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आपराधिक कानून
गंभीर अपराध जाँच पर्यवेक्षण दल
« »18-Sep-2024
सुनीत @सुमित सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य “गंभीर अपराध जाँच पर्यवेक्षण दल, जाँच का पर्यवेक्षण करेगा और जाँच अधिकारी, इस दल को रिपोर्ट करेगा।” न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर |
स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों ?
न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने जाँच की निगरानी के लिये गंभीर अपराध जाँच पर्यवेक्षण दल गठित करने के निर्देश जारी किये।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुनीत उर्फ सुमित सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
सुनीत @ सुमित सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में कथित घटना 18 जून 2020 को हुई थी। आवेदक को 2 दिसंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह अभिरक्षा में है।
- आवेदक पिछले 3 वर्ष 8 महीने से अधिक समय से जेल में बंद है और यह संभावना है कि वाद के विचारण में काफी समय लगेगा।
- आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302, 34, 450, 397, 398, 114, 120B और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 27 के अधीन मामला दर्ज किया गया।
- वर्तमान आवेदन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 483 (दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439) के अधीन आवेदक की छठी ज़मानत याचिका थी।
- पहले प्राप्त 5 आवेदनों में से 3 आवेदनों को वापस लिये जाने के कारण अस्वीकार कर दिया गया है तथा दो आवेदनों को आवेदक के बीमार होने के कारण अस्थायी रूप से स्वीकार किया गया है।
- यह ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान मामले में शुरू में केवल मोबाइल फोन ज़ब्त किया गया था, परंतु तीन दिनों के बाद उसकी पैंट भी ज़ब्त कर ली गई, जो अभियोजन पक्ष के अनुसार घटना के समय आवेदक ने पहनी हुई थी।
- अभियुक्त का कहना था कि DNA रिपोर्ट गलत तरीके से तैयार की गई थी, क्योंकि यह संभव नहीं है कि आवेदक अपनी पैंट को 6 महीने तक उसी स्थिति में रख सके, ताकि अभियोजन पक्ष उसे बरामद कर सके।
- हालाँकि राज्य ने तर्क दिया कि ज़मानत देने का कोई मामला ही नहीं था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि DNA रिपोर्ट उस पैंट के संबंध में है जिसे घटना की तिथि के 6 महीने बाद ज़ब्त किया गया था।
- इसके अतिरिक्त, आवेदक से डकैती से संबंधित कोई अन्य सामग्री भी ज़ब्त नहीं की गई है।
- इस तथ्य पर विचार करते हुए कि केवल 11 साक्षियों की जाँच की गई थी, तथा 18 अन्य साक्षियों की जाँच की जानी शेष थी, न्यायालय ने आरोपी को ज़मानत दे दी।
- तद्नुसार, न्यायालय ने आरोपी को ज़मानत दे दी।
- न्यायालय ने आगे कहा कि जाँच अधिकारी द्वारा की गई जाँच में गंभीर त्रुटियाँ थीं।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि यह कोई अकेली घटना नहीं है। वास्तव में पहले भी ऐसे मामले हुए हैं, जहाँ न्यायालय उचित तत्परता के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा है।
उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस महानिदेशक, मध्य प्रदेश, भोपाल को क्या निर्देश जारी किये गए हैं?
- न्यायालय ने कहा कि कुछ मामलों में जाँच अधिकारी और फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा की गई गंभीर चूक के कारण ही अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाता है।
- न्यायालय ने इस बात पर अफसोस जताया कि जब एक आपराधिक वाद आरंभ से ही लापरवाह जाँच के कारण असफल हो जाता है तो यह न्यायालय की प्रक्रिया के सरासर दुरुपयोग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
- इस प्रकार, उपरोक्त के विरोध में न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक, मध्य प्रदेश, भोपाल को एक गंभीर अपराध जाँच पर्यवेक्षण दल गठित करने का निर्देश दिया।
- गंभीर अपराध जाँच पर्यवेक्षण दल (SCIST)
- सदस्य : 2 सदस्य
- इसका नेतृत्व एक वरिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जो किसी अनुभवी IPS अधिकारी के पद से नीचे का न हो।
- दूसरा पुलिस विभाग का अधिकारी होगा जो पुलिस उपनिरीक्षक के पद से नीचे का नहीं होगा, जिसे उक्त IPS अधिकारी द्वारा चुना जा सकता है।
- उद्देश्य:
- यह टीम जाँच की निगरानी करेगी।
- जाँच अधिकारी को जाँच की प्रगति के विषय में टीम को रिपोर्ट देनी होगी तथा सूचना देनी होगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जाँच में कोई चूक न हो तथा कमियों को सही समय पर दूर कर दिया जाए।
- जाँच में किसी भी चूक के लिये जाँच अधिकारी के साथ-साथ उक्त टीम को भी उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
- सदस्य : 2 सदस्य
दोषपूर्ण या अपूर्ण जाँच के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक क्या हैं?
- अपराध की जाँच के दौरान जाँच अधिकारी कई गलतियाँ करते हैं, जिससे कई कमियाँ रह जाती हैं। दोषपूर्ण जाँच के कुछ कारण इस प्रकार हैं:
- जाँच से संबंधित प्रासंगिक विधि की अज्ञानता।
- जाँच अधिकारियों के समुचित प्रशिक्षण का अभाव।
- वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहायता की अनुपलब्धता।
- कार्यभार
- जाँच के प्रति गैर-पेशेवर रवैया और लापरवाही।
- अपराध स्थल पर पहुँचने में देरी।
- जाँच के दौरान जाँच अधिकारियों का स्थानांतरण और परिवर्तन।
- जाँच एजेंसियों का अपर्याप्त होना।
- वाद हारने की स्थिति में जाँच अधिकारियों के उत्तरदायित्व का अभाव।
- बाहरी कारक।
SCIST की आवश्यकता पर प्रकाश डालने वालीं निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
- अभिषेक पुत्र दिनेश डे बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022)
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि न्यायालय को यह जानकर आश्चर्य और अविश्वास हुआ कि एकत्र किये गए नमूने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला को प्राप्त नहीं हुए हैं।
- इसके अतिरिक्त जाँच अधिकारी ने DNA रिपोर्ट अतिशीघ्र तैयार करवाने का भी ध्यान नहीं रखा।
- न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय द्वारा लगातार ऐसे मामलों में की गई गंभीर टिप्पणियों के बावजूद अभियोजन एजेंसियों द्वारा ऐसी चूक अभी भी की जा रही है।
- हबू @ सुनील बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2012)
- इस मामले में भी जाँच अधिकारी और फोरेंसिक विशेषज्ञों की ओर से विफलता सामने आई।
- परिणामस्वरूप, आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया।