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आपराधिक कानून
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34
« »05-Dec-2023
राम नरेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य “सामान्य उद्देश्य के लिये सह-अभियुक्तों के बीच स्पष्ट चर्चा या समझौते की आवश्यकता नहीं होती है; यह एक मनोवैज्ञानिक पहलू है जो अपराध होने से ठीक पहले या उसके दौरान उत्पन्न हो सकता है।” न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और पंकज मिथल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और पंकज मिथल ने कहा है कि सामान्य आशय के लिये सह-अभियुक्तों के बीच स्पष्ट चर्चा या समझौते की आवश्यकता नहीं होती है; यह एक मनोवैज्ञानिक पहलू है जो अपराध होने से ठीक पहले या उसके दौरान उत्पन्न हो सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला राम नरेश बनाम उत्तरप्रदेश राज्य के मामले में दिया था।
राम नरेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- 18 अक्तूबर, 1982 को बलराम और उनके भाई राम किशोर पर हमला किया गया तथा इनके द्वारा राजाराम, जोगेंद्र तथा राम नरेश के साथ लोहे की रॉड (रंभा) लिये वीरेंद्र का सामना किया गया, जो लाठियाँ चला रहे थे और ये राम किशोर पर लाठियों और लोहे की रॉड से हमला करने के लिये आगे बढ़े, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज करने पर, हत्या और सामान्य आशय से संबंधित भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC) की धारा 302/34 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने सभी चार आरोपियों को IPC की धारा 302 के साथ पठित धारा 34 के तहत दोषी पाया। उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की। अपीलकर्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
- केवल सामान्य आशय ही IPC की धारा 34 को लागू नहीं कर सकता है। न्यायालय ने अपील खारिज़ कर दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- IPC की धारा 34 को लागू करने के लिये सभी सह-अभियुक्त व्यक्तियों का एक समान आशय होना चाहिये जिसका अर्थ है उद्देश्य और सामान्य योजना का समूह। सामान्य आशय का अर्थ यह नहीं है कि सह-अभियुक्त व्यक्तियों को किसी भी चर्चा या समझौते में शामिल होना चाहिये ताकि अपराध करने के लिये एक योजना तैयार की जा सके या साज़िश रची जा सके।
- सामान्य आशय एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है तथा यह घटना के वास्तविक रूप में घटित होने से एक मिनट पहले या जैसा कि पहले कहा गया है, घटना घटित होने के दौरान भी हो सकता है।
IPC की धारा 34 और 302 क्या हैं?
- धारा 34: सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किया गया कार्य।
- जब कोई आपराधिक कृत्य, सभी के सामान्य आशय को अग्रसर करने हेतु, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तो ऐसा प्रत्येक व्यक्ति उस कार्य के लिये उसी तरह से उत्तरदायी होता है जैसे कि यह अकेले उसके द्वारा किया गया हो।
- धारा 302: हत्या के लिये सज़ा।
- जो कोई भी हत्या करेगा उसे मौत या आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी और ज़ुर्माना भी देना होगा।
मामले में उद्धृत ऐतिहासिक निर्णय क्या है?
- जसदीप सिंह उर्फ जस्सू बनाम पंजाब राज्य (2022):
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि केवल सामान्य आशय पर IPC की धारा 34 लागू नहीं हो सकती है, जब तक कि वर्तमान अभियुक्त ने इसके लिये कुछ कार्य न किया हो, इससे अपीलकर्त्ता को कोई सहायता नहीं मिलेगी क्योंकि यह साक्ष्य के अनुसार रिकॉर्ड में दर्ज है कि अपीलकर्त्ता के पास न केवल मृतक राम किशोर को मारने का सामान्य आशय था, बल्कि उसने अन्य अभियुक्त व्यक्तियों के साथ मिलकर मृतक राम किशोर पर हमला करने और मारपीट करने में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।