अमेरिकी राष्ट्रपति को पूर्ण उन्मुक्ति
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अमेरिकी राष्ट्रपति को पूर्ण उन्मुक्ति

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 26-Jul-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट (SCOTUS) ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें राष्ट्रपतियों को उनकी मूल संवैधानिक शक्तियों एवं आधिकारिक कृत्यों से संबंधित आपराधिक अभियोजन से "पूर्ण उन्मुक्ति" प्रदान की गई है। यह निर्णय पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को क्षीण करने के प्रयासों में उनकी संलिप्तता के आरोप में एक आपराधिक मामले के मध्य पर्याप्त विधिक राहत प्रदान करता है। ट्रम्प की उन्मुक्ति के पक्ष में 6-3 का रूढ़िवादी-उदारवादी मत विभाजन इस निर्णय की विवादास्पद प्रकृति को चुनौती देता है, क्योंकि ट्रम्प आगामी नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में संभावित उम्मीदवारी के लिये तैयारी कर रहे हैं।

राष्ट्रपति की पूर्ण उन्मुक्ति क्या है?

  • राष्ट्रपति को पूर्ण उन्मुक्ति, वर्तमान राष्ट्रपतियों को उनके आधिकारिक कर्त्तव्यों से संबंधित सिविल वाद से रक्षण करती है।
  • इस विचार का उद्गम राष्ट्रपतियों को वाद संस्थित किये जाने के निरंतर भय के बिना अपना कार्य करने देने की आवश्यकता से हुआ है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह उन्मुक्ति व्यापक है, परंतु असीमित नहीं है। राष्ट्रपति बिना किसी परिणाम के अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकते।
  • वर्ष 1867 में, इस मामले ने राष्ट्रपति की शक्ति को उत्तरदायित्व के साथ संतुलित करने के लिये मंच तैयार किया। इसने दिखाया कि न्यायालय अभी भी राष्ट्रपतियों द्वारा की जाने वाली कुछ कृत्यों पर विचार कर सकती हैं।
  • निक्सन बनाम फिट्ज़गेराल्ड के एक महत्त्वपूर्ण मामले में, न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रपतियों पर उनके आधिकारिक कार्यों के लिये सिविल क्षतिपूर्ति के लिये वाद संस्थित नहीं किया जा सकता।
    • इससे राष्ट्रपति को वाद की चिंता किये बिना निर्णय लेने की क्षमता की रक्षा करने में सहायता मिलती है।
  • हालाँकि यह उन्मुक्ति केवल सिविल मामलों पर ही लागू होती है।
    • यह राष्ट्रपतियों को आपराधिक आरोपों या जाँच से सुरक्षा नहीं देता है।
    • राष्ट्रपतियों को कुछ न्यायालयी आदेशों का पालन करना पड़ता है तथा वे आपराधिक कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं।

क्या राष्ट्रपति को प्राप्त पूर्ण उन्मुक्ति संविधान द्वारा प्रदत्त है?

इसका उद्देश्य राष्ट्रपतियों को अपना कार्य प्रभावी ढंग से करने देने तथा यह सुनिश्चित करने के मध्य संतुलन स्थापित करना है कि वे पूर्ण रूपेण विधि से ऊपर न हों।

  • संविधान में राष्ट्रपति की उन्मुक्ति के विषय में प्रत्यक्षतः कुछ नहीं प्रावधानित किया गया है।
    • इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति के पास कार्यकारी शक्तियाँ हैं तथा उनके कर्त्तव्यों की सूची दी गई है।
  • शक्तियों के पृथक्करण का विचार महत्त्वपूर्ण है।
    • इससे तात्पर्य है कि सरकार के विभिन्न अंग (कार्यकारी, विधायी एवं न्यायिक) अलग-अलग होने चाहिये परंतु साथ मिलकर काम करना चाहिये।
    • राष्ट्रपति उन्मुक्ति के मामलों पर निर्णय लेते समय न्यायालय अक्सर इस विषय में विचार करते हैं।
  • न्यायालयी मामलों ने यह परिभाषित करने में सहायता की है कि राष्ट्रपति उन्मुक्ति से क्या अभिप्राय है।
    • उदाहरण के लिये, ट्रम्प से जुड़े एक मामले में, न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति राज्य द्वारा की जाने वाली आपराधिक जाँच से पूरी तरह से मुक्त नहीं हैं।
    • न्यायालय ने यह भी कहा है कि राष्ट्रपतियों पर उन कार्यों के लिये वाद संस्थित किया जा सकता है जो उन्होंने राष्ट्रपति बनने से पूर्व में किये गए थे या राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्य से संबंधित न होकर व्यक्तिगत कार्यों के लिये था।
    • राष्ट्रपति की उन्मुक्ति के विषय में निर्णय लेते समय, न्यायालयों को राष्ट्रपति को अपना कार्य करने देने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे विधि से ऊपर न हों।
  • मुख्य विचार यह है कि राष्ट्रपति को भी विधि का पालन करना होगा, परंतु प्रभावी ढंग से शासन करने के लिये उन्हें कुछ संरक्षण की भी आवश्यकता होगी।

