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आपराधिक कानून

डॉक्टर द्वारा कारित उपेक्षा के लिये प्रतिनिधिक दायित्व

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 23-Apr-2025

प्रबंध निदेशक, कामिनेनी हॉस्पिटल बनाम पेड्डी नारायण स्वामी एवं अन्य

"NCDRC के निर्णय को यथावत रखा गया है, हालाँकि अपीलकर्त्ता - हॉस्पिटल की देयता के संबंध में क्षतिपूर्ति की राशि ब्याज सहित 10 लाख रुपये होगी।"

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हॉस्पिटल को डॉक्टर की चिकित्सकीय उपेक्षा के लिये उत्तरदायी माना जा सकता है, जिसके कारण मरीज की मृत्यु हुई।

  • उच्चतम न्यायालय ने प्रबंध निदेशक, कामिनेनी हॉस्पिटल्स बनाम पेड्डी नारायण स्वामी एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।

प्रबंध निदेशक, कामिनेनी हॉस्पिटल्स बनाम पेड्डी नारायण स्वामी एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला कामिनेनी हॉस्पिटल द्वारा चिकित्सकीय उपेक्षा क्षतिपूर्ति से संबंधित आदेशों को चुनौती देने वाली अपील से संबंधित है।
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने हॉस्पिटल पर 15 लाख रुपये और डॉ. जे.वी.एस. विद्यासागर पर 5 लाख रुपये (कुल 20 लाख रुपये) की देयता अध्यारोपित की।
  • यह मामला प्रतिवादी संख्या 1 (पेड्डी नारायण स्वामी) के 27 वर्षीय बेटे की मृत्यु से संबंधित है।
  • मृतक अपनी मृत्यु के समय एक साबुन फैक्ट्री में कार्य करने वाला बी.टेक स्नातक था।
  • हॉस्पिटल ने अपील दायर करते हुए दावा किया कि इसमें कोई चिकित्सीय उपेक्षा नहीं हुई है, तथा तर्क दिया कि उन्होंने मानक देखभाल प्रक्रियाओं का पालन किया था तथा मरीज के परिचारकों से आवश्यक अनुमति प्राप्त की थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कामिनेनी हॉस्पिटल और डॉ. जे.वी.एस. विद्यासागर दोनों के विरुद्ध चिकित्सकीय उपेक्षा के निष्कर्ष की पुष्टि की। 
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि चिकित्सकीय उपेक्षा का संकेत देने वाले "पर्याप्त साक्ष्य" और रिकॉर्ड मौजूद थे, जो APSCDRC एवं NCDRC दोनों द्वारा प्राप्त निष्कर्षों को मान्य करते हैं। 
  • न्यायालय ने हॉस्पिटल के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उन्होंने मानक देखभाल प्रक्रियाओं का पालन किया था और आवश्यक अनुमति प्राप्त की थी। 
  • न्यायालय ने अपने डॉक्टरों एवं कर्मचारियों द्वारा कारित उपेक्षा के लिये हॉस्पिटल की प्रतिरूपी देयता को यथावत बनाए रखा। 
  • क्षतिपूर्ति की मात्रा के संबंध में, न्यायालय ने मृतक की आयु (27), शिक्षा (बी.टेक), रोजगार (साबुन फैक्ट्री) और भविष्य की कमाई की क्षमता पर विचार किया।
  • न्यायालय ने पुष्टि की कि डॉ. विद्यासागर द्वारा भुगतान किये जाने वाले 5 लाख रुपए का NCDRC का मूल्यांकन उचित था। 
  • न्यायालय ने हॉस्पिटल की देयता को 15 लाख रुपए से संशोधित कर 10 लाख रुपए और अर्जित ब्याज कर दिया। 
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि संशोधित क्षतिपूर्ति की राशि "न्याय के हित में कार्य करेगी" और हॉस्पिटल की देयता के लिये पर्याप्त होगी। 
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि जमा की गई राशि अर्जित ब्याज के साथ न्यायालय रजिस्ट्रार को आवेदन करने पर शिकायतकर्त्ता को वितरित की जाए। 
  • अपील का निपटान इन शर्तों के साथ किया गया, जिसमें उपेक्षा का निष्कर्ष यथावत रखा गया, लेकिन क्षतिपूर्ति की राशि को समायोजित किया गया।

चिकित्सकीय उपेक्षा क्या है?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 106 के अधीन चिकित्सकीय उपेक्षा प्रावधानित है। 
  • कोई भी व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, किसी भी उपेक्षा या उपेक्षा से ऐसा कार्य करना जो आपराधिक मानववध की श्रेणी में नहीं आता है, उसे पाँच वर्ष तक के कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा। 
  • यदि किसी पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा चिकित्सा प्रक्रिया करते समय मृत्यु का कारण बनने वाला ऐसा उपेक्षा या उपेक्षा वाला कार्य किया जाता है, तो व्यवसायी को दो वर्ष तक के कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा।
  • इस प्रावधान के प्रयोजनों के लिये, "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" का अर्थ है एक चिकित्सा व्यवसायी जिसके पास राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त कोई भी चिकित्सा योग्यता है। 
  • "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" की परिभाषा उन चिकित्सकों तक विस्तृत है जिनके नाम राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के अंतर्गत राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर या राज्य चिकित्सा रजिस्टर में दर्ज किये गए हैं। 
  • उपेक्षा से मृत्यु का कारण बनने के लिये सामान्य प्रावधान की तुलना में चिकित्सा व्यवसायियों को कम अधिकतम कारावास अवधि (पाँच वर्ष के बजाय दो वर्ष) का सामना करना पड़ता है।

चिकित्सकीय उपेक्षा पर क्या विधान हैं?

  • जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (2006):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने उपेक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया कि उपेक्षा तब कारित होती है जब प्रतिवादी उस व्यक्ति के प्रति सामान्य देखभाल या कौशल का उपयोग करने में विफल रहता है जिसके प्रति उसका कर्त्तव्य है, जिसके परिणामस्वरूप वादी को अपने शरीर या संपत्ति के रूप में नुकसान उठाना पड़ता है। 
    • न्यायालय ने आगे चिकित्सकीय उपेक्षा एवं आपराधिक उपेक्षा के बीच अंतर बताया।
  • बोलम बनाम फ्रायर्न हॉस्पिटल प्रबंधन समिति (2005):
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि उपेक्षा तब कारित होती है जब चिकित्सक द्वारा अपेक्षित मानकों का पालन नहीं किया जाता है, तथापि यदि उचित सावधानी बरती गई हो तो उपेक्षा नहीं मानी जा सकती।
  • कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च (2010):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उपेक्षापूर्ण कृत्य होने का अर्थ है ऐसा कुछ करना या न करने का प्रयास करना जो एक विवेकशील व्यक्ति करेगा या नहीं करेगा।