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आपराधिक कानून

CrPC के तहत अभ्यर्पण

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 19-Feb-2024

"अपीलकर्त्ता को समन करने के किसी आदेश के अभाव में, अपीलकर्त्ता को अभिरक्षा में नहीं लिया जा सकता था, भले ही उसके विरुद्ध अपराध का संज्ञान लिया गया हो।"

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने सौविक भट्टाचार्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय कोलकाता जोनल कार्यालय के मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई की, जिसने स्वेच्छा से अभ्यर्पण करने वाले अपीलकर्त्ता की अपील को खारिज़ कर दिया।

वसंता (मृत) थ्रू एल.आर. बनाम राजलक्ष्मी @ राजम (मृत) थ्रू एल.आर.एस. मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • विशेष न्यायालय ने, धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत एक मामले में, 7 दिसंबर, 2022 के एक आदेश के माध्यम से अपराधों का संज्ञान लेने के बाद, अपीलकर्त्ता (अभियुक्त नंबर 10) को पहले से समन किये बिना समन जारी किया।
  • अपीलकर्त्ता ने स्वेच्छा से अभ्यर्पण किया और ज़मानत मांगी, जिसे 22 जनवरी, 2023 को विशेष न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।
  • अपीलकर्त्ता ने इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन अपील 18 अक्तूबर, 2023 को खारिज़ कर दी गई।
    • परिणाम से असंतुष्ट, अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता को समन करने के किसी आदेश के अभाव में, अपीलकर्त्ता को अभिरक्षा में नहीं लिया जा सकता था, भले ही उसके विरुद्ध अपराध का संज्ञान लिया गया हो। उच्चतम न्यायालय ने अपील की अनुमति दी।

मामले में क्या विधिक प्रावधान शामिल है?

  • परिचय:
    • जब कोई व्यक्ति, जिस पर अज़मानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह संदेह है कि उसने अज़मानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय के अतिरिक्त किसी न्यायालय के समक्ष हाज़िर होता है या लाया जाता है, उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 437 के तहत ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है।
    • CrPC की धारा 437 ट्रायल कोर्ट और मजिस्ट्रेट को यह तय करने के लिये निहित अधिकार से संबंधित है कि अज़मानतीय अपराध के अभियुक्त या संदिग्ध व्यक्तियों को पुलिस द्वारा लाए जाने या अभ्यर्पण करने या स्वेच्छा से पेश होने पर ज़मानत दी जाए अथवा नहीं।