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विवाह-विच्छेद के बिना अलग रह रही महिला पति की सहमति के बिना गर्भपात करा सकती है

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 15-Jan-2025

“पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय:  विवाह-विच्छेद के बिना अलग रह रही महिला पति की सहमति के बिना गर्भपात करा सकती है।”

न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी

स्रोत: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय  

चर्चा में क्यों?

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि औपचारिक विवाह-विच्छेद के बिना अपने पति से अलग रह रही महिला, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम के तहत अपने पति की सहमति के बिना भी अपना गर्भपात करा सकती है।

  • न्यायमूर्ति कुलदीप तिवारी ने "वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन" की एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या की, जिससे याचिकाकर्त्ता को गर्भपात कराने के लिये अनुमति मिलती है।
  • न्यायालय ने क्रूरता, दुर्व्यवहार और उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संभावित नुकसान के उसके आरोपों पर विचार किया, और 18 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी।

XXX बनाम फोर्टिस हॉस्पिटल मोहाली एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • तीस वर्ष की एक विवाहित महिला ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर कर अपने पति की सहमति के बिना गर्भपात कराने की अनुमति मांगी।
  • याचिकाकर्त्ता का विवाह 22 अगस्त, 2024 को हुआ था, जिसके बाद उसे कथित तौर पर अपर्याप्त दहेज़ के कारण अपने ससुराल वालों से क्रूरता का सामना करना पड़ा।
  • उसके पति ने कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया तथा उनके बेडरूम में दो बार पोर्टेबल कैमरे से उनके निजी क्षणों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड करने का प्रयास किया।
  • पति का व्यवसाय बंद हो गया था, जिससे वह दैनिक खर्चों के लिये याचिकाकर्त्ता और उसके माता-पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर हो गया था।
  • विवाह के लगभग डेढ़ महीने बाद याचिकाकर्त्ता को पता चला कि वह गर्भवती है और उसने अपने पति से कहा कि वह अपनी अस्थिर वित्तीय स्थिति के कारण बच्चे के लिये मानसिक रूप से तैयार नहीं है।
  • पति ने कथित तौर पर गर्भपात के लिये आवश्यक अवधि के भीतर गर्भनिरोधक उपाय करने से उसे रोकने के लिये प्यार और स्नेह दिखाने का नाटक किया।
  • याचिकाकर्त्ता को अपने ससुराल वालों से शारीरिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिससे उसे थोड़ी पीड़ा और मानसिक आघात पहुँचा, जिसके कारण अंततः उसे ससुराल छोड़कर अपने माता-पिता के घर लौटने के लिये मजबूर होना पड़ा।
  • 3 दिसंबर, 2024 को याचिकाकर्त्ता को रक्तस्राव का अनुभव हुआ और उसे पहले इकबाल नर्सिंग होम ले जाया गया, फिर DMC अस्पताल, लुधियाना में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ वह 6 दिसंबर, 2024 तक भर्ती रही।
  • DMC अस्पताल की मेडिकल समरी रिपोर्ट में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि याचिकाकर्त्ता तनाव में थी और घरेलू हिंसा की शिकार थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 की धारा 3 और गर्भ का चिकित्सीय समापन नियम, 2003 के नियम 3(b) के अनुसार, इस मामले से संबंधित प्रावधान बीस सप्ताह तक के गर्भ के समापन और वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन से संबंधित हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि MTP संशोधन अधिनियम 2021 के माध्यम से संसद का आशय अविवाहित और एकल महिलाओं को अधिनियम के दायरे में शामिल करना है, जैसा कि धारा 3(2) के स्पष्टीकरण I में 'पति' शब्द को 'साथी' से प्रतिस्थापित करने से स्पष्ट होता है।
  • न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया कि जब किसी महिला को उसके परिवार या साथी द्वारा त्याग दिया जाता है, तो भौतिक परिस्थितियों में परिवर्तन आ सकता है, जिससे वह आर्थिक और व्यक्तिगत रूप से कम लाभकारी स्थिति में आ सकती है।
  • न्यायालय ने के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में स्थापित निजता के संवैधानिक अधिकार को स्वीकार किया, जो व्यक्तियों को प्रजनन संबंधी विकल्पों सहित अपने शरीर और मन पर स्वायत्तता बनाए रखने और उसका प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।
  • न्यायालय ने कहा कि हालाँकि याचिकाकर्त्ता "विधवा या तलाकशुदा" के दायरे में नहीं आती है, लेकिन कानूनी विवाह-विच्छेद के बिना अपने पति से अलग रहने का उसका निर्णय अभी भी उसे "वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन" की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के तहत गर्भपात के लिये योग्य बनाता है।
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि अवांछित गर्भधारण को मजबूर करने से महत्त्वपूर्ण शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे महिला की जीवन के अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जैसा कि अमनदीप कौर मामले (2024) में उल्लेख किया गया है।

गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन क्या है?

