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आपराधिक कानून
राज्य सीआरपीसी की धारा 372 लागू नहीं कर सकते
« »29-Sep-2023
कर्नाटक राज्य बनाम मल्लेशनिका "न्यायमूर्ति एस. रचैया ने कहा कि राज्य उस क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 372 के तहत पीड़ितों के लिये है।" न्यायमूर्ति एस. रचैया |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति एस. रचैया ने कहा कि राज्य उस क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 372 के तहत पीड़ितों के लिये है।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कर्नाटक राज्य बनाम मल्लेशनिका मामले में यह हिदायत दी ।
कर्नाटक राज्य बनाम मल्लेशनिका की पृष्ठभूमि क्या है?
- आरोपी पर अपनी पत्नी और पत्नी की मां पर हमला करने के लिये भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की कई धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था।
- ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय ने आरोपियों को बरी कर दिया ।
- इसलिये, राज्य ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 372 के तहत एक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि दोनों प्रावधानों के बीच अंतर है, पीड़ित को बरी करने के आदेश के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 372 के तहत अपील दायर करनी होगी। जबकि राज्य को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 378 (1) और (3) के तहत अपील दायर करनी होगी ।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 372 क्या है?
- धारा 372 यह बताती है कि आपराधिक न्यायालय के किसी भी फैसले या आदेश के खिलाफ कुछ परिस्थितियों को छोड़कर या जब तक अन्यथा कानून द्वारा प्रदान नहीं किया गया हो, कोई अपील नहीं की जाएगी।
- संक्षेप में, यह आपराधिक न्यायालयों के निर्णयों के लिये अंतिमता का सिद्धांत स्थापित करता है, लेकिन यह विशिष्ट अपवादों के साथ स्थापित होता है।
- धारा 372 के तहत अपील करने का अधिकार केवल पीड़ित को दिया गया है।
- अपीलीय क्षेत्राधिकार:
- यह धारा मानती है कि अपील का अधिकार न्यायिक प्रक्रिया का एक अनिवार्य पहलू है, जो किसी फैसले या आदेश से असंतुष्ट पीड़ितों को उच्च न्यायालय में समीक्षा की मांग करने की अनुमति देता है।
- न्यायिक समीक्षा:
- यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक समीक्षा के अवसर प्रदान करने के महत्व को स्वीकार करता है कि न्याय दिया जाए और यदि व्यक्तियों को लगता है कि निचले न्यायालय के फैसले में त्रुटियाँ है या अन्याय किया गया हैं तो उन्हें सहारा मिले।
मामले में शामिल अन्य कानूनी प्रावधान क्या है?
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378 (1) और (3): दोषमुक्ति के मामले में अपील -
- (1) उप-धारा (2) में अन्यथा प्रदान किये अनुसार और उप-धारा (3) और (5) के प्रावधानों के अधीन,
- ज़िला मजिस्ट्रेट, किसी भी मामले में, लोक अभियोजक को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के संबंध में मजिस्ट्रेट द्वारा पारित बरी करने के आदेश के खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील पेश करने का निर्देश दे सकता है;
- राज्य सरकार, किसी भी मामले में, लोक अभियोजक को उच्च न्यायालय के अलावा किसी अन्य न्यायालय द्वारा पारित बरी किये गए मूल या अपीलीय आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील पेश करने का निर्देश दे सकती है।
- (1) उप-धारा (2) में अन्यथा प्रदान किये अनुसार और उप-धारा (3) और (5) के प्रावधानों के अधीन,
(3) उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत किसी भी अपील पर उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना विचार नहीं किया जाएगा।