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सिविल कानून
विक्रय राशि जमा करने की समयावधि का विवरण
«05-Mar-2025
राम लाल बनाम विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से जरनैल सिंह (अब दिवंगत) व अन्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) "यह वाद अपीलीय न्यायालयों के लिये एक आंख खोलने वाला है, जो उन्हें याद दिलाता है कि CPC के आदेश XX नियम 12A के प्रावधानों का पालन करना उनका कर्त्तव्य है।" न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि अपीलीय न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह समयावधि निर्दिष्ट करे जिसके अंदर शेष विक्रय मूल्य का भुगतान किया जाना है।
- उच्चतम न्यायालय ने राम लाल बनाम विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से जरनैल सिंह (अब दिवंगत) व अन्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) मामले में यह निर्णय दिया।
राम लाल बनाम विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से जरनैल सिंह (अब दिवंगत) व अन्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मामले का सारांश
- यह मामला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के 30 अगस्त 2022 के निर्णय के विरुद्ध अपील है, जिसने प्रतिवादियों द्वारा दायर एक सिविल रिवीजन आवेदन को अनुमति दी थी।
- इस निर्णय ने निष्पादन न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने प्रतिवादियों को 15 दिनों के अंदर शेष विक्रय राशि ₹5,00,000 जमा करने पर वादी के पक्ष में विक्रय विलेख निष्पादित करने का निर्देश दिया था।
- विवाद की पृष्ठभूमि
- वादी (अपीलकर्ता) ने कृषि भूमि के संबंध में प्रतिवादियों (प्रतिवादियों) के साथ दिनांक 16 नवंबर 2006 को किये गए विक्रय करार के विनिर्दिष्ट पालन के लिये वाद संस्थित किया।
- ट्रायल कोर्ट ने 20 जनवरी 2012 को वादी के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें प्रतिवादी को 3 महीने के अंदर विक्रय विलेख निष्पादित करने और पंजीकृत करने का निर्देश दिया गया, बशर्ते वादी 2 महीने के अंदर शेष विक्रय मूल्य जमा कर दे।
- प्रथम अपील
- प्रतिवादियों ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को जिला न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन 21 अप्रैल 2015 को उनकी अपील खारिज कर दी गई।
- प्रतिवादियों ने दूसरी अपील दायर नहीं की, जिससे निर्णय अंतिम हो गया।
- निष्पादन याचिका
- वादी ने जनवरी 2017 में एक निष्पादन याचिका दायर की, जिसमें शेष विक्रय मूल्य जमा करने की अनुमति मांगी गई।
- निष्पादन न्यायालय ने 06 मई 2019 को याचिका को अनुमति दी, जिसमें वादी को 15 दिनों के अंदर राशि जमा करने और प्रतिवादियों को 06 जुलाई 2019 से पहले विक्रय विलेख निष्पादित करने का निर्देश दिया गया।
- प्रतिवादियों की उच्च न्यायालय में चुनौती
- प्रतिवादियों ने उच्च न्यायालय के समक्ष सिविल रिवीजन दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि:
- वादी ने बिना किसी वैध कारण के शेष राशि जमा करने में विलंब किया।
- इस विलंब के कारण डिक्री अक्रियाशील हो गई थी।
- उच्च न्यायालय ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि:
- वादी को 2015 में प्रथम अपील खारिज होने के तुरंत बाद राशि जमा कर देनी चाहिये थी।
- चूँकि विलंब के लिये कोई ठोस कारण नहीं बताए गए थे, इसलिये डिक्री निष्पादन योग्य नहीं रह गई थी।
- उच्च न्यायालय ने निष्पादन न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया तथा वादी के दावे को प्रभावी रूप से खारिज कर दिया।
- प्रतिवादियों ने उच्च न्यायालय के समक्ष सिविल रिवीजन दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि:
- वर्तमान अपील
- वादी ने अब उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की है, तथा विलंब के बावजूद आदेश को लागू करने की मांग की है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने पाया कि इस मामले में प्रासंगिक प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) का आदेश XX नियम 12A है, जो अचल संपत्ति की विक्रय या पट्टे के लिये संविदा के विशिष्ट प्रदर्शन के लिये डिक्री का प्रावधान करता है।
