धन विधेयक
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सांविधानिक विधि

धन विधेयक

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 25-Jul-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने संसद में संशोधन पारित करने के लिये सरकार द्वारा धन विधेयक के विवादास्पद उपयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने की सहमति दी है। यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राज्यसभा द्वारा की जाने वाली जाँच को दरकिनार करना शामिल है।

  • याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि यह दृष्टिकोण भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन हो सकता है, जो धन विधेयक के लिये मानदंड परिभाषित करता है।

कौन-से मामले धन विधेयक के संबंध में अनुच्छेद 110 के संभावित उल्लंघन को प्रकट करते हैं?

  • आधार अधिनियम, 2016
    • पृष्ठभूमि:
      • वर्ष 2016 में पारित आधार अधिनियम ने आधार पहचान प्रणाली के लिये विधिक ढाँचा स्थापित किया।
      • इसमें नामांकन, प्रामाणीकरण और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) की स्थापना के प्रावधान शामिल थे।
    • मुख्य बिंदु:
      • सरकार ने धारा 7 का उदहारण देते हुए इसे धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया, जो आधार को भारत की संचित निधि से प्राप्त सब्सिडी और अन्य लाभों से संबद्ध करता है।
      • इस वर्गीकरण से धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा की जाने वाली जाँच से मुक्त होने की अनुमति मिल गई।
      • उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 के एक निर्णय में इस वर्गीकरण की समीक्षा की।
    • न्यायालय का निर्णय:
      • 4:1 के बहुमत से उच्चतम न्यायालय ने धन विधेयक वर्गीकरण को यथावत् रखा।
      • इस बहुमत के आधार पर अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य संचित निधि से धन निकालना माना गया तथा अन्य प्रावधान आकस्मिक माने गए।
      • भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (तब एक न्यायाधीश) एकमात्र असहमति जताने वाले न्यायाधीश थे, जिन्होंने तर्क दिया कि आधार अधिनियम, अनुच्छेद 110 के अंतर्गत धन विधेयक की परिभाषा को संतुष्ट नहीं करता है।
    • निहितार्थ:
      • इस मामले ने धन विधेयक की व्यापक व्याख्या के लिये एक उदाहरण स्थापित किया तथा उच्च सदन को दरकिनार करने के लिये इस तरीके के संभावित दुरुपयोग के विषय में चिंताएँ व्यक्त कीं।
  • वित्त अधिनियम, 2017
    • पृष्ठभूमि:
      • वित्त अधिनियम 2017 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण सहित विभिन्न अधिकरणों के पुनर्गठन के प्रावधान शामिल थे और इसे धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था।
    • मुख्य बिंदु:
      • इस अधिनियम द्वारा न्यायाधिकरण की संरचना और नियुक्तियों से संबंधित कई विधियों में संशोधन किया गया।
      • ये संशोधन, कराधान या सरकारी व्ययों से असंबद्ध प्रतीत होते थे।
      • इन सुधारों के लिये धन विधेयक मार्ग का प्रयोग अत्यधिक विवादास्पद था।
    • न्यायालय का निर्णय:
      • रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक (2019) में, पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने:
        • वित्त अधिनियम, 2017 के न्यायाधिकरण संबंधी प्रावधानों को रद्द कर दिया गया।
        • आधार निर्णय में धन विधेयक की व्यापक व्याख्या पर चिंता व्यक्त की गई।
        • इस बिंदु पर प्रकाश डाला गया कि आधार मामले में अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा में "केवल" शब्द के महत्त्व पर पर्याप्त चर्चा नहीं की गई।
        • मामले को अधिक व्यापक समीक्षा के लिये एक वृहद् पीठ को स्थानांतरित किया गया।
    • निहितार्थ:
      • इस मामले ने धन विधेयक की अधिक कठोर व्याख्या की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा गैर-वित्तीय मामलों के लिये इस वर्गीकरण के संभावित दुरुपयोग के विषय में प्रश्न उठाए।
  • PMLA में संशोधन:
    • PMLA संशोधन (2015-2019) को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया, जिससे प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
    • उच्चतम न्यायालय ने इन संशोधनों को यथावत् रखा, परंतु धन विधेयक के प्रश्न को एक वृहद् पीठ के लिये स्थानांतरित कर दिया।
    • धन विधेयक के माध्यम से शक्तियों के संभावित दुरुपयोग तथा विधायी जाँच से बचने के विषय में चिंताएँ बनी हुई हैं।

