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सांविधानिक विधि
प्रादेशिक गठजोड़ का सिद्धांत
« »29-Jan-2024
परिचय
प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत में वर्णित है कि राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून राज्य के बाहर लागू नहीं होते हैं, बशर्तें कि राज्य और उस विषय के बीच पर्याप्त संबंध हो।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 245 प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत का स्रोत है।
अनुच्छेद 245 क्या है?
- यह अनुच्छेद संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए विधि की सीमा से संबंधित है।
- इसके अनुसार—
(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद भारत के संपूर्ण राज्य-क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिये विधि बना सकेगी और किसी राज्य का विधान-मंडल संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिये विधि बना सकेगा।
(2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर अविधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि उसका राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन होगा। - यह अनुच्छेद विशेष रूप से संघ और राज्यों की विधि बनाने की शक्ति के क्षेत्रीय विभाजन से संबंधित है।
- राज्य विधान-मंडल राज्यक्षेत्रातीत विधि नहीं बना सकता, सिवाय इसके कि जब राज्य और विषय के बीच पर्याप्त संबंध हो। इसका मतलब यह है कि राज्य को राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन का अधिकार दिये जाने की स्थिति में राज्यों के विधि शून्य हो जायेंगे।
- यह सिद्धांत पहली बार बॉम्बे राज्य बनाम RMDC (1957) के मामले में लागू किया गया था।
प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य की विधायिका संपूर्ण राज्य या उसके किसी भी भाग के लिये विधि बना सकती है।
- राज्य विधान-मंडल राज्यक्षेत्रातीत विधि नहीं बना सकता, सिवाय इसके कि जब राज्य और विषय के बीच पर्याप्त संबंध हो।
- यह सिद्धांत भारत में अनिवासियों के कराधान को नियंत्रित करता है।
प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत का अवलंब कब लिया जा सकता है?
- प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत का निम्नलिखित परिस्थितियों में अवलंब लिया जा सकता है:
- किसी राज्य द्वारा राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन की स्थिति में।
- अधिनियम की विषय-वस्तु और विधि बनाने वाले राज्य के बीच कोई प्रादेशिक गठजोड़ होने की स्थित में।
प्रादेशिक गठजोड़ के सिद्धांत के ऐतिहासिक निर्णय विधि क्या हैं?
- ए.एच. वाडिया बनाम आयकर आयुक्त (1948) मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी अधिनियम की वैधता पर प्रश्न खड़ा करने के आधार पर किसी सर्वोच्च विधायी प्राधिकरण के विरुद्ध उसकी राज्यक्षेत्रातीतता का सवाल कभी नहीं उठाया जा सकता है।
- बॉम्बे राज्य बनाम RDMC (1952) में, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पर्याप्त प्रादेशिक गठजोड़ होने के कारण बॉम्बे विधानमंडल ने प्रतिवादी पर कर लगाया, क्योंकि प्रतिस्पर्द्धी की सभी गतिविधियाँ ज्यादातर बॉम्बे में ही होती थीं।