ञान लेने के लिये आगे बढ़ता है, तो अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये।” न्यायमूर्ति वीजी अरुण |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति वीजी अरुण न्यायमूर्ति वीजी अरुण की पीठ ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के अधीन मजिस्ट्रेट को पहले परिवादकर्त्ता और साक्षियों की शपथ पर परीक्षा करनी चाहिये और उसके पश्चात्, यदि मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेने के लिये आगे बढ़ता है, तो अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये।
- केरल उच्च न्यायालय ने सुबी एंटनी बनाम आर (2025) के मामले में यह निर्णय सुनाया।
सुबी एंटनी बनाम आर1 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने दलील दी कि न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता और साक्षियों से शपथ पर पूछताछ करने से पहले ही परिवाद में नामित अभियुक्तों को नोटिस जारी करके गलती की है।
- उनका कहना है कि प्रारंभ में मौखिक आपत्ति जताए जाने और उसके पश्चात् लिखित आपत्ति दायर किये जाने के बावजूद मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्तों को नोटिस जारी करके अवैधता कायम रखी गई है।
- याचिकाकर्त्ता का कहना था कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बसनगौड़ा आर पाटिल बनाम शिवानंद एस पाटिल (2024) में विधिक स्थिति निर्धारित की थी।
- इस मामले में न्यायालय को जिस पहेली का समाधान करना था, वह यह थी कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 (1) में अपराध का संज्ञान लेने से पहले परिवाद में नामित अभियुक्तों को नोटिस जारी करने की परिकल्पना की गई है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 200 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 (1) के समतुल्य है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 में एक नया उपबंध जोड़ा गया है, जो यह उपबंध करता है कि अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिये बिना अपराध का संज्ञान नहीं लिया जाएगा।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन, अभियुक्त के पास उस स्तर पर भी कोई अधिकार नहीं था, जहाँ मजिस्ट्रेट यह निर्णय लेता है कि अभियुक्त को प्रक्रिया जारी करनी है या नहीं।
- इसके अतिरिक्त, यह देखा गया कि धारा 223 (1) के उपबंध के बावजूद, संज्ञान लेने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर प्रदान करना अनिवार्य है, धारा 226 संज्ञान लेने के चरण में अभियुक्त की आपत्ति को परिवाद को खारिज करने के लिये सुसंगत कारक के रूप में नहीं मानती है।
- न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को पहले परिवादकर्त्ता और साक्षियों की शपथ पर परीक्षा करनी चाहिये और उसके पश्चात्, यदि मजिस्ट्रेट अपराध/अपराधों का संज्ञान लेने के लिये आगे बढ़ता है, तो अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिये।
- इस प्रकार न्यायालय ने माना कि संज्ञान लेने से पहले संभावित अभियुक्त को नोटिस जारी नहीं किया जा सकता था।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 क्या है?
- धारा 223 (1) निम्नलिखित के लिये उपबंधित करती है:
- परिवादकर्त्ता और साक्षियों की परीक्षा:
- परिवाद पर अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट को परिवादकर्त्ता और साक्षियों की शपथ के अधीन परीक्षा करनी चाहिये।
- यह परीक्षा लिखित रूप में अभिलिखित की जाती है और मजिस्ट्रेट सहित सभी पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित होती है।
- अभियुक्त के लिये अवसर:
- अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिये बिना संज्ञान नहीं लिया जा सकता।
- परीक्षण की आवश्यकता के अपवाद:
- मजिस्ट्रेट को परिवादकर्त्ता और साक्षियों की परीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है यदि:
- परिवादकर्त्ता और साक्षियों की परीक्षा:
- परिवाद किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा आधिकारिक क्षमता में या किसी न्यायालय द्वारा किया गया हो।
- धारा 212 के अंतर्गत मामला किसी अन्य मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित कर दिया गया हो।
- वाद स्थानांतरण पर पुनः परीक्षा नहीं:
- यदि प्रारंभिक परीक्षा के पश्चात् मामला स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो नए मजिस्ट्रेट को परिवादकर्त्ता और साक्षियों की पुनः परीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।
- वाद स्थानांतरण पर पुनः परीक्षा नहीं:
- धारा 223 (2) में आगे निम्नलिखित उपबंध हैं:
- किसी लोक सेवा के विरुद्ध उसके शासकीय कृत्यों या कर्त्तव्यों के निर्वहन में संज्ञान लेने के लिये निम्न की आवश्यकता होती है:
- सरकारी कर्मचारी को स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- घटना के संबंध में किसी वरिष्ठ अधिकारी से तथ्यात्मक रिपोर्ट।
- किसी लोक सेवा के विरुद्ध उसके शासकीय कृत्यों या कर्त्तव्यों के निर्वहन में संज्ञान लेने के लिये निम्न की आवश्यकता होती है:
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के बीच क्या अंतर है?
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 |
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 |
परिवादी की परीक्षा-परिवाद पर किसी अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट, परिवाही की और यदि कोई साक्षी उपस्थित है तो उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा और ऐसी परीक्षा का सारांश लेखबद्ध किया जाएगा और परिवादी और साक्षियों द्वारा तथा मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षरित किया जाएगा; परंतु जब परिवाद लिख कर किया जाता है तब मजिस्ट्रेट के लिये परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करना आवश्यक न होगा (क) यदि परिवाद अपने पदीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने वाले या कार्य करने का तात्पर्य रखने वाले लोक सेवक द्वारा या न्यायालय द्वारा किया गया है, अथवा (ख) यदि मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के लिये मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है: परंतु यह और कि यदि मजिस्ट्रेट परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करने के पश्चात् मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिये उनकी फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा। |
(1) जब अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट परिवाद पर किसी का संज्ञान करेगा तब परिवादी की और यदि कोई साक्षी उपस्थित है तो उनकी शपथ पर करेगा और ऐसी परीक्षा का सारांश लेखबद्ध किया जाएगा और परिवादी और साक्षियों द्वारा मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षरित किया जाएगा: परंतु किसी अपराध का संज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा: परंतु यह और कि जब परिवाद लिख कर किया जाता है तब मजिस्ट्रेट के लिये परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करना आवश्यक न होगा-(क) यदि परिवाद अपने पदीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने वाले या कार्य करने का तात्पर्य रखने वाले लोक सेवक द्वारा या न्यायालय द्वारा किया गया है; या (ख) यदि मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के लिये मामले को धारा 212 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है: परंतु यह भी कि यदि मजिस्ट्रेट परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करने के पश्चात् मामले को 212 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिये फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा : 2) कोई मजिस्ट्रेट किसी लोक सेवक के विरूद्ध उसके शासकीय कृत्यों या कर्त्तव्यों के निर्वहन दौरान कारित किया जाना अभिकथित किये गए किसी अपराध के लिये परिवाद पर संज्ञान नहीं लेगा यदि- (क) ऐसे लोक सेवक को उस परिस्थिति के बारे में प्राख्यान करने का अवसर नहीं दिया जाता है, जिसके कारण अभिकथित घटना घटित हुई; और (ख) ऐसे लोक सेवक के वरिष्ठ अधिकारी से घटना के तथ्यों और परिस्थितियों के अंतर्विष्ट करने वाली रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती है। |