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आपराधिक कानून
BNS की धारा 303(2)
«27-Nov-2024
जेबराज @ जयराज बनाम तमिलनाडु राज्य "यह न्यायालय Cr.P.C की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके FIR में हस्तक्षेप करने के लिये इच्छुक है, क्योंकि विद्वान मजिस्ट्रेट के उचित आदेश प्राप्त किये बिना गैर-संज्ञेय अपराध के लिये FIR का पंजीकरण करना ही अवैध है।" न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने जेबराज @ जयराज बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में माना है कि गैर-संज्ञेय और जमानतीय अपराधों में शिकायत दर्ज करने के लिये मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है।
जेबराज @ जयराज बनाम तमिलनाडु राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अक्तूबर 2024 में, एक स्थानीय वल्केनाइजिंग दुकान के मालिक के तीन ट्रक टायर चोरी हो गए, जिनकी कीमत लगभग 3,000 रुपए थी।
- दुकान से CCTV फुटेज देखने के बाद मालिक ने याचिकाकर्त्ता जेबराज की पहचान उस व्यक्ति के रूप में की, जिसने टायर चुराए थे।
- दुकान मालिक ने बाद में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) की धारा 303 (2) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई।
- मामले का मुख्य विषय चोरी की गई संपत्ति का मूल्य था।
- चूँकि टायरों की कीमत 3,000 रुपए थी- जो कि 5,000 रुपये से कम है - इसलिये नए कानूनी ढाँचे के तहत चोरी तकनीकी रूप से एक मामूली अपराध के रूप में योग्य है।
- याचिकाकर्त्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय में अग्रिम ज़मानत और FIR रद्द करने के लिये आवेदन दायर किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- मद्रास उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- अपराध में 3,000 रुपए मूल्य के पुराने टायरों की चोरी शामिल थी, जो BNS की धारा 303(2) के अंतर्गत आता है।
- न्यायालय ने कहा कि 5,000 रुपए से कम मूल्य की संपत्ति की चोरी तथा पहली बार अपराध करने पर सज़ा सामुदायिक सेवा है।
- न्यायालय ने कहा कि इतनी कम कीमत की चोरी के लिये अपराध निम्नलिखित है:
- असंज्ञेय
- ज़मानती
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 174 के तहत FIR दर्ज करने के लिये मजिस्ट्रेट के पूर्व आदेश की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने पाया कि इस तरह के मामले की सुनवाई करने के लिये क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट से उचित आदेश प्राप्त किये बिना ही FIR अवैध रूप से दर्ज की गई थी।
- यद्यपि तकनीकी रूप से अग्रिम ज़मानत याचिका स्वीकार्य नहीं थी (क्योंकि अपराध ज़मानतीय है), फिर भी न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का विकल्प चुना।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध FIR को रद्द कर दिया, जिससे इसके पंजीकरण में प्रक्रियागत अनियमितताओं के कारण आपराधिक कार्यवाही प्रभावी रूप से निरस्त हो गई।
BNS की धारा 303 क्या है?
