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आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 92

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 05-Aug-2024

संजीदा बेगम बनाम मो. इकबाल  

धारा 90 के अंतर्गत अनुमान लगाने के लिये कम-से-कम, प्रथम दृष्टया यह प्रमाण आवश्यक है कि दस्तावेज़  तीस वर्ष पुराना है”।

न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी 

स्रोत : झारखंड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी की पीठ ने कहा कि दस्तावेज़ की अवधि मात्र उसके उचित निष्पादन का निर्णायक साक्ष्य नहीं है।  

  • झारखंड उच्च न्यायालय ने संजीदा बेगम बनाम मोहम्मद इकबाल मामले में यह निर्णय दिया।

संजीदा बेगम बनाम मोहम्मद इकबाल मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • वाद संपत्ति में प्लॉट संख्या 1393 और प्लॉट संख्या 1397 पर स्थित संरचनाएँ शामिल हैं।
  • प्लॉट नंबर 1393 में प्रवेश और निकास प्लॉट नंबर 1397 से होता था और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। यह रास्ता फतेह मोहम्मद ने पंजीकृत विक्रय विलेख के ज़रिए खरीदा था।
  • वादीगणों ने फतेह मोहम्मद के माध्यम से स्वामित्व का दावा किया।
  • प्रतिवादियों का दावा है कि यह संपत्ति सुलेमान क्रिस्टान नामक व्यक्ति द्वारा गुलाम मोहम्मद को हस्तांतरित की गई थी।
  • इस मामले में याचिका अनुसूचित क्षेत्र विनियमन अधिनियम की धारा 71A के अंतर्गत दायर की गई थी।
  • वादी का कहना है कि स्वामित्व का आधार पूर्व मकान मालिक द्वारा 7 जनवरी 1950 को निष्पादित हुक्मनामा और मकान मालिक द्वारा जारी किराया रसीदें हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि वादी ने वर्ष 1950 में पूर्व मकान मालिक द्वारा किये गए समझौते और उसके बाद कब्ज़े के आधार पर स्वामित्व का दावा किया है। वहीं प्रतिवादी ने सुलेमान क्रिस्टन और अभिराम ओरांव द्वारा निष्पादित बिक्री विलेख के आधार पर स्वामित्व का दावा किया है।
  • उच्च न्यायालय ने माना कि हुक्मनामा को स्वामित्व के दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार न करने में ट्रायल कोर्ट का निर्णय सही था।
  • न्यायालय ने कहा कि दस्तावेज़  की अवधि मात्र उसके उचित निष्पादन का निर्णायक प्रमाण नहीं है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 90 के अधीन खंडनीय अनुमान लगाने के लिये कम-से-कम प्रथम दृष्टया यह प्रमाण आवश्यक है कि दस्तावेज़ तीस वर्ष पुराना है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि प्रावधान में "अनुमान लगाया जा सकता है" अभिव्यक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिये अनुमान लगाना या न लगाना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 92 की अनिवार्यताएँ क्या हैं?

  • BSA की धारा 92 में तीस साल पुराने दस्तावेज़ों के विषय में अनुमान लगाने का प्रावधान है। यह प्रावधान पहले IEA की धारा 90 के अंतर्गत उपलब्ध था।
  • धारा 92 में प्रावधान है:
    • कोई भी दस्तावेज़ जो तीस वर्ष पुराना सिद्ध  हो या माना गया हो,
    • किसी भी अभिरक्षा में पेश किया गया जिसे न्यायालय किसी विशेष मामले में उचित समझता है,
    • न्यायालय यह मान सकता है:
      • कि यह हस्ताक्षर या हस्तलेख उस व्यक्ति का है जिसका वह होने का दावा करता है,
      • यदि दस्तावेज़ निष्पादित या प्रामाणित किया जाता है तो यह उन व्यक्तियों द्वारा विधिवत् प्रामाणित और निष्पादित किया गया है जिनके द्वारा इसे निष्पादित तथा प्रामाणित किया जाना तात्पर्यित है।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि प्रावधान में “अनुमान लगाया जा सकता है” वाक्यांश का प्रयोग किया गया है।
    • “मान सकते हैं” वाक्यांश BSA की धारा 2(h) में पाया जाता है।
    • धारा 2(h) में यह प्रावधान है कि जब कभी इस अधिनियम द्वारा यह प्रावधान किया जाता है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकता है, तो वह ऐसे तथ्य को या तो सिद्ध मान सकता है, जब तक कि उसे अस्वीकृत न कर दिया जाए, या वह उसका प्रमाण मांग सकता है; 

IEA की धारा 90 और BSA की धारा 92 के बीच तुलना?

