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सिविल कानून
रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख द्वारा स्वामित्व का अंतरण
« »09-Jan-2025
संजय शर्मा बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड एवं अन्य “प्रतिवादी द्वारा सुरक्षित आस्ति के स्वामित्व का दावा करने के लिये जिन सभी दस्तावेजों पर भरोसा किया गया था, वे रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ हैं और संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 54 के तहत वैध विक्रय की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हैं।” न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.कोटिश्वर सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.कोटीश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि 100 रुपए से अधिक मूल्य की संपत्ति का अंतरण रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से होना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने संजय शर्मा बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड एवं अन्य (2024) मामले में यह निर्णय दिया।
- संजय शर्मा बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह विवाद दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में स्थित एक संपत्ति से संबंधित है, जिसकी मालकिन चंपा बहन कुंडिया थीं।
- संपत्ति के कई अरजिस्ट्रीकृत विक्रय हुए। इनमें शामिल थे:
- सबसे पहले, उसके बेटे चंदू भाई को (2000)।
- फिर सतनाम सिंह और सुरिंदर वाधवा को (2001)।
- अंत में राज कुमार विज (प्रतिवादी नंबर 2) को विक्रय समझौते के माध्यम से (2001)।
- यह संपत्ति चंपा बहन कुंडिया ने एसोसिएटेड इंडिया फाइनेंशियल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड से ऋण प्राप्त करने के लिये गिरवी रखी थी।
- ऋण को अंततः कोटक महिंद्रा बैंक को अंतरित कर दिया गया और वर्ष 2006 में ऋण का भुगतान न करने के कारण प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (SARFAESI अधिनियम) के तहत नोटिस जारी किया गया।
- कानूनी कार्यवाही के अनुसरण में बैंक ने कोर्ट रिसीवर के माध्यम से परिसर का कब्ज़ा ले लिया।
- प्रतिवादी संख्या 2 और अन्य ने ऋण वसूली अधिकरण (DRT) में मामला दायर किया।
- DRT ने उन्हें कब्ज़ा बरकरार रखने के लिये 2,00,000 रुपए जमा करने का आदेश दिया। जबकि आदेश का संकलन अन्य लोगों द्वारा किया गया, प्रतिवादी 2 ने भुगतान नहीं किया।
- इसके बाद परिसर की नीलामी की गई और अपीलकर्त्ता ने 7,50,000 रुपए की बोली लगाकर नीलामी जीत ली।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता को विक्रय प्रमाण पत्र जारी किया गया।
- नीलामी को चुनौती:
- प्रतिवादी संख्या 2 ने अपीलीय अधिकरण में नीलामी को चुनौती दी।
- DRT ने नीलामी को रद्द कर दिया और प्रतिवादी संख्या 2 को 9% ब्याज के साथ संपत्ति को छुड़ाने की अनुमति दे दी।
- नीलामी विजेता (अपीलकर्त्ता) ने DRT के आदेश को अपीलीय अधिकरण में चुनौती दी।
- अपीलीय अधिकरण ने अपीलकर्त्ता का पक्ष लिया और नीलामी विक्रय को बहाल कर दिया।
- उन्होंने कहा कि प्रतिवादी संख्या 2 के स्वामित्व संबंधी दावे विवादित थे।
- इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई जिसमें अपीलीय अधिकरण के निर्णय को उलट दिया गया।
- इस प्रकार, नीलामी को रद्द करने संबंधी DRT का आदेश बहाल कर दिया गया।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आदेश दिया:
- नीलामी विजेता को ब्याज सहित 7,50,000 रुपए लौटाए गए।
- न्यायालय ने प्रतिवादी 2 को बंधक को भुनाने की अनुमति दी।
- इसके अलावा, पुनर्भुगतान के लिये ब्याज दर के रूप में 9% की दर निर्धारित की गई।
- अपीलकर्त्ता, जो नीलामी विजेता है, दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित उपरोक्त आदेश से व्यथित है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने पाया कि यद्यपि प्रतिवादी संख्या 2 के संबंधित वकील ने इस तथ्य पर बल दिया कि प्रतिवादी संख्या 2 वर्तमान में 16.04.2001 के रजिस्ट्रीकृत जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी तथा उसी तिथि के विक्रय करार के आधार पर अनुसूचित परिसर के कब्ज़े में है, फिर भी तथ्य यह है कि श्रीमती चंपा बहन कुंडिया द्वारा निष्पादित विक्रय करार रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ द्वारा नहीं है।
- यह भी देखा गया कि उपर्युक्त समझौते के रजिस्ट्रीकरण के अभाव में, अपीलकर्त्ता यह पता नहीं लगा सका कि प्रतिवादी संख्या 2 के पक्ष में किसी प्रकार का पूर्व हित सृजित किया गया था या नहीं।
