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आपराधिक कानून

BNS के अंतर्गत विधिविरुद्ध सभा

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 06-Sep-2024

नित्या नंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

“जब आरोप IPC की धारा 149 के अधीन हो तो किसी व्यक्ति विशेष पर कोई प्रत्यक्ष कृत्य आरोपित करने की आवश्यकता नहीं है।”

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ एवं अभय एस. ओका

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ एवं न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 149, जो अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 188 है, के अधीन दोषसिद्धि के लिये किसी प्रत्यक्ष कृत्य की आवश्यकता नहीं है, बल्कि विधिविरुद्ध सभा के सहभागी के रूप में अभियुक्त की उपस्थिति ही दोषसिद्धि के लिये पर्याप्त है।

  • उच्चतम न्यायालय ने नित्या नंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में यह निर्णय दिया।

नित्या नंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • सूचना प्रदाता सरवन कुमार ने थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई थी, जिसमें उसने बताया था कि 8 सितंबर 1992 को जब वह और उसके पिता (सत्य नारायण) तथा चाचा अपनी दैनिक दिनचर्या के अनुसार स्नान के लिये गंगा घाट पर आए तो यह घटना घटी।
  • श्रीदेव तथा उसके चार बेटे मुन्ना लाल, राजू, नित्या नंद तथा उच्चव उर्फ ​​पप्पू कंटा, चाकू तथा देशी पिस्तौल से लैस होकर सत्य नारायण से भिड़ गए।
  • आरोपियों ने सत्य नारायण को पकड़ लिया तथा उसके साथ मारपीट करने लगे।
  • उसके पिता की चीख पुकार सुनकर सूचना प्रदाता सरवन कुमार व अन्य लोग उसे बचाने आए।
  • तभी नित्या नंद ने देशी पिस्तौल से गोली चला दी, जिसके बाद सभी आरोपी भाग निकले।
  • सूचना प्रदाता जब मौके पर पहुँचा तो सत्य नारायण (सूचना प्रदाता के पिता) की मृत्यु हो चुकी थी।
  • जाँच पूरी होने पर आरोपियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 147 एवं धारा 302 एवं धारा 149 के अधीन आरोप तय किये गए।
  • ट्रायल कोर्ट ने आरोपी श्री देव और मुन्ना लाल, राजू और उच्चव उर्फ ​​पप्पू को IPC की धारा 148 और धारा 302 सहपठित धारा 149 के अधीन दोषी ठहराया।
  • उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
  • उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि को यथावत् रखते हुए अपील को खारिज कर दिया।
  • परिणामस्वरूप, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की सज़ा के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या अभियोजन पक्ष सत्य नारायण की हत्या में अपीलकर्त्ता की दोषसिद्धि को उचित संदेह से परे सिद्ध कर सकता है।
  • अपीलकर्त्ता पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 148 एवं धारा 149 के आधार पर आरोप लगाया गया था।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 में यह प्रावधान है कि विधिविरुद्ध सभा का प्रत्येक सदस्य समान उद्देश्य के लिये किये गए अपराध का दोषी होगा।
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 में यह प्रावधान है कि यदि किसी विधिविरुद्ध सभा के किसी सदस्य द्वारा उस सभा के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिये कोई अपराध कारित किया जाता है, या ऐसा अपराध किया जाता है, जिसके विषय में उस जनसमूह के सदस्यों को पता था कि उस उद्देश्य की पूर्ति के लिये ऐसा अपराध किया जाना सम्भाव्य है, तो प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध को किये जाने के समय उक्त सभा का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।
  • इस प्रकार, यदि यह हत्या का मामला है तो विधिविरुद्ध सभा का प्रत्येक सदस्य IPC की धारा 302 के अधीन अपराध करने का दोषी होगा।
  • इस प्रकार, जिस प्रश्न का उत्तर दिया जाना आवश्यक है वह यह है कि क्या अभियुक्त विधिविरुद्ध सभा का सदस्य था, न कि यह कि क्या उसने वास्तव में अपराध में भाग लिया था या नहीं।
  • न्यायालय ने माना कि जैसा कि यूनिस उर्फ करिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002) में माना गया था, जब आरोप IPC की धारा 149 के अधीन हो तो किसी व्यक्ति विशेष पर कोई प्रत्यक्ष कार्य आरोपित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • विधिविरुद्ध सभा के सहभागी के रूप में अभियुक्त की उपस्थिति दोषसिद्धि के लिये पर्याप्त है।
  • इसलिये, उच्चतम न्यायालय ने माना कि अधीनस्थ न्यायालय द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 एवं धारा 302 के अधीन दोषसिद्धि की पुष्टि करना न्यायोचित था।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अधीन विधिविरुद्ध सभा क्या है?