2019 के निर्णय के बाद के घटनाक्रम

  • सात न्यायाधीशों की पीठ (जिसका उल्लेख पहले किया गया है) ने अभी तक इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है कि वैध धन विधेयक क्या होता है तथा इसका आगामी विधान पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
  • न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों और चुनावी विधियों से संबंधित मामलों में धन विधेयक के प्रश्न का समाधान करने से परहेज किया है तथा बड़ी पीठ के निर्णय का इंतज़ार किया है।

 धन विधेयक से संबंधित मुख्य मुद्दे क्या हैं?

  • द्विसदनीय जाँच से बचना: धन विधेयकों के उपयोग से कार्यपालिका को उच्च सदन द्वारा विधायी समीक्षा के संवैधानिक अधिदेश को दरकिनार करने में मदद मिलती है, जिससे नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत को संभावित रूप से क्षीण किया जा सकता है।
  • द्विसदनीय विधायिका का क्षरण: यह प्रथा संविधान द्वारा परिकल्पित भारत की द्विसदनीय संसदीय संरचना के अपेक्षित संतुलन को विनष्ट कर सकती है।
  • राज्यसभा के विधायी कार्यों में कटौती: धन विधेयकों के मामले में, राज्यसभा की भूमिका मात्र सलाहकारी क्षमता तक सीमित कर दी गई है तथा प्रस्तावित विधेयक को संशोधित करने या अस्वीकार करने की पर्याप्त शक्ति का अभाव है।
  • विधायी निगरानी में कमी: राज्यसभा को दरकिनार करने के परिणामस्वरूप प्रस्तावित विधियों पर व्यापक विचार-विमर्श और गहन जाँच में कमी आ सकती है।
  • अनुच्छेद 110 का कथित उल्लंघन: धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत कुछ विधेयकों के अनुच्छेद 110 में उल्लिखित कड़े संवैधानिक मानदण्डों के अनुपालन के संबंध में चिंताएँ व्याप्त हैं।
  • अप्रतिसंशोधित प्रमाणन प्राधिकारी: किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रामाणित करने का लोकसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार, न्यायिक समीक्षा से मुक्त होने के कारण, इस संवैधानिक शक्ति के संभावित दुरुपयोग के विषय में आशंकाएँ उत्पन्न करता है।
  • संवैधानिक सुरक्षा उपायों का संभावित उल्लंघन: इस प्रथा को न्यायसंगत और संतुलित विधायी प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिये बनाए गए संवैधानिक प्रावधानों को क्षीण करने के रूप में देखा जा सकता है।
  • गैर-वित्तीय प्रावधानों पर विवाद: धन विधेयक में गैर-वित्तीय खंडों को शामिल करने की आलोचना की गई है, क्योंकि इसे इस विशेष विधायी तंत्र का संभावित दुरुपयोग माना गया है।
  • न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका को संसदीय प्रक्रियाओं के प्रति सम्मान तथा संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करने की अनिवार्यता के बीच सामंजस्य स्थापित करने का दुष्कर कार्य करना पड़ता है।
  • लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व संबंधी चिंताएँ: यह प्रथा विधायी प्रक्रिया में विविध दृष्टिकोणों के प्रतिनिधित्व को सीमित कर देती है, विशेष रूप से राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यों के दृष्टिकोण को, जिससे कानून निर्माण की समावेशिता पर प्रश्न उठते हैं।

धन विधेयक के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

धन विधेयक की परिभाषा:

भारतीय संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक को परिभाषित किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि-

(1) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें निम्नलिखित सभी या किसी भी विषय से संबंधित प्रावधान अंतर्विष्ट हों, अर्थात्:

