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आपराधिक कानून

महत्त्वपूर्ण तथ्यों का दमन

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 28-Aug-2023

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मितुल कुमार जाना

"यदि कोई व्यक्ति ऐसी जानकारी नहीं देता है जो आवश्यक नहीं है, तो इसे भौतिक तथ्यों को छिपाना नहीं कहा जायेगा।"

न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी, न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऐसी जानकारी नहीं देता है जो आवश्यक नहीं है, तो इसे भौतिक तथ्यों को छिपाना नहीं कहा जायेगा।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल राज्य बनाम मितुल कुमार जाना के मामले में की।

पृष्ठभूमि

  • आवश्यक प्रक्रिया से गुजरने के बाद, प्रतिवादी को पश्चिम बंगाल पुलिस बल में कांस्टेबलों की योग्यता सूची में रखा गया।
  • बाद में, प्रतिवादी को 'पुलिस सत्यापन नामावली' प्रदान की गई थी और उसे वह नामावली भरने के लिये कहा गया।
    • उन्होंने इसे निर्धारित समय के भीतर नियुक्ति प्राधिकारी के पास जमा कर दिया।
  • स्थानीय पुलिस स्टेशन द्वारा भेजी गई पुलिस सत्यापन रिपोर्ट के अनुसार, यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी को एक आपराधिक मामले में फंसाया गया था।
  • उक्त सत्यापन फॉर्म की जांच करने पर, प्राधिकरण ने एक राय बनाई कि प्रतिवादी ने एक लंबित आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी।
  • उपरोक्त निष्कर्ष के कारण अपीलकर्त्ता द्वारा प्रतिवादी को नियुक्त करने से इनकार कर दिया गया।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि लंबित आपराधिक मामला अंतिम परिणाम के अधीन है, इसलिये प्रतिवादी की निर्दोषता की धारणा अभी भी बनी हुई है।
    • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी की नियुक्ति का आदेश दिया जिसके खिलाफ यह अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणी

  • उच्चतम न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामले के तथ्यों में, सत्यापन फॉर्म में प्रतिवादी से मांगी गई जानकारी अस्पष्ट थी।
    • इसलिये उच्च न्यायालय ने इस निष्कर्ष को सही ढंग से दर्ज़ किया है कि यह महत्त्वपूर्ण जानकारी को दबाने का मामला नहीं है।
  • उच्चतम न्यायालय ने फिर प्रतिवादी की नियुक्ति का आदेश दिया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • महत्त्वपूर्ण तथ्य को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 (Section 3 of the Indian Evidence Act, 1872 (IEA) के तहत परिभाषित किया गया है,
    • ऐसी कोई वस्तु, वस्तुओं की अवस्था, या वस्तुओं का संबंध जो इंद्रियों द्वारा बोधगम्य हो।
    • कोई भी मानसिक दशा जिसके भान किसी व्यक्ति को हो।
  • महत्त्वपूर्ण तथ्य वे तथ्य होते हैं जो मूल रूप से मुद्दे से जुड़े होते हैं और उस मामले पर न्यायालय के निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
    • दूसरे शब्दों में, ये तथ्य न्यायालय को अन्य प्रासंगिक तथ्यों की व्याख्या करने में सहायता करते हैं और विषय वस्तु के मूल्यांकन की ओर ले जाते हैं।
  • ऐसे तथ्यों को छिपाना कानून की दृष्टि से अस्वीकार्य है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप आवश्यक जानकारी छिपाई जाती है।
    • इस संबंध में कानून कहता है कि व्यक्ति को साफ हाथों और स्पष्ट तथ्यों के साथ न्यायालय में आना चाहिये।

प्रमुख निर्णयज विधि

  • सचिव, गृह सुरक्षा विभाग, आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य बनाम बी. चिन्नमा नायडू (वर्ष 2005):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि चूँकि सत्यापन नामावली में लंबित आपराधिक मामले के बारे में उल्लेख करने की विशेष आवश्यकता नहीं थी, इसलिये महत्त्वपूर्ण जानकारी को छिपाने के लिये प्रतिवादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • अवतार सिंह बनाम भारत संघ और अन्य (वर्ष 2016):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि, जानकारी छिपाना या गलत जानकारी का निर्धारण करने के लिये अनुप्रमाणन/सत्यापन फॉर्म में स्पष्ट रूप से जानकारी मांगी जानी चाहिये, अस्पष्ट रूप से नहीं।
    • केवल ऐसी जानकारी का प्रकटीकरण करना होगा जिसका विशेष रूप से उल्लेख किया जाना आवश्यक था।
    • यदि ऐसी जानकारी, जो मांगी तो नहीं गई है, लेकिन प्रासंगिक है, नियोक्ता के संज्ञान में आती है, तो उपयुक्तता के प्रश्न को संबोधित करते समय उस पर वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार किया जा सकता है।
      • हालाँकि, ऐसे मामलों में उस तथ्य को छिपाने या गलत जानकारी प्रस्तुत करने के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, जिसके बारे में पूछा ही नहीं गया हो।