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आपराधिक कानून

केवल चिल्लाना एवं धमकी देना हमला का आवश्यक तत्त्व नहीं

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 30-Oct-2024

के. धनंजय बनाम कैबिनेट सेक्रेटरी एवं अन्य

“किसी पर चिल्लाना एवं धमकी देना IPC की धारा 351 के अधीन हमला करने जैसा अपराध नहीं है”

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि किसी पर चिल्लाना एवं धमकी देना IPC की धारा 351 (BNS की धारा 130) के अधीन हमला करने का अपराध नहीं है।     

  • उच्चतम न्यायालय ने के. धनंजय बनाम कैबिनेट सचिव एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।

के. धनंजय बनाम कैबिनेट सचिव एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता, जो पहले भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बैंगलोर में कार्यरत था, ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट), बैंगलोर बेंच के समक्ष दायर याचिका के माध्यम से अपनी पदच्युति के विरुद्ध चुनौती दी।
  • अपने मामले की कार्यवाही के दौरान, उसने विशिष्ट दस्तावेजों को मांगा, जो उसे प्रदान की गई।
  • बैंगलोर के CAT में डिप्टी रजिस्ट्रार सुश्री ए. थोमीना के कार्यालय में इन दस्तावेजों का निरीक्षण करते समय, उन्होंने कथित तौर पर कर्मचारियों पर चिल्लाने एवं धमकी देने सहित अपमानजनक व्यवहार किया, जिसके कारण उनके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 353 एवं 506 के अधीन FIR दर्ज की गई।
  • शिकायत में कहा गया है कि अपीलकर्त्ता ने कर्मचारियों को धमकाया एवं कार्यालयी कार्य में बाधा डाली, फिर भी कोई भी कार्यवाही IPC की धारा 351 के अधीन परिभाषित शारीरिक हमले के तुल्य नहीं थी।
  • उच्च न्यायालय ने मामले को रद्द करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया, जिसके कारण उन्होंने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उक्त शिकायत में अपीलकर्त्ता के विरुद्ध एकमात्र आरोप यह है कि वह चिल्ला रहा था एवं कर्मचारियों को धमका रहा था। यह अपने आप में किसी हमले की श्रेणी में नहीं आता।
  • हमारे विचार से, उच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप न करके चूक कारित की है। यह ऐसा मामला है जो विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है तथा इसलिये न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये हम इस अपील को स्वीकार करते हैं और अपीलकर्त्ता के विरुद्ध प्रारंभ की गई पूरी कार्यवाही को रद्द करते हैं।

हमले के संबंध में क्या प्रावधान हैं?

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 351:

  • यह धारा अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 130 के अंतर्गत आती है, जो हमले के अपराध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी ऐसा संकेत या तैयारी करता है, जिसका आशय या यह संभावना है कि ऐसा संकेत या तैयारी किसी भी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका पैदा करेगी कि वह संकेत या तैयारी करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है, तो उसे हमला करने वाला कहा जाता है।
  • व्याख्या—केवल शब्दों से हमला नहीं माना जाता। लेकिन एक व्यक्ति द्वारा प्रयोग किये गए शब्द उसके हाव-भाव या तैयारी को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे उन हाव-भाव या तैयारी को हमला माना जा सकता है।

आवश्यक तत्त्व

  • अभियोजन पक्ष को किसी व्यक्ति पर हमले का अभियोजन का वाद चलाने के लिये निम्नलिखित दो तत्त्व प्रस्तुत करने होंगे:
    • किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में कोई संकेत या तैयारी करना; तथा
    • ऐसी मंशा या संभावना का ज्ञान कि ऐसे संकेत या तैयारी से व्यक्ति को यह आशंका होगी कि ऐसा करने वाला व्यक्ति उसके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 353 (BNS की धारा 132):

  • इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी व्यक्ति पर, जो लोक सेवक है, ऐसे लोक सेवक के रूप में अपने कर्त्तव्य के निष्पादन में, या उस व्यक्ति को ऐसे लोक सेवक के रूप में अपने कर्त्तव्य  का निर्वहन करने से रोकने या भयग्रस्त करने के आशय से, या ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे लोक सेवक के रूप में अपने कर्त्तव्य के वैध निर्वहन में किये गए या किये जाने के प्रयास के परिणामस्वरूप हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से, जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या अर्थदण्ड  से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

निर्णयज विधियाँ

  • रूपाबती बनाम श्यामा (1958):
    • न्यायालय ने कहा कि हमला करने के लिये किसी प्रकार की वास्तविक चोट पहुँचाना आवश्यक नहीं है, केवल धमकी देना भी हमला माना जा सकता है।
  • पदारथ तिवारी बनाम दुल्हिन तपेश कुएरी (1932):
    • न्यायालय ने कहा कि किसी महिला की सहमति के बिना उसकी मेडिकल जाँच कराना हमला का अपराध है।