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सिविल कानून

CPC की धारा 92

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 17-Sep-2024

संजीत सिंह सलवान एवं 4 अन्य बनाम सरदार इंदरजीत सिंह सलवान एवं 2 अन्य

“धारा 89 धारा 92 का अध्यारोहण नहीं करती है, विशेषकर जब CPC की धारा 92 विशेष रूप से न्यास से संबंधित विवाद का निपटान करती है”।

मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संजीत सिंह सलवान एवं 4 अन्य बनाम सरदार इंदरजीत सिंह सलवान एवं 2 अन्य के मामले में माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 92 के अंतर्गत उल्लिखित न्यास से संबंधित विवाद, प्रकृति में मध्यस्थता योग्य नहीं हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि CPC की धारा 89 जो न्यायालय के बाहर समझौते के विषय में प्रावधान बताती है, CPC की धारा 92 पर अधिरोहण का प्रभाव नहीं रखेगी।

संजीत सिंह सलवान एवं 4 अन्य बनाम सरदार इंद्रजीत सिंह सलवान एवं 2 अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, गुरु तेग बहादुर ट्रस्ट गुरु तेग बहादुर स्कूल का प्रबंधन करता था।
  • अपीलकर्त्ताओं एवं प्रतिवादियों ने वर्ष 2019 में मूल ट्रस्ट डीड (न्यास विलेख) में संशोधन करके स्वयं को ट्रस्टी (न्यासी) होने का दावा किया।
  • स्कूल के प्रबंधन एवं सदस्यता को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ।
  • प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता को स्कूल के प्रबंधन एवं नियंत्रण में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये निषेधाज्ञा की मांग करते हुए वाद संस्थित किया।
  • ट्रायल कोर्ट ने वाद खारिज कर दिया था, जिसके विरुद्ध अपील दायर की गई थी।
  • लंबित अपील के दौरान पक्षों ने मध्यस्थता में प्रवेश किया।
  • एकमात्र मध्यस्थ द्वारा दो पंचाट पारित किये गए, एक वर्ष 2022 में तथा दूसरा वर्ष 2023 में।
  • अपीलकर्त्ता ने दलील दी कि मध्यस्थ द्वारा वर्ष 2023 में पारित पंचाट एकपक्षीय पंचाट था।
  • अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2022 के पंचाट के लिये निष्पादन हेतु वाद दायर किया। हालाँकि मध्यस्थ के आग्रह के कारण इसे वापस ले लिया गया।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 (ArC) की धारा 9 के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया।
  • अपीलकर्त्ता प्रतिवादी को स्कूल के प्रबंधन एवं नियंत्रण में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये निषेधाज्ञा की मांग कर रहे थे।
  • अपीलकर्त्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि उन्हें वर्ष 2023 में पारित पंचाट के विषय में पहली बार ArC कार्यवाही की धारा 9 में प्रतिवादियों द्वारा दायर आपत्तियों के माध्यम से पता चला था।
  • प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता को उस स्कूल के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये फिर से मध्यस्थ से संपर्क किया, जिसके लिये वर्ष 2024 में एक पंचाट पारित किया गया था।
  • अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2023 और वर्ष 2024 में क्रमशः A&C की धारा 37 एवं धारा 34 के अधीन पारित पंचाटों को चुनौती दी।
  • वाणिज्यिक न्यायालय ने माना कि ट्रस्ट से संबंधित मामले मध्यस्थता योग्य नहीं हैं तथा इसलिये मध्यस्थ द्वारा पारित पंचाट शून्य एवं अमान्य हैं।
  • वाणिज्यिक न्यायालय ने A & C की धारा 9 के अंतर्गत अपीलकर्त्ता के आवेदन को भी खारिज कर दिया।
  • आवेदन खारिज किये जाने के निर्णय से व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने CPC की धारा 92 के प्रावधानों पर ध्यान दिया, जिसमें ट्रस्ट के संबंध में प्रावधान हैं।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि CPC की धारा 92 के खंड (2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उक्त प्रावधान के खंड (1) के अंतर्गत उल्लिखित किसी भी विवाद या राहत को केवल खंड (2) के तहत दी गई प्रक्रिया के अनुसार ही मांगा जा सकता है।
    • उच्च न्यायालय ने माना कि गुरु तेग एक सार्वजनिक ट्रस्ट था तथा इसलिये मध्यस्थता की कार्यवाही प्रारंभ हुई और पारित किये गए पंचाटों का कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि उन्हें CPC की धारा 92 के अंतर्गत मांगा जाना चाहिये।
    • इसलिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश की पुष्टि की।

CPC की धारा 92 क्या है?

  • सार्वजनिक ट्रस्टों के लिये वाद संस्थित करना:
    • यह खंड बताता है कि सार्वजनिक धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट से संबंधित वाद कौन दायर कर सकता है।
    • ट्रस्ट में रुचि रखने वाले एडवोकेट-जनरल या कम-से-कम दो लोग सिविल कोर्ट में वाद दायर कर सकते हैं।
    • उन्हें पहले कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता होती है। वाद ट्रस्ट के प्रबंधन से संबंधित विभिन्न मुद्दों के विषय में हो सकता है।
  • संभावित न्यायालय आदेश:
    • न्यायालय विभिन्न प्रकार के आदेश दे सकता है, जिनमें शामिल हैं:
      a) ट्रस्टी को हटाना
      b) नया ट्रस्टी नियुक्त करना
      c) ट्रस्टी को संपत्ति अंतरित करना
      d) हटाए गए ट्रस्टी को ट्रस्ट की संपत्ति सौंपने का आदेश देना
      e) वित्तीय रिपोर्ट एवं जाँच मांगना
      f) ट्रस्ट की संपत्ति या आय का उपयोग कैसे किया जाए, यह तय करना
      g) ट्रस्ट की संपत्ति को किराये पर देने, बेचने, गिरवी रखने या एक्सचेंज करने की अनुमति देना
      h) ट्रस्ट के लिये योजना बनाना
      i) कोई अन्य आवश्यक राहत प्रदान करना
  • वाद संस्थित करने पर प्रतिबंध:
    • इस भाग में कहा गया है कि इन ट्रस्टों के विषय में वाद में पहले बताए गए नियमों का पालन करना होगा।
    • धार्मिक बंदोबस्ती के लिये विशिष्ट विधियों के आधार पर कुछ अपवाद हैं।
  • ट्रस्ट के उद्देश्यों में परिवर्तन:
    • न्यायालय कुछ स्थितियों में सार्वजनिक धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट के मूल उद्देश्यों को बदल सकता है।
    • इसे ट्रस्ट की संपत्ति या आय को "साइ प्रेस" (मूल उद्देश्य के जितना संभव हो सके उतना निकट) लागू करना कहा जाता है।
    • इन स्थितियों में शामिल हैं:
      a) जब मूल उद्देश्य पूरे हो चुके हों या उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता हो
      b) जब ट्रस्ट संपत्ति का केवल एक भाग ही उपयोग में लाया जा रहा हो
      c) जब ट्रस्ट संपत्ति का उपयोग अन्य समान संपत्ति के साथ अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता हो
      d) जब मूल उद्देश्य किसी ऐसे क्षेत्र से जुड़ा हो जो अब प्रासंगिक नहीं है
      e) जब मूल उद्देश्य अनावश्यक, हानिकारक, अवैध या अप्रभावी हो गए हों