पाएँ सभी ऑनलाइन कोर्सेज़, पेनड्राइव कोर्सेज़, और टेस्ट सीरीज़ पर पूरे 50% की छूट, ऑफर 28 से 31 दिसंबर तक वैध।









करेंट अफेयर्स और संग्रह

होम / करेंट अफेयर्स और संग्रह

आपराधिक कानून

भारत में गर्भपात कानून का प्रतिचित्रण

 17-Oct-2023

परिचय

  • भारत में वर्ष 1971 से विशिष्ट परिस्थितियों में गर्भपात वैध है।
    • इन परिस्थितियों में गर्भवती महिला के जीवन को खतरा, उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा, बच्चे के शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं के साथ उत्पन्न होने का खतरा और बलात्कार या गर्भनिरोधक विफलता के परिणामस्वरूप गर्भधारण शामिल हैं।
  • भारत में गर्भपात कानूनों में विगत कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जो सामाजिक मूल्यों, चिकित्सा प्रगति और प्रजनन अधिकारों पर विकसित दृष्टिकोण की जटिल परस्पर क्रिया को दर्शाते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • भारत में गर्भपात कानूनों की जानकारी औपनिवेशिक युग से मिलती है।
  • ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) ने गर्भपात को अपराध घोषित कर दिया, इसे एक गंभीर अपराध माना, सिवाय इसके कि जब यह माँ की जान बचाने के लिये किया गया हो।
  • वर्ष 1971 तक भारत में गर्भपात वैधानिक नहीं था, जब गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन अधिनियम, 1971 (MTP अधिनियम) लागू किया गया, जो गर्भपात पर कानूनी प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था।
  • हालाँकि, IPC की धारा 312 अभी भी गर्भपात को अपराध मानती है, यदि ऐसा गर्भपात महिला के जीवन को बचाने के उद्देश्य से सद्भाव रूप से न किया गया हो।

वर्तमान परिदृश्य

  • भारत में गर्भपात कानून पर परिचर्चा चिकित्सा और कानूनी विचारों से परे प्रसरित है।
  • इस लेख में, इस प्रजनन स्वायत्तता और महिलाओं के अधिकारों के प्रश्न शामिल हैं।
    • अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने का अधिकार मौलिक है, और गर्भपात पर प्रतिबंध को इस स्वायत्तता पर अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है।
  • हाल ही में प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित एक महिला ने 6 माह के भ्रूण के गर्भपात के लिये उच्चतम न्यायालय से अनुमति मांगी थी।
    • उच्चतम न्यायालय की राय इस मुद्दे पर विभाजित है कि क्या भ्रूण को माँ से पृथक स्वतंत्र रूप से जीवित रहने का अधिकार है या नहीं।
    • न्यायाधीश हिमा कोहली और न्यायाधीश बी वी नागरत्ना ने इस प्रश्न को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली 3-न्यायाधीशों की न्यायपीठ को विचार करने के लिये भेजा है।

गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन अधिनियम, 1971 (MTP अधिनियम)

  • परिचय:
    • MTP अधिनियम गर्भधारण की समाप्ति के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करने और असुरक्षित गर्भपात से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को संबोधित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • अधिनियम ने विशिष्ट परिस्थितियों में 20 सप्ताह तक गर्भधारण की समाप्ति की अनुमति दी, जैसे जब गर्भावस्था भ्रूण की असामान्यताओं के मामलों में माँ के जीवन या शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करती है, या यदि गर्भावस्था बलात्कार या गर्भनिरोधक विफलता का परिणाम है।
    • अधिनियम में 8 धाराएँ हैं, और उल्लेख है कि गर्भावस्था को एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
    • ऐसे व्यक्ति द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करना जो पंजीकृत चिकित्सक नहीं है, एक दंडनीय अपराध है।
  • आलोचना:
    • हालाँकि, 20-सप्ताह की सीमा अवधि, परिचर्चा का विषय रही है।
    • हाल के वर्षों में, गर्भकालीन अवधि को बढ़ाने की मांग की गई है, विशेषकर ऐसे मामलों में जहाँ गर्भावस्था के बाद में भ्रूण की असामान्यताओं का पता चलता है।
    • अधिवक्ताओं का तर्क है, कि अवधि बढ़ाने से महिलाओं को अपनी गर्भावस्था के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिये अधिक समय मिलेगा।

MTP संशोधन अधिनियम, 2021

  • वर्ष 2021 में, भारत सरकार ने MTP अधिनियम में संशोधन करके एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
  • प्रस्थापित संशोधनों में गर्भपात के लिये गर्भकालीन सीमा अवधि को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने की मांग की गई, जिससे महिलाओं को प्रजनन विकल्प चुनने में अधिक सुविधा मिल सके।
  • इसने एकल और अविवाहित महिलाओं सहित सभी महिलाओं को क़ानून का लाभ प्रदान किया।
  • संशोधन अधिनियम के साथ, केंद्र सरकार ने MTP, (संशोधन) नियम, 202 को भी अधिसूचित किया।

MTP अधिनियम के तहत ऐतिहासिक मामले

  • सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009) मामले में:
    • उच्चतम न्यायालय ने माना कि MTP अधिनियम के अधीन महिलाओं को प्रदत्त गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन विकल्प चुनने के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार से संबंधित है।
  • उच्च न्यायालय के स्वयं के प्रस्ताव बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) मामले में:
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला को अवांछित गर्भावस्था के लिये मज़बूर करना उसकी शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन है, उसकी भावनात्मक परेशानी को बढ़ाता है, और गर्भावस्था से जुड़े तत्काल सामाजिक, वित्तीय और अन्य प्रभावों के कारण उसके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021) मामले में:
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 26 सप्ताह की गर्भवती महिला को उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति और उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गर्भावस्था जारी रहने के प्रभाव को देखते हुए गर्भपात की अनुमति दे दी।
  • X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, एनसीटी दिल्ली सरकार (2022) मामले में:
    • उच्च न्यायालय ने सभी महिलाओं को MTP अधिनियम, 1971 के तहत गर्भावस्था के 24 सप्ताह के भीतर अपने गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार दिया।