- वास्तव में, इसी कारण से, प्रतिवादी संख्या 1 को भी उक्त तथ्य की जानकारी नहीं होती, भले ही बैंक द्वारा उपर्युक्त अनुसार समुचित तत्परता बरती गई होती, क्योंकि विक्रय करार रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ नहीं था।
- इसलिये, प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा सुरक्षित आस्ति के तहखाने के स्वामित्व का दावा करने के लिये जिन सभी दस्तावेजों पर भरोसा किया गया है, वे अरजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ हैं और संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 54 के तहत वैध विक्रय की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हैं।
- इस प्रकार प्रतिवादी संख्या 2 के पास परिसर के स्वामित्व का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि जिस समझौते पर वह भरोसा करता है, वह एक अरजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख है।
- नीलामी विक्रय वैधानिक आवश्यकताओं के अनुपालन में की गई तथा यह एक वैध विक्रय था।
- न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी को मोचन के अधिकार का लाभ उठाने के लिये पर्याप्त अवसर दिये गए थे, लेकिन प्रतिवादी द्वारा इसका लाभ नहीं उठाया गया।
- इसलिये, न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और अपीलीय अधिकरण के आदेश को बहाल कर दिया।
- न्यायालय ने आदेश दिया कि परिसर को अपीलकर्त्ता अर्थात नीलामी क्रेता को सौंप दिया जाए।
विक्रय क्या होता है और यह कैसे किया जाता है?
- संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 54
- TPA की धारा 54, "विक्रय" को उस कीमत के बदले में स्वामित्व के अंतरण के रूप में परिभाषित करती है, जिसका भुगतान या तो किया जाता है, या वचन किया जाता है, या आंशिक रूप से भुगतान किया जाता है और आंशिक रूप से वचन किया जाता है।
- यह प्रावधान विक्रय के तरीके के बारे में भी बताता है। इसमें कहा गया है कि सौ रुपए या उससे अधिक मूल्य की मूर्त स्थावर संपत्ति के मामले में, अंतरण केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से ही किया जा सकता है।
- "केवल" शब्द का प्रयोग यह दर्शाता है कि एक सौ रुपये या उससे अधिक मूल्य की मूर्त स्थावर संपत्ति के लिये, विक्रय तभी वैध होती है जब इसे रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से निष्पादित किया जाता है।
- जहाँ विक्रय विलेख के लिये रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकता होती है, वहाँ स्वामित्व तब तक अंतरित नहीं होता जब तक कि विलेख रजिस्ट्रीकृत न हो जाए, भले ही कब्ज़ा अंतरित हो जाए, तथा ऐसे रजिस्ट्रीकरण के बिना भी प्रतिफल का भुगतान कर दिया जाए।
- किसी सतावर संपत्ति के विक्रय विलेख का रजिस्ट्रीकरण अंतरण को पूरा करने और मान्य करने के लिये आवश्यक है।
- जब तक रजिस्ट्रीकरण नहीं हो जाता, स्वामित्व अंतरित नहीं होता।
- रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2008 की धारा 17
- रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 में ऐसे दस्तावेजों का प्रावधान है जिनका रजिस्ट्रीकरणीय अनिवार्य है।
- इसमें प्रावधान है कि 100 रुपए से अधिक मूल्य की संपत्ति का विक्रय का अंतरण रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से किया जाएगा।
रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख द्वारा विक्रय पर निर्णयज विधि क्या हैं?
- बाबाशेब धोंडीबा कुटे बनाम राधु विठोबा बर्डे (2019)
- न्यायालय ने कहा कि विक्रय के माध्यम से अंतरण केवल रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2008 की धारा 17 के अनुसार विक्रय विलेख के रजिस्ट्रीकरण के समय ही होगा।
- तब तक कानून की नज़र में कोई हस्तांतरण नहीं है।
- सूरज लैम्प्स एंड इंडस्ट्रीज़ बनाम हरियाणा राज्य (2012)
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि स्थावर संपत्ति का अंतरण केवल रजिस्ट्रीकृत अंतरण विलेख के माध्यम से ही किया जा सकता है।
- न्यायालय ने इस मामले में ‘एसए/जीपीए/विल’ (SA/GPA/WILL) अंतरण के माध्यम से संपत्ति का स्वामित्व अंतरित करने की प्रथा की भी निंदा की।
- न्यायालय ने आगे कहा कि TPA की धारा 54 के अनुसार स्थावर संपत्ति का विक्रय केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से ही हो सकता है और विक्रय के लिये किया गया समझौता विषय-वस्तु में कोई अधिकार या हित सृजित नहीं करता है।