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आपराधिक कानून

धारा 306- आत्महत्या हेतु दुष्प्रेरण

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 05-Dec-2023

मोहित सिंघल बनाम उत्तराखंड राज्य

"दोषसिद्धि के लिये अभियुक्तों के कृत्य आत्महत्या की घटना के निकट होने चाहिये।"

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और पंकज मित्तल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और पंकज मिथल ने कहा है कि 'दोषसिद्धि के लिये अभियुक्तों के कृत्य आत्महत्या की घटना के निकट होने चाहिये।'

  • उच्चतम न्यायालय ने मोहित सिंघल बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में यह निर्णय सुनाया।

मोहित सिंघल बनाम उत्तराखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • मृतक की विधवा ने संदीप बंसल से 40,000 रुपए और बाद में 60,000 रुपए की राशि उधार ली थी। संदीप द्वारा मृतक को चेक बाउंस के संबंध में कानूनी नोटिस दिया गया था।
  • इसके कारण मृतक ने 4 जुलाई, 2017 को आत्महत्या कर ली। अभियोजन पक्ष ने 30 जून, 2017 को मृतक द्वारा लिखे गए एक सुसाइड नोट पर भरोसा किया।
  • उच्च न्यायालय ने अपराध को रद्द करने की याचिका खारिज़ कर दिया और मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी।
  • न्यायालय इस बात पर ज़ोर देता है कि दुष्प्रेरण, आपराधिक मनःस्थिति में उकसाने का एक विशिष्ट कार्य होना चाहिये, जो मृतक को ऐसी परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दे जहाँ आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प बन जाए।
  • अभियुक्त के कथित कृत्य आत्महत्या से दो सप्ताह पहले हुए थे और आत्महत्या के निकट संपर्क या उकसावे का कोई सबूत नहीं था तथा यह निष्कर्ष निकाला गया कि अभियुक्त के कृत्य भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के तहत उकसाने के समान नहीं थे।
  • न्यायालय ने अपील की अनुमति दी और समन आदेश को रद्द कर दिया, यह देखते हुए कि अभियोजन जारी रखना "कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ नहीं" होगा।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • IPC की धारा 107 के पहले खंड के तहत कृत्य करने हेतु, मृतक को आत्महत्या करने को उकसाने हेतु अभियुक्त की ओर से किसी न किसी रूप में उकसाना हुआ होगा। इसलिये, अभियुक्त के पास मृतक को आत्महत्या के लिये उकसाने की आपराधिक मनः स्थिति होनी चाहिये।
  • उकसाने का काम इतनी तीव्रता का होना चाहिये कि इसका उद्देश्य मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलना हो जहाँ उसके पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प न हो। इस तरह की उत्तेजना आत्महत्या करने के कृत्य के करीब होनी चाहिये।

IPC की धारा 107 और 306 क्या हैं?

  • धारा 107 : किसी बात के लिये उकसाना।
  • वह व्यक्ति किसी चीज़ के किये जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो -
  • उस चीज़ को करने के लिये किसी व्यक्ति को उकसाता है; अथवा
  • उस चीज़ को करने के लिये किसी षड्यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है; अथवा
  • उस चीज़ के किये जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा जानबूझ कर सहायता करता है ।
  • स्पष्टीकरण:
  • (1)(यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन या तात्त्विक तथ्य द्वारा, जिसे प्रकट करने के लिये वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाकर, स्वेच्छा से किसी चीज़ का किया जाना कारित करता है अथवा कारित करने का प्रयत्न करता है, तो उसे उस चीज़ को करने के लिये उकसाना कहा जाता है ।
  • दृष्टांत: A, एक सार्वजनिक अधिकारी, Z को पकड़ने के लिये न्यायालय से वारंट द्वारा अधिकृत है, B, इस तथ्य को जानते हुए और यह भी जानते हुए कि C, Z नहीं है, जानबूझकर A को दर्शाता है कि C Z है, और इस तरह जानबूझकर A को ऐसा करने के लिये प्रेरित करता है कि वह C को गिरफ्तार करें। यहाँ B, C को गिरफ्तार करने के लिये उकसाता है।
  • (2)जो कोई, किसी कार्य के किये जाने से पहले या उसके समय, उस कार्य के किये जाने को सुविधाजनक बनाने के लिये कुछ करता है तथा इस प्रकार उसके किये जाने को सुविधाजनक बनाता है, ऐसा कहा जाता है कि वह उस कार्य को करने में सहायता करता है।
  • धारा 306: आत्महत्या के लिये उकसाना।
    • यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या के लिये उकसाएगा, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और वह ज़ुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा