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सांविधानिक विधि

नींद और कार्य-जीवन संतुलन

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 27-Feb-2025

श्री. चंद्रशेखर बनाम डिवीजनल कंट्रोलर 

यह सामान्य बात है, यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से अधिक काम करने के लिये कहा जाता है, तो शरीर कभी-कभी उक्त व्यक्ति को सोने के लिये विवश कर देता है, क्योंकि नींद और कार्य-जीवन संतुलन आज की आवश्यकता है।” 

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना 

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने ने कल्याण कर्नाटक सड़क परिवहन के एक कांस्टेबल के निलंबन को रद्द कर दिया, जिसे ड्यूटी पर सोने के लिये दण्डित किया गया था 

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने श्री चंद्रशेखर बनाम डिवीजनल कंट्रोलर (2025) के वाद में यह निर्णय सुनाया। 

श्री चंद्रशेखर बनाम डिवीजनल कंट्रोलर वाद की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • 13 मई 2016 को नियुक्त कर्नाटक राज्य परिवहन (Karnataka State Transport) कांस्टेबल चंद्रशेखर को कर्मचारियों की कमी के कारण कल्याण कर्नाटक सड़क परिवहन निगम में काम करने के लिये स्थानांतरित कर दिया गया था। 
  • 23 अप्रैल 2024 को, एक सतर्कता रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि चंद्रशेखर को ड्यूटी के दौरान सोते हुए पाया गया था, जिसका वीडियो रिकॉर्ड किया गया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया गया। 
  • पूछताछ करने पर चंद्रशेखर ने बताया कि उसने डॉक्टर की सलाह पर दवा ली थी और दस मिनट की झपकी ली थी, क्योंकि वह लगातार दूसरी और तीसरी शिफ्ट में ड्यूटी पर था। 
  • सतर्कता विभाग ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि डिपो में केवल तीन कर्नाटक राज्य परिवहन कांस्टेबल थे, मौजूदा कर्मचारियों पर काम का भार बहुत अधिक था, तथा दो और कांस्टेबल नियुक्त करने का सुझाव दिया गया 
  • स्टाफ की कमी के बारे में सतर्कता विभाग के निष्कर्षों के बावजूद, चंद्रशेखर को ड्यूटी पर सोने के लिये 01 जुलाई 2024 को निलंबित कर दिया गया। 
  • निगम ने तर्क दिया कि ड्यूटी के दौरान चंद्रशेखर के सोने की हरकत, जिसका वीडियो रिकॉर्ड किया गया और सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया, ने निगम की बदनामी की 
  • यह एक स्वीकृत तथ्य था कि स्टाफ की कमी के कारण चंद्रशेखर को लगभग 60 दिनों तक बिना ब्रेक के लगातार 16 घंटे प्रतिदिन की डबल शिफ्ट में काम करना पड़ा। 
  • चंद्रशेखर ने निलंबन आदेश को चुनौती देते हुए तथा अपने पूर्व पद पर बहाल किये जाने की मांग करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से अधिक काम करने के लिये कहा जाता है, तो शरीर कभी-कभी व्यक्ति को सोने के लिये बाध्य करता है, क्योंकि समकालीन समय में नींद और कार्य-जीवन संतुलन आवश्यक है। 
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 24 का हवाला देते हुए, न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को आराम और अवकाश का अधिकार है, जिसमें काम के घंटों की उचित सीमा और वेतन सहित आवधिक अवकाश सम्मिलित हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, जिस पर भारत भी हस्ताक्षरकर्त्ता है, में कार्य-जीवन संतुलन को मान्यता दी गई है और यह निर्धारित किया गया है कि असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, कार्य घंटे सप्ताह में 48 घंटे और दिन में 8 घंटे से अधिक नहीं होने चाहिये 
  • न्यायालय ने कहा कि एक ही शिफ्ट के दौरान ड्यूटी पर सोना निस्संदेह कदाचार माना जाएगा, किंतु इस मामले के विशिष्ट तथ्यों में याचिकाकर्त्ता द्वारा ड्यूटी के घंटों के दौरान सोने में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि किसी भी संगठन में कार्यरत कर्मचारियों, विशेष रूप से शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों के पास कार्य-जीवन संतुलन होना चाहिये, और प्रतिवादी की अपनी मूर्खता के लिये याचिकाकर्त्ता को निलंबित करना सद्भावना की कमी को दर्शाता है। 
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि निलंबन आदेश अस्थिर था और इसे अपास्त किया जाना चाहिये, साथ ही याचिकाकर्त्ता को सेवा की निरंतरता और निलंबन अवधि के लिये वेतन सहित सभी परिणामी लाभों का हकदार होना चाहिये।  

क्या ड्यूटी पर सोना कदाचार माना जाता है? 

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) के अनुच्छेद 24 में मान्यता प्राप्त आराम और अवकाश का अधिकार, जिसमें काम के घंटों की उचित सीमा और वेतन सहित आवधिक छुट्टियाँ सम्मिलित हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की पारस्परिक संविदा जो काम के घंटों के लिये मानक स्थापित करती हैं (असाधारण परिस्थितियों के अतिरिक्त साप्ताहिक 48 घंटे और दैनिक 8 घंटे से अधिक नहीं)। 
  • कदाचार (नियमित एकल शिफ्ट के दौरान सोना) बनाम क्षम्य व्यवहार (लंबे समय तक अत्यधिक घंटे काम करने के लिये मजबूर होने पर सोना) के बीच अंतर। 
  • कर्मचारियों के लिये एक आवश्यक तत्त्व के रूप में कार्य-जीवन संतुलन का सिद्धांत, विशेष रूप से शिफ्ट-आधारित भूमिकाओं में काम करने वाले कर्मचारियों के लिये 
  • प्रशासनिक कार्यों में "सद्भावना (bonafides)" की अवधारणा, यह सुझाव देती है कि नियोक्ता की कार्रवाइयों को सद्भावनापूर्वक किया जाना चाहिये, विशेष रूप से कर्मचारियों को अनुशासित करते समय। 
  • निलंबन आदेशों को रद्द करने के लिये न्यायालय का विधिक अधिकार जिसमें उचित आधार का अभाव हो या जो शक्ति के मनमाने प्रयोग प्रदर्शित करता है। 
  • अनुचित निलंबन को रद्द करने के पश्चात् परिणामी लाभों का सिद्धांत, जिसमें सेवा की निरंतरता और निलंबन अवधि के लिये पूर्व वेतन सम्मिलित है।  

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) का अनुच्छेद 24 क्या है? 

  • न्यायालय ने विशेष रूप से मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 24 का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया है: "हर किसी को आराम और अवकाश का अधिकार है, जिसमें काम के घंटों की उचित सीमा और वेतन के साथ आवधिक छुट्टियाँ सम्मिलित हैं।" 
  • यह प्रावधान कई विधिक सिद्धांतों को स्थापित करता है: 
    • मौलिक मानव अधिकार के रूप में आराम और अवकाश का सार्वभौमिक अधिकार 
    • इस अधिकार के एक आवश्यक घटक के रूप में काम के घंटों पर उचित सीमाओं की आवश्यकता 
    • इस अधिकार को सुनिश्चित करने के भाग के रूप में वेतन के साथ आवधिक छुट्टियों की आवश्यकता 
  • न्यायालय ने इस अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानक का प्रयोग अपने तर्क के लिये एक आधारभूत आधार के रूप में किया कि अत्यधिक कार्य घंटे (60 लगातार दिनों के लिये प्रतिदिन 16 घंटे) याचिकाकर्त्ता के मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि यह अधिकार केवल आकांक्षात्मक नहीं है, अपितु रोजगार प्रथाओं और कार्यस्थल विनियमों के लिये व्यावहारिक निहितार्थ हैं, विशेषकर तब जब यह निर्धारित किया जाता है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिये उचित आधार क्या हैं।