होम / करेंट अफेयर्स

पारिवारिक कानून

तलाक-ए-अहसन

    «    »
 25-Apr-2025

तनवीर अहमद पटेल बनाम महाराष्ट्र राज्य

“केवल तत्काल ट्रिपल तलाक़ पर प्रतिबंध है, तलाक-ए-अहसन अनुज्ञेय बना हुआ है।” 

न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख एवं न्यायमूर्ति श्रीमती विभा कंकनवाड़ी

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख एवं न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी की पीठ ने माना है कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 केवल तलाक-ए-बिद्दत (तत्काल ट्रिपल तलाक) पर प्रतिबंध लगाता है तथा तलाक-ए-अहसन के माध्यम से तलाक पर रोक नहीं लगाता है, जो इस्लामिक विधि के अंतर्गत एक वैध पारंपरिक रूप है।

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

तनवीर अहमद पटेल बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2025 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • आवेदक पति एवं प्रतिवादी पत्नी की शादी 31 अक्टूबर, 2021 को भुसावल, जलगांव में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। 
  • दंपति आरंभ में पति के माता-पिता के साथ जलगांव में लगभग दो सप्ताह तक रहे, उसके बाद वे बेलापुर, नवी मुंबई चले गए, जहाँ पति कार्यरत था। 
  • नवंबर 2021 से अप्रैल 2022 तक दंपति नवी मुंबई में रहे, जब तक कि प्रतिवादी पत्नी, जो गर्भवती थी, भुसावल में अपने पिता के घर वापस नहीं आ गई। 
  • 26 अप्रैल, 2022 को पति पत्नी को मेडिकल चेकअप के लिये खारगर के एक अस्पताल ले गया, जहाँ उसकी सोनोग्राफी की गई, जिसमें रक्तस्राव संबंधी जटिलताएँ पायी गईं।
  • इसके बाद 28 अप्रैल, 2022 को पत्नी को उसके पिता भुसावल ले गए, जहाँ स्त्री रोग विशेषज्ञ ने 15 दिन तक आराम करने की सलाह दी।
  • आवेदकों से परामर्श किये बिना, पत्नी ने दूसरे डॉक्टर की सलाह के आधार पर अपना गर्भपात करा लिया।
  • 17 जून, 2022 को पत्नी और उसके भाई के साथ एक दुर्घटना हुई, जिसके परिणामस्वरूप पत्नी के सिर में गंभीर चोट लगी और ब्रेन हेमरेज हो गया, जिसके लिये उसने 27 दिसंबर, 2022 तक विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराया।
  • फरवरी 2023 में पति का तबादला बैंगलोर हो गया तथा वह अपनी पत्नी को अपने साथ ले गया।
  • दिवाली के दौरान जब पति के माता-पिता बैंगलोर में उनके साथ आए, तो पत्नी ने कथित तौर पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया।
  • स्थिति तब और बिगड़ गई जब पत्नी ने कथित तौर पर धमकी दी कि अगर उसे अपने पिता के घर लौटने की अनुमति नहीं दी गई तो वह आत्महत्या कर लेगी। 
  • इन अपूरणीय मतभेदों के कारण, पति ने साक्षियों की उपस्थिति में 23 दिसंबर, 2023 को तलाक-ए-अहसन (एकल तलाक की घोषणा) घोषित कर दिया। 
  • इसके बाद पति ने 28 दिसंबर, 2023 को पंजीकृत डाक से तलाक का नोटिस भेजा। 
  • बिना सहवास के 90 दिनों की प्रतीक्षा अवधि के बाद, दंपति ने 24 मार्च 2024 को तलाकनामा पर हस्ताक्षर किये। 
  • 15 अप्रैल, 2024 को पत्नी ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 के अंतर्गत पति और उसके माता-पिता के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई। 
  • पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने 2019 अधिनियम के अंतर्गत निषिद्ध तलाक का अपरिवर्तनीय रूप घोषित किया है।