राष्ट्रपति की उन्मुक्ति की सीमा क्या है?

  • सुप्रीम कोर्ट ने उन कार्यों को स्पष्ट रूप से बताने का प्रयास किया है कि राष्ट्रपति को पद पर रहते हुए किन कार्यों के लिये विधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और किन कार्यों के लिये नहीं।
  • क्लिंटन बनाम जोन्स के मामले में ये अंतर स्पष्ट किये गए।
    • इससे ज्ञात हुआ कि राष्ट्रपतियों को सभी विधिक कार्यवाहियों से पूरी तरह से सुरक्षा प्राप्त नहीं हुई है।
  • मुख्य विचार यह है कि:
    • राष्ट्रपतियों पर उनके आधिकारिक कार्य के अंतर्गत किये गए कार्यों के लिये वाद नहीं चलाया जा सकता।
    • परंतु उन्हें व्यक्तिगत कार्यों के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, भले ही ये कार्य उनके राष्ट्रपति रहते हुए ही हुए हों।
    • यह तय करने के लिये कि क्या कोई कार्य राष्ट्रपति के आधिकारिक कर्त्तव्यों का भाग है, न्यायालय यह देखते हैं कि क्या यह संविधान में प्रदत्त राष्ट्रपति के कार्यों से निकटता से संबंधित है।
  • संरक्षित उदाहरण:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णय।
    • विदेश नीति विकल्प।
    • विधियों का पालन करना।
  • असंरक्षित उदाहरण:
    • व्यक्तिगत व्यवहार जिसका राष्ट्रपति होने से कोई लेना-देना नहीं है।
  • राष्ट्रपति के रूप में नहीं, बल्कि एक सामान्य नागरिक के रूप में की गई कार्यवाही।
  • इसका लक्ष्य यह है कि राष्ट्रपतियों को विधिक कार्यवाही के भय के बिना अपना काम करने दिया जाए, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि वे विधि से ऊपर नहीं है।
  • क्या किसी कार्यरत राष्ट्रपति को विधिक कार्यवाही में भाग लेना अनिवार्य किया जा सकता है?
  • यह एक कठिन विधिक मुद्दा है जो समय के साथ विकसित हुआ है तथा इसमें राष्ट्रपति के कर्त्तव्यों को विधिक उत्तरदायित्व की आवश्यकता के साथ संतुलित करना शामिल है।
  • एक महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक उदाहरण वर्ष 1807 का है, जब मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन को एक वाद के लिये दस्तावेज़ उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।
  • इससे पता चला कि राष्ट्रपति भी पूरी तरह विधि से ऊपर नहीं हैं।
  • हाल ही में ट्रम्प बनाम वेंस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि वर्तमान राष्ट्रपति राज्य आपराधिक जाँच से पूरी तरह मुक्त नहीं हैं।
  • इन मामलों से मुख्य विचार ये हैं:
  • राष्ट्रपतियों को अपना काम करने में सहायता के लिये कुछ विशेष सुरक्षा प्राप्त होती है।
  • परंतु ये सुरक्षाएँ पूर्ण नहीं हैं- कुछ मामलों में राष्ट्रपतियों को अभी भी विधिक प्रक्रियाओं में भाग लेना आवश्यक हो सकता है।
  • न्यायालय दो महत्त्वपूर्ण बातों में संतुलन बनाने की कोशिश करता है:
  • राष्ट्रपति को विधिक व्यवधानों के बिना देश चलाने पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देना।
  • यह सुनिश्चित करना कि राष्ट्रपति विधि से ऊपर नहीं है तथा उसे किसी भी अन्य नागरिक की भाँति उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  • मुख्य बात यह है कि यद्यपि राष्ट्रपतियों को अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के लिये कुछ विधिक सुरक्षा प्राप्त है, फिर भी उन्हें न्यायालयी कार्यवाही में भाग लेने के लिये बाध्य किया जा सकता है, विशेष रूप से उन कार्यों के लिये जो राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्य से संबंधित नहीं हैं।
  • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य शक्तियों का पृथक्करण बनाए रखना है- सरकार के विभिन्न भागों पर नियंत्रण रखते हुए प्रत्येक को प्रभावी ढंग से कार्य करने की अनुमति देना।

