अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएँ
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सांविधानिक विधि

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएँ

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 30-Nov-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

हाल ही में भारत के संविधान दिवस या विधि दिवस पर, राष्ट्रपति ने युवा वकीलों को अवसर प्रदान करने के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All-India Judicial Services- AIJS) की स्थापना का सुझाव दिया। अधिक विविध न्यायपालिका की खोज में AIJS स्थापित करने का राष्ट्रपति का हालिया प्रस्ताव न्यायाधीशों की भर्ती के इष्टतम तरीकों के आसपास चल रही चर्चा का एक प्रमाण है।

न्यायिक प्रणाली में विभिन्न पृष्ठभूमियों से प्रतिभाशाली व्यक्तियों को शामिल करने का समर्थन करते हुए, राष्ट्रपति का सुझाव योग्यता-आधारित चयन प्रक्रिया की स्वीकृति पर निर्भर करता है। इस प्रस्ताव से ज़िला न्यायाधीश स्तर पर राष्ट्रीय भर्ती प्रणाली की वांछनीयता और व्यावहारिकता पर एक लंबे समय से चली आ रही बहस फिर से शुरू हो जाती है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा क्या है?

  • यह अवधारणा कई वर्षों से भारत के विधिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा और बहस का विषय रही है।
  • विचार यह है कि देश भर में न्यायिक क्षमता का एक समान और उच्च मानक सुनिश्चित करने के लिये मौज़ूदा सिविल सेवाओं के समान न्यायाधीशों के लिये एक केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया बनाई जाए।
  • इस प्रस्ताव का उद्देश्य न्यायपालिका के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करना है, जिसमें रिक्तियों का मुद्दा, क्षेत्रीय असंतुलन और अधिक कुशल एवं पारदर्शी भर्ती प्रणाली की आवश्यकता शामिल है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के क्या लाभ हैं?

  • समान मानक:
    • AIJS न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक मानकीकृत और समान चयन प्रक्रिया स्थापित करेगा।
    • यह सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका पूरे देश में क्षमता और विशेषज्ञता का एक सुसंगत स्तर बनाए रखे।
    • न्यायाधीशों की गुणवत्ता में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करते हुए योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा।
  • भर्ती में दक्षता:
    • एक केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया न्यायाधीशों की नियुक्ति को सुव्यवस्थित करेगी और उसमे तेज़ी लाएगी।
    • वर्तमान में भर्ती प्रक्रिया अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है, जिससे विलंब और प्रशासनिक जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • AIJS प्रक्रिया को सरल बनाएगा तथा इसे और अधिक कुशल एवं पारदर्शी बनाएगा।
  • क्षेत्रीय असंतुलन को संबोधित करना:
    • वर्तमान प्रणाली के परिणामस्वरूप कभी-कभी क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, कुछ राज्यों को न्यायिक सेवाओं में योग्य उम्मीदवारों को आकर्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • AIJS न्यायाधीशों की गतिशीलता एवं अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी राज्यों को प्रतिभाशाली व अनुभवी न्यायिक अधिकारियों के निकाय तक पहुँच प्राप्त हो।
  • रिक्तियाँ कम करना:  
    • एक व्यवस्थित और केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया प्रदान करके, AIJS का लक्ष्य अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियों की लंबे समय से चली आ रही समस्या को कम करना है।
    • यह, बदले में मामलों के समय पर निपटान में योगदान देगा तथा न्यायिक प्रणाली की समग्र दक्षता को बढ़ाएगा।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • संघवाद की चिंताएँ:
    • आलोचकों का तर्क है कि न्यायाधीशों के लिये एक केंद्रीकृत भर्ती प्रक्रिया की स्थापना संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकती है।
    • विभिन्न राज्यों की विविध कानूनी परंपराओं एवं आवश्यकताओं को एक समान चयन प्रक्रिया द्वारा पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जा सकता है।
  • स्थानीय भाषा प्रवीणता:
    • ज़मीनी स्तर पर मामलों से निपटने वाले न्यायाधीशों के लिये स्थानीय भाषा को समझने और संवाद करने की क्षमता महत्त्वपूर्ण है।
    • AIJS को यदि सावधानी से लागू नहीं किया गया तो इस पहलू से समझौता हो सकता है, क्योंकि अन्य राज्यों के न्यायाधीश स्थानीय भाषाओं में पारंगत नहीं हो सकते हैं।
  • राज्य सरकारों का प्रतिरोध:
    • वर्तमान में राज्य सरकारों का अपने अधिकार क्षेत्र में न्यायाधीशों की भर्ती पर नियंत्रण है।
    • इस शक्ति को एक केंद्रीकृत निकाय में स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को न्यायिक नियुक्तियों में स्वायत्तता खोने के बारे में चिंतित कुछ राज्यों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के लिये संवैधानिक प्रावधान क्या है?

  • संविधान का अनुच्छेद 312, 42वें संशोधन द्वारा संशोधित, AIJS की स्थापना का प्रावधान प्रस्तुत करता है।
  • यह प्रक्रिया राज्यों की परिषद द्वारा दो-तिहाई बहुमत के प्रस्ताव एवं संसदीय विधि के अधिनियमन को अनिवार्य करती है।
  • केंद्रीकरण की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, यह संवैधानिक संशोधन मानता है कि अधीनस्थ न्यायपालिका के लिये राज्य-स्तरीय नियमों को एक एकीकृत केंद्रीय कानून के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
    • हालाँकि इसमें चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं क्योंकि कुछ राज्य अपनी न्यायपालिका को केंद्रीकृत करने के लिये नियंत्रण समाप्त करने का विरोध कर सकते हैं।
  • इस प्रावधान में यह भी उल्लेख किया गया है कि अनुच्छेद 312 में संदर्भित AIJS में ज़िला न्यायाधीश से कमतर कोई भी पद शामिल नहीं होगा।

वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • राज्यसभा में केंद्रीय कानून मंत्री का खुलासा AIJS प्रस्ताव पर आम सहमति की कमी को उजागर करता है।
    • केवल दो उच्च न्यायालय इसका समर्थन करते हैं, जबकि 13 इसका विरोध करते हैं।
  • उच्च न्यायालयों और लोक सेवा आयोगों द्वारा प्रबंधित ज़िला न्यायाधीशों तथा अधीनस्थ अधिकारियों के लिये मौजूदा भर्ती प्रणाली, आरक्षण एवं स्थानीय परिस्थितियों की समझ के माध्यम से विविधता सुनिश्चित करती है।
  • सिविल सेवा के विपरीत, न्यायाधीशों के पास नौकरशाही के समर्थन की कमी है, जो न्यायिक निर्णय लेने में उनकी विशेषज्ञता की आवश्यकता पर बल देते हैं।

निष्कर्ष:

AIJS की स्थापना में भारतीय न्यायपालिका में रिक्तियों व क्षेत्रीय असंतुलन की समस्या सहित लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को संबोधित करने की क्षमता है। हालाँकि संघवाद के सिद्धांतों, भाषा विविधता और एक पारदर्शी व जवाबदेह प्रणाली की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए चुनौतियों को सावधानीपूर्वक हल करना महत्त्वपूर्ण है।