होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
जल प्रदूषण
« »20-Nov-2024
न्यायालय द्वारा स्वयं प्रस्ताव पर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य "न्यायालय ने सुझाव दिया है कि STP के संचालन समय और बिजली की खपत को रिकॉर्ड करने के लिये छेड़छाड़-रोधी मीटर लगाए जाने चाहिये और यह डेटा CPCB, DJB और मुख्य सचिव के कार्यालय की वेबसाइट पर वास्तविक समय में अपलोड किया जाना चाहिये।" मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी.एस. अरोड़ा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायालय द्वारा स्वयं प्रस्ताव पर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य के मामले में निर्देश जारी किये हैं, जो दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उचित पर्यावरण मानकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के अनुसरण में जारी किये गए हैं।
न्यायालय द्वारा स्वयं प्रस्ताव पर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने 18 जून, 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक लेख का संज्ञान लेते हुए वर्ष 2022 में एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका (PIL) शुरू की।
- उक्त जनहित याचिका की शुरुआत के पीछे मुख्य चिंताएँ ये थीं:
- अधिकारियों द्वारा वर्षा जल संचयन के प्रयासों में कमी।
- यातायात की अत्यधिक भीड़भाड़, विशेषकर मानसून के मौसम में।
- इस मामले में कई वैधानिक निकाय शामिल हैं:
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)।
- दिल्ली जल बोर्ड (DJB)।
- दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव का कार्यालय।
- यह मामला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (NCT) में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के संचालन और यमुना नदी में उनके प्रवाह से संबंधित है।
- इस मामले में निम्नलिखित मुद्दे शामिल हैं:
- जल निकासी प्रणालियों का प्रबंधन।
- जल निकायों का पुनरुद्धार।
- यमुना नदी और उसके बाढ़ के मैदानों का रखरखाव।
- वर्षा जल संचयन उपायों का कार्यान्वयन।
- कार्यवाही के दौरान तैमूर नगर के मुख्य नाले से प्राप्त फोटोग्राफिक साक्ष्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गए।
- 7 नवंबर के इंडिया टुडे में प्रकाशित एक तस्वीर, जिसमें एक श्रद्धालु यमुना नदी में छठ पूजा करते हुए दिखाई दे रही थी, न्यायालय के ध्यान में लाई गई।
- IDMC के विशेष सचिव ने न्यायालय के समक्ष एक प्रस्तुति दी, जिसमें उठाए गए विभिन्न कदमों की रूपरेखा दी गई तथा पूर्व निर्देशों के अनुपालन के लिये समयसीमा का प्रस्ताव दिया गया।
- यह मामला आवासीय क्षेत्रों में अनधिकृत प्रदूषणकारी उद्योगों द्वारा नालों में अपशिष्ट बहाए जाने से संबंधित है, जो बाद में यमुना नदी में प्रवाहित होता है।
- वर्तमान मामला दिल्ली के अधिकार क्षेत्र में 22 मुख्य नालों, सीवरों और वर्षा जल निकासी नालों की सफाई से संबंधित है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में STP अपेक्षित मानदंडों के अनुसार कार्य नहीं कर रहे हैं।
- यमुना नदी में कच्चा सीवेज छोड़ा जा रहा है, जो स्थापित पर्यावरणीय मानकों के विपरीत है।
- न्यायालय ने वैधानिक एजेंसियों द्वारा 22 मुख्य नालों, सीवरों और वर्षा जल निकासी नालों से गाद निकालने के कार्य पर असंतोष व्यक्त किया है।
- छठ पूजा की तस्वीर में दिख रहे रासायनिक झाग सीवेज उपचार मानकों के संबंध में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत आँकड़ों के विपरीत हैं।
- विशेष सचिव द्वारा सीवेज उपचार उपायों के संबंध में दिया गया प्रस्तुतीकरण "सटीक नहीं प्रतीत हुआ।"
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यमुना नदी के संरक्षण के लिये निम्नलिखित निर्देश जारी किये हैं:
- STP की निगरानी के संबंध में:
