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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 227
«28-Mar-2025
रेखा शरद उशीर बनाम सप्तश्रृंगी महिला नागरी सहकारी पाटसंस्टा लिमिटेड "भौतिक तथ्यों एवं दस्तावेजों को दबाकर आपराधिक विधि को लागू करना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।" न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ की पीठ ने कहा कि तथ्यों एवं दस्तावेजों को दबाकर आपराधिक विधि लागू करना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
उच्चतम न्यायालय ने रेखा शरद उशिर बनाम सप्तश्रृंगी महिला नागरी सहकारी पाटसंस्टा लिमिटेड (2025) के मामले में यह व्यवस्था दी।
रेखा शरद उशीर बनाम सप्तश्रृंगी महिला नागरी सहकारी पाटसंस्टा लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला एक अपीलकर्त्ता और एक क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के बीच ऋण चुकौती के लिये जारी किये गए दो चेकों के संबंध में विवाद से जुड़ा है।
- पहला ऋण 3 जुलाई 2006 को प्राप्त 3,50,000/- रुपये का था, जिसके लिये दो सुरक्षा चेक जारी किये गए थे।
- पहला चेक जमा कर दिया गया और 2007 में एक आपराधिक मामला चला, जिसे बाद में अपीलकर्त्ता द्वारा 23 सितंबर 2016 को चेक राशि का भुगतान करने के बाद वापस ले लिया गया।
- अपीलकर्त्ता को कथित तौर पर 25 जुलाई 2008 को 11,97,000/- रुपये का दूसरा ऋण दिया गया था।
- प्रतिवादी ने अनादरित चेक के संबंध में 11 नवंबर 2016 को एक विधिक नोटिस जारी किया।
- अपीलकर्त्ता ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दावे पर विवाद किया तथा प्रत्युत्तर तैयार करने के लिये ऋण दस्तावेजों का अनुरोध किया।
- प्रतिवादी ने 15 दिसंबर 2016 को परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत एक आपराधिक शिकायत दर्ज की।
- न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) ने 2 मार्च 2017 को प्रक्रिया जारी की। अपीलकर्त्ता ने प्रक्रिया को चुनौती देते हुए एक आपराधिक रिट याचिका दायर की, जिसे बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 18 दिसंबर 2023 को खारिज कर दिया।
- उच्च न्यायालय ने JMFC के आदेश में कोई मुद्दा नहीं पाया तथा माना कि अपीलकर्त्ता की तर्कों को अभियोजन के वाद के दौरान संबोधित किया जा सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यदि मजिस्ट्रेट इस तथ्य से संतुष्ट है कि अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त आधार है, तो संबंधित मजिस्ट्रेट को CrPC की धारा 204 की उपधारा (1) के अनुसार आदेश जारी करना होगा।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अंतर्गत संबंधित प्रावधान धारा 227 है।
- न्यायालय ने पाया कि वर्तमान तथ्यों में पक्षकार द्वारा महत्त्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया गया है।
- अपीलकर्त्ता द्वारा संबोधित दो पत्रों के रूप में महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों को शिकायत और धारा 200 के अधीन शपथ पर अभिकथन में छिपाया गया था।
- शपथ पर दिये गए अभिकथन में, प्रतिवादी-शिकायतकर्त्ता ने अस्पष्ट रूप से 'मिथ्या नोटिस प्रत्युत्तर' का उल्लेख किया, लेकिन प्रतिवादी द्वारा शिकायत के साथ उत्तर की एक प्रति प्रस्तुत नहीं की गई।
- न्यायालय ने माना कि महत्त्वपूर्ण तथ्यों एवं दस्तावेजों को दबाकर आपराधिक विधि को लागू करना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
- इसलिये उच्चतम न्यायालय ने शिकायत को खारिज कर दिया और उसे अलग रखा।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 227 क्या है?
- BNSS की धारा 227 दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 204 के समान है।
- BNSS की धारा 227 (1) में प्रावधान है:
- यदि किसी अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही के लिये पर्याप्त आधार है, तथा मामला इस प्रकार प्रतीत होता है:
- किसी समन-मामले में, वह अभियुक्त को उसकी उपस्थिति के लिये समन जारी करेगा;
- या किसी वारंट-मामले में, वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष या (यदि उसे स्वयं कोई अधिकारिता नहीं है तो) अधिकारिता रखने वाले किसी अन्य मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी निश्चित समय पर लाने या उपस्थित कराने के लिये वारंट या, यदि वह ठीक समझे तो, समन जारी कर सकता है:
- BNSS में जो नया प्रावधान जोड़ा गया है उसके अनुसार समन या वारंट इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी जारी किया जा सकता है।
- यदि किसी अपराध का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही के लिये पर्याप्त आधार है, तथा मामला इस प्रकार प्रतीत होता है:
- BNSS की धारा 227 (2) में प्रावधान है कि उपधारा (1) के अधीन अभियुक्त के विरुद्ध तब तक कोई समन या वारंट जारी नहीं किया जाएगा जब तक अभियोजन पक्ष के साक्षियों की सूची दाखिल नहीं की जाती है।
- BNSS की धारा 227 (3) में प्रावधान है कि लिखित रूप में की गई शिकायत पर शुरू की गई कार्यवाही में, उपधारा (1) के अधीन जारी किये गए प्रत्येक समन या वारंट के साथ ऐसी शिकायत की एक प्रति संलग्न की जाएगी।
- BNSS की धारा 227 (4) में प्रावधान है कि जब किसी विधि के अधीन कोई प्रक्रिया-शुल्क या अन्य शुल्क देय हो, तो तब तक कोई प्रक्रिया जारी नहीं की जाएगी जब तक कि शुल्क का भुगतान नहीं किया जाता है तथा यदि उचित समय के अंदर ऐसे शुल्क का भुगतान नहीं किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट शिकायत को खारिज कर सकता है।
- BNSS की धारा 227 (5) में प्रावधान है कि इस धारा की कोई भी प्रावधान धारा 90 के प्रावधानों को प्रभावित करने वाली नहीं मानी जाएगी।