- यह धारा अध्याय XVII के अंतर्गत आती है जिसमें संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के प्रावधान बताए गए हैं।
- BNS की धारा 303 में चोरी के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से बताया गया है:
- उपधारा (1) में कहा गया है कि जो कोई किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके कब्ज़े से कोई जंगम संपत्ति बेईमानी से लेने का आशय रखता है, ऐसा लेने के लिए उस संपत्ति को इधर-उधर ले जाता है, तो उसे चोरी करना कहा जाता है।
- उपधारा के साथ निम्नलिखित स्पष्टीकरण दिये गए हैं:
- जब तक कोई वस्तु धरती से जुड़ी रहती है, वह जंगम संपत्ति नहीं होती, इसलिये चोरी की वस्तु नहीं होती; किन्तु जैसे ही वह धरती से अलग हो जाती है, वह चोरी की वस्तु बन जाती है।
- उसी कार्य से प्रभावित होने वाला कदम जो विच्छेद को प्रभावित करता है, चोरी हो सकता है।
- किसी वस्तु को चलाने के लिये किसी व्यक्ति द्वारा उस बाधा को हटाना या उसे किसी अन्य वस्तु से अलग करना या वास्तव में उसे चलाना कहा जाता है।
- वह व्यक्ति जो किसी भी साधन से किसी पशु को चलाता है, वह उस पशु को चलाता है, तथा वह प्रत्येक वस्तु को चलाता है जो उस पशु द्वारा इस प्रकार चलाई गई गति के परिणामस्वरूप चलती है।
- इस धारा में उल्लिखित सहमति व्यक्त या निहित हो सकती है, और वह या तो कब्ज़ा रखने वाले व्यक्ति द्वारा, या उस प्रयोजन के लिये व्यक्त या निहित प्राधिकार रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है।
- इसे आगे कई उदाहरणों के साथ समझाया गया है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- Z यात्रा पर जा रहा है और अपनी प्लेट को गोदाम के रखवाले A को सौंप देता है, जब तक कि Z वापस न आ जाए। A प्लेट को सुनार के पास ले जाता है और उसे बेच देता है। यहाँ प्लेट Z के कब्जे में नहीं थी। इसलिये इसे Z के कब्जे से नहीं लिया जा सकता था, और A ने चोरी नहीं की है, हालाँकि उसने आपराधिक विश्वासघात किया हो सकता है।
- A अपनी घड़ी को विनियमित करने के लिये जौहरी, Z को सौंपता है। Z उसे अपनी दुकान पर ले जाता है। जौहरी को A का कोई ऋण नहीं है जिसके लिये जौहरी घड़ी को सुरक्षा के रूप में वैध रूप से रोक सकता है, वह खुलेआम दुकान में प्रवेश करता है, Z के हाथ से उसकी घड़ी ज़बरदस्ती छीन लेता है और उसे ले जाता है। यहाँ A ने, यद्यपि उसने आपराधिक अतिचार और हमला किया हो, चोरी नहीं की है, क्योंकि उसने जो किया वह बेईमानी से नहीं किया गया था।
- A, Z की पत्नी से दान मांगता है। वह A को पैसे, भोजन और कपड़े देती है, जो A जानता है कि उसके पति Z के हैं। यहाँ यह संभव है कि A को यह समझ में आ जाए कि Z की पत्नी को दान देने का अधिकार है। अगर A की यह धारणा थी, तो A ने चोरी नहीं की है।
- A, Z की पत्नी का प्रेमी है। वह एक मूल्यवान संपत्ति देती है, जिसके बारे में A जानता है कि वह उसके पति Z की है, और ऐसी संपत्ति है जिसे देने का उसे Z से कोई अधिकार नहीं है। यदि A संपत्ति को बेईमानी से लेता है, तो वह चोरी करता है।
- A, सद्भावपूर्वक, यह विश्वास करते हुए कि Z की संपत्ति A की अपनी संपत्ति है, उस संपत्ति को Z के कब्जे से ले लेता है। यहाँ, चूँकि A बेईमानी से नहीं लेता है, इसलिए वह चोरी नहीं करता है।
- उपधारा (2) में कहा गया है कि जो कोई चोरी करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा और इस धारा के तहत किसी व्यक्ति की दूसरी या बाद की दोषसिद्धि के मामले में, उसे एक वर्ष से कम नहीं, लेकिन पाँच वर्ष तक की अवधि के लिये कठोर कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
- इस उपधारा में आगे एक परंतुक खंड है जिसमें कहा गया है कि:
- चोरी के ऐसे मामलों में जहाँ चुराई गई संपत्ति का मूल्य पाँच हज़ार रुपए से कम है, और व्यक्ति को पहली बार दोषी ठहराया जाता है, संपत्ति का मूल्य लौटाए जाने या चोरी की गई संपत्ति वापस किये जाने पर उसे सामुदायिक सेवा से दंडित किया जाएगा।