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सिविल कानून

वादी द्वारा वाद वापस लेना

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 19-Jan-2024

कपूरी बाई एवं अन्य बनाम नीलेश एवं अन्य

"यदि कई वादियों में से एक को राहत का स्वतंत्र अधिकार है और जो अन्य वादी द्वारा दावा किये गए अधिकार से अलग है, तो वह वाद में दावे को छोड़ना चाहता है, तो न्यायालय अपने विवेक से ऐसी राहत दे सकता है।"

न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि यदि कई वादियों में से एक को राहत का स्वतंत्र अधिकार है और जो अन्य वादी द्वारा दावा किये गए अधिकार से अलग है, तो वह वाद में दावे को छोड़ना चाहता है, तो न्यायालय अपने विवेक से ऐसी राहत दे सकता है।

  • उपर्युक्त टिप्पणी कपूरी बाई एवं अन्य बनाम नीलेश एवं अन्य के मामले में की गई थी।

कपूरी बाई एवं अन्य बनाम नीलेश एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, वर्तमान याचिकाकर्त्ताओं के पूर्ववर्ती-इन-टाइटल और अन्य वादी ने वाद संपत्ति के संबंध में स्वामित्व एवं स्थायी व्यादेश की घोषणा के लिये एक सिविल मुकदमा दायर किया है।
  • मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, वादी नंबर 7 की मृत्यु हो गई थी और संबंधित ट्रायल कोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 22 नियम 3 के तहत आवेदन की अनुमति दी थी क्योंकि मृतक-वादी नंबर 7 का विधिक प्रतिनिधि पहले से ही रिकॉर्ड में था।
  • कुछ वादी ने CPC के आदेश 23 नियम 1 के तहत एक आवेदन दायर किया, इसी तरह याचिकाकर्त्ता ने भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक समान आवेदन दायर किया और वादी संख्या 6 के आधार पर वाद वापस लेने की अनुमति मांगी, उन्होंने उनकी सहमति और जानकारी के
  • उनके हस्ताक्षर प्राप्त किये थे।
  •  संबंधित ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्त्ता द्वारा दायर आवेदन को खारिज़ कर दिया।
  • उपरोक्त आदेश से व्यथित होकर, वर्तमान याचिका मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के ने कहा कि यदि राहत पाने का स्वतंत्र अधिकार रखने वाले कई वादियों में से एक, जो अन्य वादी द्वारा दावा किये गए अधिकार से अलग हो सकता है, बिना आरक्षण के और सभी के लिये मुकदमे में अपना दावा छोड़ना चाहता है और इस तरह का परित्याग सह-वादी के राहत के अधिकार, उसकी सहमति को प्रभावित नहीं करता है, उसकी सहमति एक आवश्यक शर्त नहीं होगी और संबंधित न्यायालय, अपने विवेक से, उसके समक्ष की गई मांग को ऐसी शर्तों पर मंज़ूर कर सकता है, जिन्हें वह कारणों के साथ उचित और सही मानता है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

CPC का आदेश XXII नियम 3:

CPC का आदेश XXII नियम 3 कई वादी या एकमात्र वादी में से एक की मृत्यु के मामले में प्रक्रिया से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) जहाँ दो या अधिक वादियों में से एक की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी वादी को या अकेले उत्तरजीवी वादियों को बचा नही रहता हैं, या एक मात्र वादी या एकमात्र उत्तरजीवी वादी की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लेने का अधिकार बचा रहता हैं वहाँ इस निमित आवेदन किये जाने पर न्यायलय मृत वादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनवाएगा और वाद में अग्रसर होगा।।

(2) जहाँ विधि द्वारा परिसीमित समय के भीतर कोई आवेदन उपनियम एक के अधीन नहीं किया जाता हैं वहाँ वाद का उपशमन वहाँ तक हो जायेगा जहाँ तक मृत वादी का संबंध और प्रतिवादी के आवेदन पर न्यायालय उन खर्चो को उसके पक्ष में अधिनिर्णीत कर सकेगा जो उसने वाद की प्रतिरक्षा के उपगत किये हो और वे मृत वादी की संपदा से वसूल किये जायेंगे।

CPC का आदेश XXII नियम 1:

परिचय:

 CPC का आदेश XXIII नियम 1 वाद को वापस लेने या दावे के हिस्से को छोड़ने से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) वाद संस्थित किये जाने के पश्चात् किसी भी समय वादी सभी प्रतिवादियों या उसमें से किसी के विरुद्ध अपने वाद का परित्याग या अपने दावे के भाग का परित्याग कर सकेगा;

परंतु, जहाँ वादी अवयस्क है या ऐसा व्यक्ति है, जिसे आदेश 32 के नियम 1 से नियम 14 तक के उपबंध लागू होते हैं वहाँ न्यायालय की इजाज़त बिना न तो वाद का और न दावे के किसी भाग का परित्याग किया जाएगा।

(2) उपनियम (1) के परंतुक के अधीन इजाज़त के लिये आवेदन के साथ वाद-मित्र का शपथपत्र देना होगा और यदि प्रस्थापित अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति का प्रतिनिधित्त्व प्लीडर द्वारा किया जाता है तो, प्लीडर को इस आशय का प्रमाणपत्र भी देना होगा कि परित्याग उसकी

में अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति के हित के लिये है।

(3) जहाँ न्यायालय का यह समाधान हो जाता है -

(a) वाद किसी प्रारूपिक त्रुटि के कारण विफल हो जाएगा, अथवा

(b) वाद की विषय-वस्तु या दावे के भाग के लिये नया वाद संस्थित करने के लिये वादी को अनुज्ञात करने के पर्याप्त आधार हैं, वहाँ वह ऐसे निबंधनों पर जिन्हें वह ठीक समझे, वादी को ऐसे वाद की विषय-वस्तु या दावे के ऐसे भाग के संबंध में नया वाद संस्थित करने की स्वतंत्रता रखते हुए ऐसे वाद से या दावे के ऐसे भाग से अपने को प्रत्याहृत करने की अनुज्ञा दे सकेगा।

(4) जहाँ वादी-

(a) उपनियम (1) के अधीन किसी वाद का या दावे के भाग का परित्याग करता है, अथवा

(b) उपनियम (3) में निर्दिष्ट अनुज्ञा के बिना वाद से या दावे के भाग से प्रत्याहृत कर लेता है, वहाँ वह ऐसे खर्चे के लिये दायी होगा जो न्यायालय अधिनिर्णित करे और वह ऐसी विषय-वस्तु या दावे के ऐसे भाग के बारे में कोई नया वाद संस्थित करने से प्रवारित होगा।

(5) इस नियम की किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह न्यायालय को अनेक वादियों में से एक वादी को उपनियम (1) के अधीन वाद या दावे के किसी भाग का परित्याग करने या किसी वाद या दावे का अन्य वादियों की समहति के बिना उपनियम (3) के अधीन प्रत्याहरण करने की अनुज्ञा देने के लिये प्राधिकृत करती है।

निर्णयज विधि:

  • बैद्यनाथ नंदी बनाम श्यामा सुंदर नंदी (1943) मामले में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने माना कि जब कई वादी में से कोई एक ही मामले के संबंध में एक नया मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता सुरक्षित किये बिना मुकदमे से पीछे हटने की इच्छा रखता है, तो सह-वादी की सहमति आवश्यक नहीं होती है।