राष्ट्रपति की उन्मुक्ति को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

  • मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स द्वारा लिखित बहुमत की राय, राष्ट्रपतियों को उनकी "मूल संवैधानिक शक्तियों" और "आधिकारिक कृत्यों" से संबंधित कार्यों के लिये आपराधिक अभियोजन से पूर्ण उन्मुक्ति प्रदान करती है।
  • यह उन्मुक्ति राष्ट्रपति के कर्त्तव्यों की "बाहरी परिधि" पर की गई कार्रवाइयों तक भी विस्तारित होती है, भले ही वे "स्पष्टतः या प्रत्यक्षतः" राष्ट्रपति के अधिकार से परे हों।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि न्याय विभाग से संबंधित ट्रम्प की कार्रवाइयाँ उनके "अनन्य संवैधानिक अधिकार" के अंतर्गत आती हैं और इस प्रकार वे पूर्ण उन्मुक्ति द्वारा संरक्षित हैं।
  • उपराष्ट्रपति के साथ बातचीत और सार्वजनिक बयानों सहित अन्य आरोपों को केस-दर-केस निर्णय के लिये ज़िला न्यायालय को वापस भेज दिया गया तथा सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इन कार्यों को भी अभियोजन से छूट दी जा सकती है।
  • इस निर्णय का उद्देश्य राष्ट्रपतियों को अपने आधिकारिक निर्णयों से उत्पन्न होने वाले संभावित विधिक परिणामों की चिंता किये बिना "साहसिक एवं निःसंकोच कार्यवाही" करने की अनुमति देना है।

क्या राष्ट्रपति को भी अन्य नागरिकों के समान विधिक मानदंडों का पालन करना चाहिये?

  • न्यायमूर्ति सोनिया सोटोमायोर ने न्यायमूर्ति केतनजी ब्राउन जैक्सन और एलेना कागन के साथ मिलकर इस काल्पनिक मामले में बहुमत की राय के विरुद्ध कड़ी असहमति व्यक्त की।
  • यह असहमति कई प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित है:
    • मौलिक सिद्धांत को चुनौती: न्यायमूर्ति सोटोमायोर का तर्क है कि बहुमत का निर्णय अमेरिकी लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को क्षीण करता है कि कोई भी विधि से ऊपर नहीं है। वह दावा करती हैं कि यह निर्णय राष्ट्रपति को पद पर रहते हुए की गई कार्यवाहियों के लिये आपराधिक विधि की पहुँच से बाहर कर देता है, भले ही वे कार्यवाहियाँ भ्रष्ट या अवैध हों।
    • बहुमत के तर्क की आलोचना: यह असहमति, बहुमत के मंतव्य को ठोस संवैधानिक आधार पर आधारित होने के बजाय "क्रूर बल" के माध्यम से उन्मुक्ति बनाने के रूप में चित्रित करती है। सोटोमायोर का तर्क है कि संविधान, ऐतिहासिक उदहारण या न्यायालय के पिछले निर्णय में इस तरह की व्यापक उन्मुक्ति के लिये कोई ठोस आधार उल्लिखित नहीं है।
    • सिविल एवं आपराधिक मामलों के बीच अंतर: इस असहमति में एक मुख्य तर्क यह है कि बहुमत दोषपूर्ण तरीके से सिविल एवं आपराधिक उन्मुक्ति को समान मानता है। न्यायमूर्ति सोटोमायोर कहती हैं कि आपराधिक मामलों में अधिक सार्वजनिक हित शामिल होते हैं और उनमें अंतर्निहित सुरक्षा उपाय होते हैं जो उन्हें कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करने की संभावना कम करते हैं। इनमें आरोप लगाने के लिये उच्च मानक और दोषसिद्धि के लिये आवश्यक "उचित संदेह से परे" साक्ष्य का का भार शामिल है।
    • इस निर्णय के निहितार्थ: यह असहमति इस निर्णय के दूरगामी परिणामों की चेतावनी देती है। सोटोमायोर ने इसे आधिकारिक कार्यों के लिये या तो संभावित या पूर्ण उन्मुक्ति के रूप में वर्णित किया है, इस निर्णय से राष्ट्रपति की शक्ति के सबसे भ्रष्ट उपयोग को भी आपराधिक अभियोजन से बचाया जा सकता है।
    • पिछले मामलों की तुलना: सोटोमायोर ने निक्सन बनाम फिट्ज़गेराल्ड (1982) में दी गई नागरिक उन्मुक्ति को राष्ट्रपति के आधिकारिक कृत्यों से जुड़े आपराधिक मामलों तक बढ़ाने के लिये बहुमत की आलोचना की। उनका तर्क है कि यह विस्तार अनुचित है और नागरिक तथा आपराधिक कार्यवाही के बीच महत्त्वपूर्ण अंतरों को अनदेखा करता है।
    • लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिये चिंता: इस असहमति में लोकतांत्रिक मानदंडों और विधि के शासन के संरक्षण के लिये एक अंतर्निहित चिंता है। सोटोमेयोर का सुझाव है कि यह निर्णय एक खतरनाक उदाहरण स्थापित कर सकता है, जो संभावित रूप से भविष्य के राष्ट्रपतियों को पद पर रहते हुए दण्ड से मुक्त होकर कार्य करने की अनुमति देता है।

