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आपराधिक कानून
शिनाख्त परेड
« »10-Aug-2023
कमल बनाम दिल्ली राज्य (NCT)।
"यदि आरोपियों को पहले ही पुलिस स्टेशन में गवाहों के सामने पेश किया जा चुका है, तो न्यायालय के समक्ष टीआईपी की पवित्रता संदिग्ध है।"
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा
स्रोत: सुप्रीम कोर्ट
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि दोषी ठहराने वाली परिस्थितियाँ निर्णायक प्रकृति की होनी चाहिये और उन्हें ऐसी हर संभावित परिकल्पना को वर्जित करना चाहिये ताकि उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को साबित किया जा सके ।
- कमल बनाम राज्य (एनसीटी) दिल्ली के मामले में उच्चतम न्यायालय (SC) ने यह टिप्पणी की।
पृष्ठभूमि
- अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि मृतक के भाई ने अपने भाई को घर में एक खाट पर मृत पाया और आरोपी पर अपना संदेह ज़ाहिर करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज (FIR) कराई।
- अभियोजन का मामला मुख्य रूप से अभियोजक गवाह (PW) - 20 और PW-21 की गवाही पर निर्भर था।
- अभियोजक गवाह (PW)-21 ने आरोपी की पहचान के संबंध में कई विरोधाभासी बयान दिये।
- अभियोजक गवाह (PW)-21 ने स्वीकार किया कि उसने आरोपी को मृतक के घर के बाहर देखा था।
- मुख्य परीक्षा (examination-in-chief) में उन्होंने कहा कि 16 सितंबर, 2009 को पुलिस ने उन्हें मृतक के घर बुलाया था और पुलिस ने उन्हें बताया था कि इन आरोपियों ने मृतक की हत्या की है।
- वह फिर से प्रति-परीक्षा (cross-examination) के दौरान मुकर गया और कहा कि उसने पहली बार आरोपी को 12 सितंबर, 2009 को पुलिस स्टेशन में देखा था।
- इस गवाह की गवाही पर संदेह इसलिये हुआ क्योंकि उसने आरोपी को टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) यानी पहचान परेड से पहले ही देख लिया था ।
न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)
- न्यायालय कहा कि यह प्राथमिक सिद्धांत है कि न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले आरोपी को दोषी साबित नहीं किया जा सकता।
- न्यायालयने यह भी कहा कि यदि आरोपियों को पहले ही पुलिस स्टेशन में गवाहों के सामने दिखाया जा चुका है, तो न्यायालयके समक्ष टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) यानी शिनाख्त परेड की शुचिता संदिग्ध हो जाती है।
शिनाख्त परेड (Test Identification Parade (TIP)
- टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872 (IEA) की धारा 9 के तहत पहचान स्थापित करने के तरीकों में से एक है।
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की धारा 54A गिरफ्तार किये गए व्यक्ति की पहचान के लिये एक स्थिति भी प्रदान करती है।
- जहाँ किसी व्यक्ति को अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा उसकी पहचान ऐसे अपराध की जाँच के उद्देश्य से आवश्यक मानी जाती है तो टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) यानी शिनाख्त परेड आयोजित की जा सकती है।
- यह अवधारणा किसी साक्ष्य की सत्यता का परीक्षण करने के विचार पर आधारित है ।
- इस प्रक्रिया में गवाह की कई अज्ञात लोगों के बीच से उस व्यक्ति की पहचान करने की क्षमता का परीक्षण किया जाता है जिसे गवाह ने किसी अपराध के संदर्भ में देखा था।
- जहाँ तक संभव हो शिनाख्त परेड जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आयोजित और रिकॉर्ड की जाएगी।
- यदि कोई गवाह गलती भी करता है तो उसे दर्ज किया जाना चाहिये।
- यदि शिनाख्त परेड किसी पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में की जाती है, तो यह CrPC की धारा 162 के अर्थ के तहत एक बयान के बराबर होता है और अस्वीकार्य साक्ष्य बन जाता है।
- इसका उपयोग पुष्टिकरण के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता।
शिनाख्त परेड के प्रकार (Types of Identification Parade)
शिनाख्त परेड आपराधिक मामलों में निम्नलिखित की पहचान के लिये आयोजित की जाती हैं:
- ज्ञात या अज्ञात जीवित या मृत व्यक्ति
- आग्नेयास्त्रों सहित वस्तुएँ
- लिखावट, तस्वीरें, उंगली और पैरों के निशान
परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के तहत निम्नलिखित साक्ष्य की श्रेणी में आते हैं:
- वे सभी बयान जिन्हें न्यायालय गवाहों द्वारा अपने समक्ष दिये जाने की अनुमति देता है या अपेक्षित करता है, ऐसे बयानों को मौखिक साक्ष्य कहा जाता है;
- न्यायालय के निरीक्षण के लिये प्रस्तुत किये गए इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सहित सभी दस्तावेज़ और ऐसे दस्तावेज़ों को दस्तावेज़ी साक्ष्य कहा जाता है।
- भारत में साक्ष्य को दो व्यापक शीर्षकों में वर्गीकृत किया गया है, प्रत्यक्ष साक्ष्य और अप्रत्यक्ष साक्ष्य अर्थात् परिस्थितिजन्य साक्ष्य ।
- प्रत्यक्ष साक्ष्य वे होते हैं जो निर्णायक रूप से तथ्य को साबित करते हैं जबकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य किसी तथ्य को साबित करने के लिये उपयोग की जाने वाली परिस्थितियों की शृंखला होते हैं।
- इसकी उत्पत्ति रोमन कानून प्रणाली से हुई है जहाँ इसका उपयोग किसी मामले की जांच के लिये एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में किया जाता था।
- यह उस सिद्धांत पर आधारित है "आदमी झूठ बोल सकता है, लेकिन परिस्थितियाँ झूठ नहीं बोलतीं।"
- परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि के लिये पंचशील सिद्धांतों को शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य (1984) के प्रकरण/वाद में बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया है।
पंचशील सिद्धांत
- परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर प्रकरण/वादके साक्ष्य का पंचशील या पांच स्वर्णिम सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- जिन परिस्थितियों से अपराध का निष्कर्ष निकाला जाना है, उन्हें पूरी तरह से स्थापित किया जाना चाहिये
- इस प्रकार स्थापित तथ्य केवल अभियुक्त के अपराध की परिकल्पना के अनुरूप होने चाहिये
- परिस्थितियाँ निर्णायक प्रकृति और प्रवृत्ति की होनी चाहिये
- ऐसी परिस्थितियों को हर दूसरी परिकल्पना को बाहर करना चाहिये
- साक्ष्य की शृंखला इतनी पूर्ण होनी चाहिये कि यह निष्कर्ष निकालने या अभियुक्त को निर्दोष साबित करने के लिये कोई उचित आधार न छोड़े और सभी मानवीय संभावना में यह दिखाना चाहिये कि अपराध आरोपी द्वारा किया गया है।