होम / संपत्ति अंतरण अधिनियम

सिविल कानून

निर्वाचन का सिद्धांत

    «    »
 11-Jan-2024

परिचय:

निर्वाचन का सीधा सा अर्थ है चयन करना, विधिक शब्दावली में निर्वाचन का सिद्धांत समानता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें न्यायालय द्वारा एक पक्षकार पर दो असंगत अधिकारों को चयन करने का दायित्व है अपितु उसे दोनों का उपभोग नहीं करना चाहिये।

सांविधिक प्रावधान:

यह सिद्धांत संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 35 के तहत आता है।

धारा 35 के तहत सिद्धांत की अनिवार्यताएँ:

  • अनिवार्यताओं की गिनती इस प्रकार की जा सकती है, जैसे-
    • अंतरक उस संपत्ति को अंतरित करने का दावा करता है, जो उसकी स्वयं की नहीं है।
    • उसी संव्यवहार में, संपत्ति के मालिक को लाभ प्रदान किया जाता है।
    • मालिक को या तो अंतरण की पुष्टि करनी होगी या उस पर असहमति व्यक्त करनी होगी।
    • यदि वह असहमत है, तो वह इस प्रकार प्रदत्त लाभ को त्याग देगा।
  • इस प्रकार त्यागा गया लाभ अंतरक या उसके प्रतिनिधि को वापस लौटा दिया जाता है, जहाँ:
    • अंतरण नि:शुल्क होता है या निर्वाचन से पहले अंतरक की मृत्यु हो जाती है या वह नवीन अंतरण करने में असमर्थ हो।
    • अंतरण विचारणीय हो।
  • फिर, निराश अंतरिती को हस्तांतरित की जाने वाली संपत्ति की राशि के बराबर क्षतिपूर्ति (मुआवज़ा) देना होगा।
    • अंतरण - TPA की धारा 5 अंतरण को एक ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसके द्वारा एक आय अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को अथवा स्वयं और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को, वर्तमान या भविष्य में संपत्ति हस्तांतरित करता है; और "संपत्ति का अंतरण करना" ऐसा कार्य करना है।
    • अंतरक - वह व्यक्ति जो संपत्ति अंतरण या हस्तांतरण करता है।
    • अंतरिती- वह व्यक्ति, जिससे संप्रेषण किया गया हो।

दृष्टांत:

सुल्तानपुर स्थित खेत, C की संपत्ति है और इसका मूल्य 800 रुपए है। A उपहार स्वरूप एक दस्तावेज़ के जरिये इसे B को हस्तांतरित करने का दावा करता है और उसी दस्तावेज़ के जरिये C को 1,000 रुपए देता है। C खेत को अपने पास रखने का चुनाव करता है। वह 1,000 रुपए का उपहार गँवा देता है। उसी मामले में, A की चुनाव से पहले मृत्यु हो जाती है। उसके प्रतिनिधि को 1,000 रुपए में से 800 रुपये B को देने होंगे।

निराश अंतरिती:

एक अंतरिती जो दिये गए लाभों को अस्वीकार करने का विकल्प चुनता है, संव्यवहार से असहमत होता है और अब संपत्ति नहीं ले सकता है वह एक निराश अंतरिती है।

निर्वाचन का विकल्प:

जो व्यक्ति प्रत्यक्ष लाभ का हकदार नहीं है, लेकिन संव्यवहार के तहत अप्रत्यक्ष लाभ का हकदार है, उसे चुनाव करने की आवश्यकता नहीं है।

निर्णयज विधि:

वल्लियम्मई वी. नागप्पा (1967), उच्चतम न्यायालय ने माना कि निर्वाचन का प्रश्न तभी उठता है जब अंतरिती प्रत्यक्ष संव्यवहार के तहत लाभ प्राप्त करता है।

सिद्धांत का अपवाद:

  • जहाँ उस संपत्ति के मालिक को एक विशेष लाभ प्रदान किया जाना व्यक्त किया जाता है, जिसे अंतरक अंतरित करने का दावा करता है, और ऐसा लाभ उस संपत्ति के बदले में होने के लिये व्यक्त किया जाता है, यदि ऐसा मालिक संपत्ति का दावा करता है, तो उसे विशेष लाभ त्यागना होगा, लेकिन वह उसी संव्यवहार से प्राप्त किसी अन्य लाभ को छोड़ने के लिये बाध्य नहीं है।
    • इसका सीधा अर्थ यह है कि, यदि कोई अंतरण के दौरान संपत्ति के स्थान पर लाभ प्रदान करता है और संपत्ति का मालिक संपत्ति का निर्वाचन करता है, तो उसे उस विशिष्ट लाभ को त्यागना होगा। हालाँकि, उसे उसी संव्यवहार में प्रदत्त किसी अन्य लाभ को नहीं त्यागना होगा।

चुनाव के प्रकार:

  • जिस व्यक्ति को लाभ प्रदान किया गया है, उसके द्वारा लाभ स्वीकार करना चुनाव कहलाता है, यदि:
    • वह चुनाव के लिये अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक हो।
    • वह उन परिस्थितियों से अवगत हो, जो चुनाव करते समय किसी उचित व्यक्ति के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं, या
      • वह परिस्थितियों की जाँच से इनकार करती हैं।
  • ऐसे मामले में जहाँ मालिक ने उपर्युक्त प्रावधानों का अनुपालन करने के पश्चात् जानबूझकर लाभ स्वीकार कर लिया है, यह दर्शाता है कि उसने संव्यवहार स्वीकार कर लिया है। एक अनुमान को स्वीकृति की ओर लाया जाता है, जहाँ:
    • असहमति व्यक्त करने का कोई कार्य किये बिना वह दो वर्ष तक लाभ उठाता है।
    • वह कुछ ऐसे कार्य करता है, जिसके द्वारा पक्षकारों को उनकी मूल स्थिति में बहाल करना असंभव है।