(a) किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन;

(b) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने या कोई गारंटी देने का विनियमन, या भारत सरकार द्वारा किये गए या किये जाने वाले किसी भी वित्तीय दायित्वों के संबंध में विधि में संशोधन;

(c) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, किसी ऐसी निधि में धन का भुगतान या धन की निकासी;

(d) भारत की संचित निधि से धन का विनियोजन;

(e) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की राशि में वृद्धि करना;

(f) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखा से धन प्राप्त करना या ऐसे धन की अभिरक्षा या निर्गम या संघ या राज्य के लेखाओं की लेखापरीक्षा; या

(g) उप-खंड (a) से (f) में निर्दिष्ट किसी भी विषय से संबंधित कोई भी मामला।

(2) कोई विधेयक केवल इसलिये धन विधेयक नहीं माना जाएगा कि वह शास्ति (अर्थदण्ड) या अन्य विशिष्ट शास्ति लगाने, या किसी लाइसेंस के लिये शुल्क की मांग या भुगतान करने, या स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी स्थानीय प्राधिकरण या निकाय द्वारा किसी कर को लगाने, या समाप्त करने, छूट देने, अपवर्तन या किसी कर विनियमन का उपबंध करता है।

(3) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

(4) जब कोई धन विधेयक अनुच्छेद 109 के अंतर्गत राज्यसभा को भेजा जाता है और जब उसे राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेजा जाता है, तो लोकसभा के अध्यक्ष को एक प्रमाण-पत्र पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसमें कहा जाता है कि यह धन विधेयक है।

धन विधेयक प्रक्रिया:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 109 धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है। इस अनुच्छेद से ज्ञात होता है कि-

(1) धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा।

(2) धन विधेयक, लोकसभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात् उसे अनुशंसा के लिये राज्यसभा को भेजा जाएगा और राज्यसभा, इसकी प्राप्ति की तिथि से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी अनुशंसाओं के साथ लोकसभा को वापस भेजेगी और लोकसभा उसके पश्चात् राज्यसभा की सभी या किसी भी अनुशंसा को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी।

(3) यदि लोकसभा, राज्यसभा द्वारा की गई अनुशंसा को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्यसभा द्वारा अनुशंसित संशोधनों के साथ दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा।

(4) यदि लोकसभा, राज्य सभा के किसी सुझाव को अस्वीकार कर देती है, तो धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा अनुशंसित किसी संशोधन के बिना, उसी रूप में, जिस रूप में वह लोकसभा द्वारा पारित किया गया था, दोनों सदनों द्वारा अधिनियमित मान लिया जाता है।

(5) यदि लोकसभा द्वारा पारित और राज्यसभा को उसकी अनुशंसा हेतु भेजा गया धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोकसभा को वापस नहीं लौटाया जाता है, तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित समझा जाएगा जिस रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।

राष्ट्रपति धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं, परंतु उसे पुनर्विचार के लिये वापस नहीं लौटा सकते।

धन विधेयक के मामले में संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।

निष्कर्ष:

भारत में विधेयकों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने के विषय में विवाद विधायी प्रक्रिया और राज्यसभा की भूमिका से संबंधित महत्त्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे हैं। हाल ही में की गई न्यायिक जाँच में, विशेष रूप से आधार अधिनियम और वित्त अधिनियम 2017 जैसे मामलों में, धन विधेयकों की व्यापक व्याख्या तथा उचित जाँच को दरकिनार करने के लिये उनके संभावित दुरुपयोग पर चिंताओं को व्यक्त किया है। अनसुलझे प्रश्न और अलग-अलग न्यायिक व्याख्याओं के कारण संवैधानिक सुरक्षा उपायों का पालन सुनिश्चित करते हुए भारत की द्विसदनीय संसदीय प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने हेतु एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अनुच्छेद 110 की व्याख्या और धन विधेयक प्रावधान की सीमा पर स्पष्टता प्रदान करने के लिये उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की खंडपीठ के निर्णय की प्रतीक्षा की जा रही है।