राष्ट्रपति पद के लिये उन्मुक्ति संबंधी निर्णय 2024 के चुनाव को कैसे प्रभावित कर सकता है?

  • ट्रायल जारी रहेगा: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया कोर्ट ऑफ अपील्स में ट्रंप के विरुद्ध ट्रायल जारी रखने की अनुमति मिल गई है। हालाँकि जज तान्या चुटकन को अब राष्ट्रपति पद की उन्मुक्ति पर स्थापित नए उदाहरण के मद्देनज़र ट्रंप के विरुद्ध लगाए गए विशिष्ट आरोपों का पुनः मूल्यांकन करना होगा।
  • समय-सीमा: जिस एसोसिएटेड प्रेस रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है, उसके अनुसार जज चुटकन दोनों पक्षों को वाद की तैयारी के लिये कम-से-कम तीन महीने का समय देना चाहती हैं। इस विस्तारित समय-सीमा के कारण यह बहुत कम संभावना है कि नवंबर 2024 के चुनावों से पहले कोई निर्णय आ जाएगा।
  • मौजूदा दोषसिद्धि: जैसा कि देखा जा चुका है कि ट्रम्प को स्टॉर्मी डेनियल्स को चुप कराने के लिये पैसे देने के मामले में पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है। मौजूदा दोषसिद्धि संभावित रूप से उनके अभियान को प्रभावित कर सकती है, भले ही मौजूदा वाद का नतीजा कुछ भी हो।
  • संभावित भविष्य का विधिक सवाल: अगर ट्रम्प नवंबर में चुनाव जीतते हैं, जबकि उनके रिकॉर्ड में एक या उससे ज़्यादा दोषसिद्धि दर्ज हैं, तो एक नया विधिक सवाल उत्पन्न हो सकता है कि क्या एक मौजूदा राष्ट्रपति स्वयं को क्षमादान प्रदान कर सकता है। यह अमेरिकी विधिक और राजनीतिक इतिहास में एक अभूतपूर्व स्थिति होगी।
  • चुनाव पर प्रभाव: चल रही विधिक कार्यवाही और उनके परिणाम जनमत को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं तथा संभावित रूप से चुनाव परिणामों को भी प्रभावित कर सकते हैं, हालाँकि सटीक प्रभाव का अनुमान लगाना कठिन है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रपति पद की उन्मुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अमेरिकी लोकतंत्र और आगामी 2024 के चुनाव पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। हालाँकि इसका उद्देश्य राष्ट्रपतियों की निर्णायक रूप से कार्य करने की क्षमता की रक्षा करना है, परंतु यह उत्तरदायित्व तथा इस सिद्धांत के विषय में भी चिंताएँ उत्पन्न करता है कि कोई भी विधि से ऊपर नहीं है। जैसे-जैसे विधिक कार्यवाही जारी है, जनमत और चुनाव पर उनका प्रभाव अनिश्चित बना हुआ है, यदि ट्रम्प आपराधिक आरोपों का सामना करते हुए चुनाव जीतते हैं तो संभावित रूप से अभूतपूर्व विधिक सवालों के लिये मंच बनाया जा रहा है।