दृष्टांत:

  • A, B को एक संपत्ति अंतरित करता है, जिसका हकदार C है, और उसी संव्यवहार के रूप में वह C को एक कोयला-खदान प्रदान करता है। C खदान पर कब्ज़ा कर लेता है और उसे नष्ट कर देता है। इस प्रकार उसने संपत्ति को B को अंतरित करने की पुष्टि की है।

सीमा अवधि:

  • जहाँ अंतरण की तिथि के बाद एक वर्ष के भीतर मालिक अंतरक या उसके प्रतिनिधियों को अंतरण की पुष्टि करने या उससे असहमति जताने के अपने आशय के बारे में सूचित नहीं करता है, अंतरक या उसके प्रतिनिधि को उस अवधि की समाप्ति पर उसे निर्वाचन करने की आवश्यकता हो सकती है।
    • यदि वह ऐसी मांग प्राप्त होने के बाद उचित समय के भीतर उसका अनुपालन नहीं करता है, तो उसे अंतरण की पुष्टि करने के लिये चयनित माना जाएगा।

निर्योग्यता का प्रभाव:

  • निर्योग्यता के मामले में, निर्योग्यता समाप्त होने तक या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्वाचन कराए जाने तक निर्वाचन स्थगित कर दिया जाएगा।

निर्णयज विधि:

  • कूपर बनाम कूपर (वर्ष 1873): इस प्रमुख मामले में हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा निर्वाचन के सिद्धांत को निम्नलिखित शब्दों में समझाया गया था:
  • “जो भी व्यक्ति किसी वसीयत के तहत या किसी अन्य विलेख के अंतर्गत कोई फायदा लेता है उस पर यह दायित्व होता है कि वह उस विलेख को पूर्णतः क्रियान्वित करे, और यदि यह पाया जाता है कि विलेख द्वारा किसी ऐसी चीज़ को अंतरित करने की प्रव्यंजना की गयी है जो दाता अथवा अंतरक की शक्ति से परे था, किंतु जिसे उस व्यक्ति को सम्मति से जिसे उसी विलेख के तहत फायदा मिल रहा है प्रभावी बनाया जा सकता है तो विधि उक्त व्यक्ति पर दायित्व अधिरोपित करेगा कि वह संपूर्ण विलेख को पूर्णरूपेण क्रियान्वित करे।”
  • मुहम्मद अफज़ल बनाम गुलाम कासिम (वर्ष 1903), यह नीचे वर्णित विषय पर एक ऐतिहासिक मामला है:
  • तथ्य– टैंक के नवाब की मृत्यु पर सरकार ने नकद भत्ता नवाब के दूसरे बेटे को अंतरित कर दिया, जबकि नवाब ने अपने जीवनकाल में ही अपने दूसरे बेटे को उसके भरण-पोषण हेतु गाँव अंतरित कर दिये थे।
  • प्रश्न– क्या दोनों संव्यवहार एक ही संव्यवहार का भाग थे और क्या इस मामले में चुनाव का सिद्धांत लागू किया जा सकता है?
  • अधिमत– इस मामले में प्रिवी काउंसिल ने माना कि दूसरे बेटे ने दो अलग-अलग स्रोतों से अनुदान प्राप्त किया है, वे एक ही संव्यवहार का हिस्सा नहीं बनते, इसलिये दूसरे बेटे को चुनाव में नहीं उतारा जा सकता।

अनुप्रयोग:

  • यह सिद्धांत हिंदू और मुस्लिम दोनों विधियों पर लागू होता है।

अंग्रेज़ी कानून के तहत अवधारणा:

  • अंतरण के विरुद्ध चुनाव करके अंतरिती अपना लाभ नहीं खोता है बल्कि उसे निराश व्यक्ति को मुआवज़ा देना होता है।
    • हालाँकि, भारतीय कानून के तहत, ऐसे व्यक्ति को लाभ से वंचित होना पड़ता है।
  • अंग्रेज़ी कानून के तहत चुनाव कराने के लिये कोई सीमा अवधि निर्धारित नहीं है जबकि भारतीय कानून के तहत यह सीमा अवधि एक वर्ष है।

निष्कर्ष:

चुनाव का सिद्धांत लैटिन कहावत 'क्वॉड एप्रोबो नॉन रिप्रोबो' पर आधारित है, जिसका अनुवाद है 'जिसे मैं स्वीकार करता हूँ, मैं उसे अस्वीकार नहीं कर सकता।' इस प्रकार चुनाव करने वाला व्यक्ति साधन या संव्यवहार के उस भाग का चयन नहीं कर सकता जो उसके लिये फायदेमंद है और दूसरे भाग को अस्वीकार करने का विकल्प चुन सकता है। चूँकि, यह सिद्धांत विबंध (estoppel) के नियम का एक हिस्सा है, इसलिये यदि किसी व्यक्ति को लाभ मिलता है तो उसे इसका बोझ भी उठाना होगा।