  • BNS की धारा 187(1) में विधिविरुद्ध सभा के विषय में प्रावधान किया गया है। यह ध्यान देने वाली बात है कि यह IPC की धारा 141 के अधीन प्रदान किया गया है।
  • विधिविरुद्ध सभा के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व यह है कि इसमें 5 से अधिक व्यक्ति होने चाहिये।
  • सभा में शामिल होने वाले व्यक्तियों का सामान्य उद्देश्य यह है:
    • आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन से भयभीत करना,
      • केंद्र सरकार, या
      • कोई राज्य सरकार, या
      • संसद, या
      • किसी राज्य का विधानमंडल, या
      • कोई लोक सेवक
      • ऐसे लोक सेवक की वैध शक्ति के प्रयोग में
    • किसी भी विधि या
    • किसी विधिक प्रक्रिया के कार्यान्यवन का विरोध करना, या
      • शरारत, या
      • आपराधिक अतिचार, या
      • अन्य अपराध
    • किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल या आपराधिक बल के द्वारा
      • किसी संपत्ति पर कब्ज़ा करना या प्राप्त करना, या
      • किसी व्यक्ति को रास्ते के अधिकार या पानी के उपयोग या अन्य अमूर्त अधिकार के उपभोग से वंचित करना, जिसका वह कब्ज़ा या उपभोग कर रहा है, या
      • किसी अधिकार या कथित अधिकार को लागू करना
    • आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन के माध्यम से
      • किसी व्यक्ति को ऐसा करने के लिये बाध्य करना जिसे करने के लिये वह विधिक रूप से बाध्य नहीं है, या
      • वह कृत्य कारित करने से चूकना जिसे करने का वह विधिक रूप से अधिकारी है
  • धारा 187 के स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि जो सभा एकत्रित होने के समय विधिविरुद्ध नहीं थी, वह बाद में विधिविरुद्ध सभा बन सकती है।
  • बाकी प्रावधान IPC के अधीन अन्य प्रावधानों का मिश्रण हैं। इन प्रावधानों का तुलनात्मक विश्लेषण इस प्रकार है:

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS)

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC)

धारा 187 (2)

धारा 142 & धारा 143

विधिविरुद्ध सभा का सदस्य होना एवं उसके लिये सज़ा।

धारा 187 (3)

धारा 145

यह जानते हुए भी कि उसे भंग होने का आदेश दिया गया है, विधिविरुद्ध सभा में शामिल होना या उसमें बने रहना

धारा 187 (4)

धारा 144

घातक हथियार से लैस होकर विधिविरुद्ध सभा में शामिल होना

धारा 187 (5)

धारा 151

पाँच या अधिक व्यक्तियों की सभा को भंग करने का आदेश दिये जाने के बाद भी उसमें जानबूझकर शामिल होना या जारी रखना

धारा 187 (6)

धारा 150

विधिविरुद्ध सभा में शामिल होने के लिये व्यक्तियों को कार्य पर रखना, या कार्य पर रखने में शामिल करना

धारा 187 (7)

धारा 157

विधिविरुद्ध सभा के लिये किराये पर लिये गए व्यक्तियों को शरण देना

धारा 187 (8)

धारा 158

किसी विधिविरुद्ध सभा या दंगे में भाग लेने के लिये कार्य पर रखा जाना

धारा 187 (9)

धारा 158 Part II

कार्य पर रखा जाना, हथियारबंद होना

विधिविरुद्ध सभा से उत्पन्न प्रतिनिधिक दायित्व क्या है?

  • BNS की धारा 188 विधिविरुद्ध सभा के प्रत्येक सदस्य के संबंध में प्रतिनिधिक दायित्व निर्धारित करती है।
  • विधिविरुद्ध सभा का प्रत्येक सदस्य विधिविरुद्ध सभा के किसी भी सदस्य द्वारा किये गए अपराध के लिये उत्तरदायी होगा, यदि:
    • सभा के सामान्य उद्देश्य के लिये किया गया अपराध।
    • या ऐसा अपराध जिसके विषय में सभा के सदस्यों को पता था कि वह सामान्य उद्देश्य के लिये किया गया है।
  • पहले यह प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के अंतर्गत किया गया था।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के अंतर्गत दायित्व पर क्या मामले हैं?

  • विनुभाई रणछोड़भाई पटेल बनाम राजीवभाई डूडाभाई पटेल (2018):
    • IPC की धारा 149 के अधीन दायित्व के लिये यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति ने चोट पहुँचाई हो।
    • उस सभा में अभियुक्त की उपस्थिति उसे IPC की धारा 149 के अधीन उत्तरदायी बनाने के लिये पर्याप्त है।
    • जब बड़ी संख्या में लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं (इकट्ठा होते हैं) तथा कोई अपराध करते हैं, तो यह संभव है कि सभा के केवल कुछ सदस्य ही वह महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं जो उस लेन-देन को अपराध बनाता है और शेष सदस्य उस "महत्त्वपूर्ण कार्य" में भाग नहीं लेते हैं।
    • ऐसी परिस्थितियों में, विधानमंडल ने विधायी नीति के रूप में अपराध के लिये प्रतिनिधिक दायित्व की अवधारणा को लागू करना उचित समझा। IPC की धारा 149, एक ऐसा ही प्रावधान है।
    • यह समाज की शांति बनाए रखने तथा दोषपूर्ण कार्य करने वालों (जो अपराध करने में सक्रिय रूप से सहयोग करते हैं या सहायता करते हैं) को इस आधार पर दण्ड से छूट का दावा करने से रोकने के लिये व्यापक लोक हित में बनाया गया प्रावधान है कि विधिविरुद्ध सभा के सदस्यों के रूप में उनकी गतिविधि सीमित है।
  • कृष्णप्पा बनाम कर्नाटक राज्य (2012):
    • धारा 149 IPC विधिविरुद्ध सभा के सदस्यों पर उस सभा के किसी अन्य सदस्य द्वारा सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में किये गए विधिविरुद्ध कृत्यों के लिये रचनात्मक या प्रतिनिधिक दायित्व बनाता है।
    • चोट पहुँचाने या न पहुँचाने का तथ्य प्रासंगिक नहीं होगा, जहाँ आरोपी को IPC की धारा 149 की सहायता से फँसाने की कोशिश की जाती है।
    • न्यायालय द्वारा जाँच किये जाने वाला प्रासंगिक प्रश्न यह है कि क्या आरोपी विधिविरुद्ध सभा का सदस्य था, न कि उसने वास्तव में अपराध में सक्रिय भाग लिया था या नहीं।