  • वर्ष 1971 से पहले भारत में गर्भपात अवैध था, जब तक कि चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम लागू नहीं हुआ, जो 1 अप्रैल, 1972 को लागू हुआ।
  • इस अधिनियम में वर्ष 2020 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए, जो सितंबर 2021 में प्रभावी हो गए, जिसके तहत चिकित्सीय गर्भपात के लिये अधिकतम गर्भकालीन आयु 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई।
  • 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक योग्य चिकित्सा पेशेवर की राय पर्याप्त है, जबकि 20-24 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के लिये दो पंजीकृत चिकित्सा पेशेवरों की राय की आवश्यकता होती है।
  • यह अधिनियम विशिष्ट श्रेणियों के लिये 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है, जिनमें यौन उत्पीड़न/बलात्कार/कौटुम्बिक जारकर्म की पीड़िताएँ, अवयस्क, गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन वाली महिलाएँ, गंभीर शारीरिक विकलांगता या मानसिक बीमारी से ग्रस्त महिलाएँ, तथा मानवीय या आपदा की स्थिति में फँसी महिलाएँ शामिल होती हैं।
  • भ्रूण संबंधी असामान्यताओं के मामलों में, जहाँ गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो गई है, गर्भपात के लिये प्रत्येक राज्य में स्थापित चार-सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
  • वर्ष 2021 के संशोधनों ने योग्य चिकित्सकों और चिकित्सा बोर्डों के माध्यम से आवश्यक चिकित्सा निगरानी बनाए रखते हुए सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुँच का काफी विस्तार किया।
  • संशोधित कानून में यौन उत्पीड़न से बचे लोगों, अवयस्कों और गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में बदलाव का सामना करने वाली महिलाओं जैसी श्रेणियों को विशेष रूप से शामिल करके कमज़ोर महिलाओं की सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया है।

गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम की धारा 3 क्या है?

  • यदि कोई पंजीकृत चिकित्सक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार गर्भा का समापन करता है तो वह भारतीय दंड संहिता या अन्य कानूनों के तहत किसी भी अपराध का दोषी नहीं होगा।
  • 20 सप्ताह तक के गर्भ के लिये, एक पंजीकृत चिकित्सक गर्भपात कर सकता है, यदि वह आवश्यक शर्तों के बारे में सद्भावपूर्वक राय बना ले।
  • 20-24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्था के लिये, कम-से-कम दो पंजीकृत चिकित्सकों को सद्भावनापूर्वक राय बनानी होगी, और यह नियमों के तहत निर्धारित महिलाओं की केवल विशिष्ट श्रेणियों पर ही लागू होता है।
  • यदि गर्भावस्था जारी रखने से महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचे, या बच्चे में गंभीर शारीरिक/मानसिक असामान्यता का पर्याप्त खतरा हो, तो गर्भपात की अनुमति है।
  • जब गर्भनिरोधन की विफलता के कारण गर्भधारण होता है, तो मानसिक पीड़ा को कानूनी रूप से महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर क्षति माना जाता है।
  • बलात्कार के कारण गर्भधारण के मामलों में, कानूनी तौर पर यह माना जाता है कि यह पीड़ा महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर क्षति है।
  • जब मेडिकल बोर्ड द्वारा निदान किये गए भ्रूण में गंभीर असामान्यताओं के कारण गर्भपात की आवश्यकता हो, तो अवधि संबंधी प्रतिबंध लागू नहीं होते।
  • प्रत्येक राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना होगा जिसमें एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट/सोनोलॉजिस्ट और अन्य अधिसूचित सदस्य शामिल होंगे।
  • स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का निर्धारण करते समय महिला के वास्तविक या संभावित वातावरण पर विचार किया जा सकता है।
  • 18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं या मानसिक रूप से बीमार महिलाओं के लिये, लिखित अभिभावक की सहमति आवश्यक है। अन्य सभी मामलों में, गर्भपात के लिये केवल गर्भवती महिला की सहमति आवश्यक है।

MTP अधिनियम पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • X बनाम प्रिंसिपल सेक्रेटरी केस (2022):
    • उच्चतम न्यायालय की व्याख्या है कि "वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन" की अभिव्यक्ति को प्रतिबंधात्मक व्याख्या के बजाय उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिये, तथा "विधवापन और विवाह-विच्छेद" शब्द इस श्रेणी के लिये संपूर्ण नहीं हैं।
  • सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि MTP अधिनियम के तहत महिलाओं को दिया गया गर्भपात का अधिकार, भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन संबंधी विकल्प चुनने के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार से संबंधित है।