- निम्नलिखित रिकॉर्ड करने के लिये छेड़छाड़-रोधी मीटर लगाए जाने चाहिये:
- STP का परिचालन समय।
- STP की बिजली खपत।
- निम्नलिखित रिकॉर्ड करने के लिये छेड़छाड़-रोधी मीटर लगाए जाने चाहिये:
- डेटा पारदर्शिता के संबंध में:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी परिचालन डेटा को वास्तविक समय में निम्नलिखित वेबसाइटों पर अपलोड किया जाना चाहिये:
- CPCB।
- DJB।
- दिल्ली सरकार मुख्य सचिव का कार्यालय।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी परिचालन डेटा को वास्तविक समय में निम्नलिखित वेबसाइटों पर अपलोड किया जाना चाहिये:
- प्रवाह निगरानी के संबंध में:
- यह अनिवार्य किया गया है कि सभी STP को उन प्रवाह बिंदुओं पर सेंसर लगाना होगा जहाँ उपचारित जल यमुना नदी में प्रवेश करता है, ताकि निम्नलिखित रिकॉर्ड किया जा सके:
- उपचारित जल की गुणवत्ता।
- उपचारित जल की मात्रा।
- जैविक O2 मांग (BOD)।
- रासायनिक O2 मांग (COD)।
- कुल निलंबित ठोस (TSS)।
- मल कोलीफॉर्म।
- घुला हुआ फॉस्फेट।
- ये निर्देश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में उचित पर्यावरण मानकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जारी किये गए हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई 22 नवंबर, 2024 के लिये निर्धारित की है।
- यह अनिवार्य किया गया है कि सभी STP को उन प्रवाह बिंदुओं पर सेंसर लगाना होगा जहाँ उपचारित जल यमुना नदी में प्रवेश करता है, ताकि निम्नलिखित रिकॉर्ड किया जा सके:
जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 क्या है?
परिचय:
- यह अधिनियम जल प्रदूषण की निवारण तथा नियंत्रण और जल की स्वच्छता बनाए रखने या बहाल करने के लिये इसी उद्देश्य से बोर्डों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- जल प्रदूषण की निवारण तथा नियंत्रण और जल की स्वास्थ्यप्रदता को बनाए रखने या बहाल करने के लिये प्रावधान करना समीचीन है।
- संविधान के अनुच्छेद 249 और 250 में दिये गए प्रावधानों को छोड़कर संसद को किसी भी विषय पर राज्यों के लिये कानून बनाने की शक्ति नहीं है।
- भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 252 के खंड (1) के अनुसार असम, बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल राज्यों के विधानमंडलों के सभी सदनों द्वारा इस आशय के संकल्प पारित किये गए हैं कि उपरोक्त मामलों को उन राज्यों में संसद द्वारा कानून द्वारा विनियमित किया जाना चाहिये।
अधिनियम के तहत बोर्ड की शक्तियाँ और कार्य
- अधिनियम के अध्याय IV के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है:
- केंद्रीय बोर्ड के कार्य:
- स्रोतों और कुओं की सफाई को बढ़ावा देना।
- जल प्रदूषण की निवारण तथा नियंत्रण पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
- राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करना।
- राज्य बोर्डों को तकनीकी सहायता प्रदान करना।
- जल प्रदूषण पर अनुसंधान करना।
- स्रोतों और कुओं के लिये मानक निर्धारित करना।
- राज्य बोर्डों के कार्य:
- प्रदूषण की निवारण/नियंत्रण के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- राज्य सरकार को सलाह देना।
- जानकारी एकत्र करना और उसका प्रसार करना।
- अनुसंधान को प्रोत्साहित करना/आयोजित कराना।
- सीवेज/व्यापारिक अपशिष्टों और उपचार संयंत्रों का निरीक्षण करना।
- प्रदूषण के मानक निर्धारित करना।
- उपचार के तरीके विकसित करना।
- केंद्रीय बोर्ड के कार्य:
सरकार द्वारा किये गए अपराधों के लिये अधिनियम के तहत दंड
- अधिनियम की धारा 48 में दंड का प्रावधान इस प्रकार है:
- जब सरकार के किसी विभाग द्वारा कोई अपराध किया जाता है, तो विभागाध्यक्ष को दोषी माना जाएगा।
- सिवाय इसके कि यदि वह यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध को रोकने के लिये सभी उचित तत्परता बरती थी।