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि FIR केवल मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध के लिये दर्ज की गई थी, जिसमें भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत कोई आरोप नहीं था। 
  • न्यायालय ने कहा कि उक्त अधिनियम की धारा 4 केवल पति द्वारा किये गए अपराधों तक ही सीमित है, तथा इसलिये ससुर एवं सास को ऐसे अपराध में शामिल नहीं किया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि एकसमान आशय से संबंधित भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 को तलाक की घोषणा के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि तलाक की घोषणा में एक एकसमान आशय नहीं हो सकता है।
  • न्यायालय ने उक्त अधिनियम की धारा 2(c) की जाँच की, जो 'तलाक' को 'तलाक-ए-बिद्दत' या तलाक के किसी अन्य समान रूप के रूप में परिभाषित करती है, जिसका मुस्लिम पति द्वारा घोषित तात्कालिक या अपरिवर्तनीय तलाक का प्रभाव होता है।
  • न्यायालय ने देखा कि अधिनियम केवल तलाक के उन रूपों को प्रतिबंधित करता है, जिनके तात्कालिक एवं अपरिवर्तनीय दोनों प्रभाव होते हैं, धारा 2(c) में परिभाषा का संदर्भ देते हुए।
  • न्यायालय ने नोट किया कि FIR के अनुसार, प्रतिवादी पत्नी ने स्वीकार किया है कि 28 दिसंबर, 2023 के नोटिस में कहा गया है कि पति ने तलाक-ए-अहसन (तलाक का एक बार उच्चारण) कहा था।
  • न्यायालय ने माना कि साक्षियों के अभिकथनों से भी पुष्टि होती है कि पति ने तलाक-ए-बिद्दत नहीं, बल्कि तलाक-ए-अहसन कहा था।
  • न्यायालय ने 23 दिसंबर, 2023 की तिथि वाले नोटिस की प्रति वाली चार्जशीट का उदाहरण दिया, जिसमें पति ने कहा था कि वह शरीयत विधि के अनुसार तलाक-ए-अहसन का उच्चारण कर रहा था। 
  • न्यायालय ने स्वीकार किया कि अंतिम तलाकनामा 24 मार्च, 2024 को निष्पादित किया गया था, 90-दिन की प्रतीक्षा अवधि के बाद, जिसके दौरान पक्षों के बीच सहवास या शारीरिक संबंधों की बहाली नहीं हुई थी। 
  • न्यायालय ने माना कि अधिनियम के अंतर्गत जो प्रतिबंधित था वह तलाक-ए-बिद्दत था न कि तलाक-ए-अहसन, और इसलिये आवेदकों को वाद दाखिल करने की अनुमति देना विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

तलाक-ए-अहसन क्या है?

  • तलाक-ए-अहसन को इस्लामिक विधि के अंतर्गत तलाक का सबसे उचित एवं स्वीकृत रूप माना जाता है। 
  • तलाक-ए-अहसन में, पति अपनी पत्नी को उसकी पवित्रता की अवधि (तुहर) के दौरान एक बार तलाक कहता है। 
  • एकल घोषणा के बाद, लगभग 90 दिनों या तीन मासिक धर्म चक्रों की प्रतीक्षा अवधि (इद्दत) आरंभ होती है। 
  • इस प्रतीक्षा अवधि के दौरान, तलाक निरस्त करने योग्य रहता है, जिससे जोड़े को सुलह का अवसर मिलता है। 
  • अगर पति-पत्नी इद्दत अवधि के दौरान सहवास या शारीरिक संबंध पुनः प्रारंभ करते हैं, तो तलाक प्रभावी रूप से निरस्त हो जाता है।
  • यदि 90-दिन की प्रतीक्षा अवधि के अंदर कोई सुलह नहीं होती है, तो इद्दत के पूरा होने पर तलाक अंतिम एवं अपरिवर्तनीय हो जाता है। 
  • तलाक-ए-अहसन पद्धति को कूलिंग पीरियड प्रदान करने के लिये प्रावधानित किया गया है जो पति-पत्नी के बीच सुलह को प्रोत्साहित करती है। 
  • तलाक-ए-बिद्दत (ट्रिपल तलाक़) के विपरीत, तलाक-ए-अहसन तात्कालिक नहीं है तथा यह चिंतन एवं संभावित पुनर्स्थापना के लिये समय प्रदान करता है। 
  • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 तलाक-ए-अहसन को प्रतिबंधित या अपराध नहीं बनाता है। 
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने तलाक-ए-अहसन को इस्लामिक विधि के अंतर्गत तलाक के एक वैध रूप के रूप में मान्यता दी है जो भारत में विधिक है।