            BSA की धारा 92

IEA की धारा 90

जहाँ कोई दस्तावेज़ , जो तीस वर्ष पुराना तात्पर्यित है या सिद्ध  हुआ है, किसी ऐसी अभिरक्षा में से पेश किया जाता है जिसे न्यायालय उस विशेष मामले में उचित समझता है, वहाँ न्यायालय यह उपधारणा कर सकता है कि ऐसे दस्तावेज़ का हस्ताक्षर और प्रत्येक अन्य भाग, जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होने का तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, और निष्पादित या अनुप्रामाणित दस्तावेज़  की दशा में, यह कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रूप से निष्पादित और अनुप्रामाणित किया गया है जिनके द्वारा उसका निष्पादित और अनुप्रामाणित होना तात्पर्यित है।

स्पष्टीकरण- धारा 80 का स्पष्टीकरण इस धारा पर भी लागू होगा।

जहाँ कोई दस्तावेज़ , जो तीस वर्ष पुराना तात्पर्यित है या सिद्ध  हुआ है, किसी ऐसी अभिरक्षा से पेश किया जाता है जिसे न्यायालय विशेष मामले में उचित समझता है, वहाँ न्यायालय यह उपधारणा कर सकता है कि ऐसे दस्तावेज़  का हस्ताक्षर और प्रत्येक अन्य भाग, जो किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होने का तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, और निष्पादित या प्रामाणित दस्तावेज़  की दशा में, यह कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रूप से निष्पादित और प्रामाणित किया गया है जिनके द्वारा उसका निष्पादित और प्रामाणित होना तात्पर्यित है।

स्पष्टीकरण- दस्तावेज़ो को उचित अभिरक्षा में कहा जाता है यदि वे उस स्थान पर हैं जहाँ और उस व्यक्ति की देखरेख में हैं जिसके पास वे स्वाभाविक रूप से होतीं; किंतु कोई अभिरक्षा अनुचित नहीं है यदि यह सिद्ध  हो जाता है कि उसका वैध उद्गम हुआ है या यदि विशिष्ट मामले की परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि ऐसे उद्गम की संभावना है। यह स्पष्टीकरण धारा 81 पर भी लागू होती है।

  • BSA की धारा 92 में परिवर्तन:
    • प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि IEA की धारा 90 का स्पष्टीकरण BSA की धारा 92 में नहीं आता। हालाँकि BSA की धारा 92 का स्पष्टीकरण यह बताता है कि BSA की धारा 80 का स्पष्टीकरण इस धारा पर भी लागू होता है।
    • BSA की धारा 80 के स्पष्टीकरण में कहा गया है: "इस धारा और धारा 92 के प्रयोजनों के लिये, दस्तावेज़ को उचित अभिरक्षा में कहा जाता है यदि वह उस स्थान पर है, और उस व्यक्ति द्वारा देखा जाता है जिसके पास ऐसे दस्तावेज़ को रखा जाना अपेक्षित है; परंतु कोई अभिरक्षा अनुचित नहीं है यदि यह सिद्ध हो जाता है कि इसका विधिक उद्गम है, या यदि विशेष मामले की परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि उस उद्गम को संभावित माना  जा सकता है।"
    • अतः उपरोक्त बिंदु BSA की धारा 92 की व्याख्या करते समय उपयोगी होंगे।

IEA की धारा 90 (BSA की धारा 92) पर निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • श्री लकनी बरुआ और अन्य बनाम श्री पद्मा कांता कलिता और अन्य (1996)
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि यह धारा आवश्यकता और सुविधा पर आधारित है, क्योंकि 30 वर्ष पुराने दस्तावेज़ की लिखावट, हस्ताक्षर या निष्पादन को सिद्ध करने के लिये साक्ष्य प्रस्तुत करना अत्यंत कठिन और कभी-कभी संभव नहीं होता है।
    • IEA की धारा 90 निजी दस्तावेज़ों के प्रमाण के सख्त नियम को समाप्त कर देती है।
    • यह ध्यान देने योग्य है कि यदि उचित अभिरक्षा से प्रस्तुत किया गया दस्तावेज़ धारा 65 के तहत द्वितीयक साक्ष्य के रूप में स्वीकृत प्रतिलिपि है और यह तीस वर्ष पुराना है, तो प्रतिलिपि को प्रामाणित करने वाले हस्ताक्षर को वास्तविक सिद्ध  किया जा सकता है। परंतु यह धारा 90 के अधीन दस्तावेज़ के उद्गम के उचित निष्पादन की धारणा को उचित ठहराने के लिये पर्याप्त नहीं होगा।
    • इस प्रकार, स्थिति स्पष्ट है कि IEA की धारा 90 के अंतर्गत अनुमान किसी प्रतिलिपि या प्रामाणित प्रतिलिपि पर लागू नहीं होता, भले ही वह तीस वर्ष पुरानी हो।  
    • अंत में, न्यायालय ने यह भी माना कि IEA की धारा 90 के अंतर्गत अनुमान लगाना या न लगाना न्यायालय का विवेकाधिकार है।
  • आशुतोष सामंत (मृत) एल.आर. और अन्य बनाम एस.एम. रंजन बाला दासी एवं अन्य (2023)
    • न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या वसीयत के मामले में IEA की धारा 90 लागू होगी।
    • इस मामले में उच्चतम  न्यायालय ने भरपूर सिंह बनाम शमशेर सिंह (2009) के निर्णय का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया था कि 30 वर्ष पुराने दस्तावेज़ों के संबंध में अनुमान वसीयत पर लागू नहीं होता है।
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि वसीयत को केवल उसकी अवधि के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता, बल्कि इसे उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63 (c) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के अनुसार सिद्ध करना होगा।