- आदेश XX का नियम 12A न्यायालय के लिये अचल संपत्ति की विक्रय या पट्टे के लिये संविदा के विशिष्ट प्रदर्शन के लिये डिक्री में वह तिथि निर्दिष्ट करना अनिवार्य बनाता है, जिस तक खरीदार या पट्टेदार द्वारा क्रय राशि या अन्य राशि का भुगतान किया जाना चाहिये।
- इस मामले में न्यायालय ने विलय के सिद्धांत का आह्वान किया, जो इस तर्क पर आधारित है कि किसी निश्चित बिंदु पर एक से अधिक प्रभावी डिक्री नहीं हो सकती।
- इस प्रकार, जब ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय को अपीलीय न्यायालय में चुनौती दी जाती है, तो ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय अपीलीय न्यायालय के निर्णय के साथ विलीन हो जाता है, भले ही अपील स्वीकार की जाए या अस्वीकार की जाए।
- न्यायालय ने माना कि विनिर्दिष्ट पालन का आदेश प्रारंभिक आदेश की प्रकृति का होता है और दोनों पक्षों के पास आदेश से उत्पन्न होने वाले पारस्परिक अधिकार और दायित्व होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) की धारा 28 (1) यह स्पष्ट करती है कि विनिर्दिष्ट पालन आदेश के जारी होने के बाद न्यायालय पदेन कार्य नहीं करता है और विक्रय विलेख निष्पादित होने तक आदेश से निपटने के लिये इसकी शक्ति और अधिकारिता यथावत रहती है।
- ट्रायल कोर्ट द्वारा तय समयावधि के अंदर शेष विक्रय प्रतिफल का भुगतान न करना संविदा को छोड़ने और परिणामस्वरूप उसे रद्द करने के बराबर नहीं है। असली परीक्षा यह देखने की होनी चाहिये कि क्या वादी का आचरण संविदा के अपने हिस्से को पूरा करने से सकारात्मक इनकार के बराबर होगा।
- SRA की धारा 28 को लागू करने और संविदा को रद्द करने से पहले वादी की ओर से जानबूझकर लापरवाही का तत्त्व होना चाहिये।
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि अपीलीय न्यायालय को शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने का समय निर्दिष्ट करना चाहिये।
- अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित डिक्री ही निष्पादन योग्य है। अपीलीय न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह समयावधि निर्दिष्ट करे।
- यदि निर्दिष्ट समयावधि के दौरान डिक्री धारक शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने की स्थिति में नहीं है या दूसरे शब्दों में, शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने में विफल रहता है तथा बाद में निर्दिष्ट समयावधि की समाप्ति पर जमा करने की अनुमति मांगता है, तो शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने के लिये अतिरिक्त समय देना या अस्वीकार करना ट्रायल कोर्ट के विवेकाधिकार में होगा।
- इस विवेकाधिकार का प्रयोग विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिये जैसे कि डिक्री धारक की सद्भावना, समय पर शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने में विफलता का कारण, विलंब की अवधि और साथ ही निर्णय ऋणी के पक्ष में अंतराल अवधि के दौरान बनाई गई इक्विटी।
- न्यायालय ने अंततः माना कि यदि अपीलीय न्यायालय समय निर्दिष्ट करने में विफल रहता है तो डिक्री धारक से उचित समय के अंदर राशि जमा करने की अपेक्षा की जाती है।
- इस प्रकार, वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर अपील सफल रही।
CPC का आदेश XX नियम 12A क्या है?
- यह प्रावधान 1976 में संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था।
- यह प्रावधान अचल संपत्ति की विक्रय या पट्टे के लिये संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये डिक्री प्रदान करता है।
- यह प्रावधान निम्नलिखित के लिये प्रावधान करता है:
- यदि विनिर्दिष्ट पालन के आदेश में खरीदार या पट्टेदार को कोई राशि (क्रय राशि या कोई अन्य राशि) चुकाने की आवश्यकता होती है, तो इसमें इसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये।
- विनिर्दिष्ट पालन के आदेश में भुगतान करने की समय सीमा निर्दिष्ट होनी चाहिये।
- नियम 12A के अनुसार न्यायालय के लिये यह अनिवार्य है कि वह अचल संपत्ति की विक्रय या पट्टे के लिये संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये डिक्री में वह तिथि निर्दिष्ट करे, जिस तक क्रेता या पट्टेदार द्वारा क्रय राशि या अन्य राशि का भुगतान किया जाना चाहिये।