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सांविधानिक विधि
बिलकिस बानो निर्णय का विश्लेषण
« »09-Jan-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में बिलकिस याकूब रसूल बनाम भारत संघ एवं अन्य, (2022) मामले में निर्णय सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने 13 मई, 2022 को दिये गए अपने निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात राज्य सरकार को बिलकिस बानो बलात्कार मामले में आजीवन कारावास के लिये दोषी ठहराए गए 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई का निर्णय करने की शक्ति दी थी। उच्चतम न्यायालय ने अपने ही निर्णय को अमान्य घोषित किया और इसे कानून की दृष्टि से अनुपयुक्त माना।
बिलकिस बानो मामले के तथ्य क्या हैं?
- याचिकाएँ दायर करना:
- 27 फरवरी, 2002 को गुजरात राज्य के गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना के आलोक में 28 फरवरी, 2002 एवं उसके कुछ दिनों बाद तक गुजरात में बड़े पैमाने पर हुए दंगों के दौरान हुए जघन्य अपराधों के दोषी पाए गए 11 दोषियों के परिहार और शीघ्र रिहाई प्रदान करने के संबंध में, 10 अगस्त, 2022 के गुजरात राज्य के आदेशों की आलोचना के क्रम में उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिट याचिकाएँ दायर की गईं।
- बिलकिस बानो की याचिका में उल्लिखित तथ्य:
- यह याचिका याचिकाकर्त्ता बिलकिस याकूब रसूल के साथ क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार करने से संबंधित थी, जो उस समय गर्भवती थी।
- इसके अलावा, याचिकाकर्त्ता की माँ के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई, तथा उसकी चचेरी बहन जिसने अभी-अभी एक बच्चे को जन्म दिया था, के साथ भी सामूहिक बलात्कार किया गया तथा उसकी हत्या कर दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता की चचेरी बहन के दो दिन के शिशु सहित आठ अवयस्कों की भी हत्या कर दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता की तीन वर्ष की बेटी की पत्थर में सिर मारकर हत्या कर दी गई, उसके दो अवयस्क भाई, दो अवयस्क बहनें, उसके फुफा, फुपी (बुआ), मामा और तीन कज़िन सभी की हत्या कर दी गई थी।
- विशेष केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) न्यायालय ने 21 जनवरी, 2008 को भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत एक गर्भवती महिला के साथ बलात्कार, हत्या और विधिविरुद्ध सभा की साज़िश रचने के आधार पर 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
- न्यायालय के समक्ष दायर अन्य याचिकाएँ:
- डॉ. मीरान चड्ढा बोरवणकर बनाम गुजरात राज्य (2002), सुभाषिनी अली बनाम गुजरात राज्य (2022), महुआ मोइत्रा बनाम गुजरात राज्य (2022), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (NFIW) बनाम गुजरात राज्य (2022), अस्मा शफीक शेख बनाम गुजरात राज्य (2022) और 10 अगस्त, 2022 को गुजरात सरकार के आदेश के खिलाफ स्वयं पीड़िता के नाम पर कई याचिकाएँ दायर की गईं।
बिलकिस बानो मामले में क्या मुद्दे शामिल थे?
- क्या गुजरात राज्य सरकार परिहार के आक्षेपित आदेश पारित करने में सक्षम थी?
- क्या परिहार के आदेश विधि के अनुरूप थे?
याचिकाकर्त्ताओं के विवाद क्या थे?
- महाराष्ट्र न्यायालय द्वारा की गई दोषसिद्धि:
- याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि एक बार महाराष्ट्र राज्य में एक सक्षम न्यायालय ने अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया और उन्हें दोषी ठहराया, तो वह राज्य 'समुचित सरकार' है।
- इसलिये, 11 दोषियों के संबंध में गुजरात राज्य द्वारा पारित परिहार के आदेश अधिकार क्षेत्र के बिना और अकृत हैं तथा इस प्रकार, रद्द किये जाने योग्य हैं।
- रेमिशन पॉलिसी, 1992 :
- याचिकाकर्त्ता ने प्रस्तुत किया कि चूँकि मौजूदा मामले में 'उचित सरकार' महाराष्ट्र राज्य है, इसलिये महाराष्ट्र राज्य की रेमिशन पॉलिसी लागू होगी।
- इस प्रकार, गुजरात राज्य की दिनांक 09 जुलाई, 1992 की रेमिशन पॉलिसी पूरी तरह से अप्रयोज्य होगी।
- इन परिहारों के लिये गुजरात राज्य की 1992 की रेमिशन पॉलिसी लागू की गई थी क्योंकि तब 2014 की रेमिशन पॉलिसी लागू नहीं हुई थी।
- 1992 की रेमिशन पॉलिसी ने बलात्कार के दोषियों को परिहार का लाभ पाने से रहित नहीं किया।
गुजरात राज्य का प्रमुख प्रतिवाद क्या था?
- गुजरात राज्य ने अपने शपथ-पत्र में कहा कि यदि समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार के समय दोषी के लिये लाभकारी नीति मौजूद है, तो दोषी को ऐसी लाभकारी नीति से वंचित नहीं किया जा सकता है और परिहार के आदेश की न्यायिक समीक्षा कानून में स्वीकार्य नहीं है।
बिलकिस बानो निर्णय पर उच्चतम न्यायालय का क्या निष्कर्ष है?
- उपयुक्त सरकार:
- यदि गुजरात राज्य ने यह कहते हुए उक्त आदेश की समीक्षा के लिये एक आवेदन दायर किया था कि वह "समुचित सरकार" नहीं थी, बल्कि महाराष्ट्र राज्य "समुचित सरकार" थी, तो आगामी मुकदमेबाज़ी उत्पन्न ही नहीं होती।
- दूसरी ओर, 13 मई, 2022 को उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश में सुधार की मांग करने वाली कोई भी समीक्षा याचिका दायर करने के अभाव में, गुजरात राज्य ने महाराष्ट्र राज्य की शक्ति छीन ली है और परिहार के आक्षेपित आदेश पारित कर दिये हैं, जो न्यायालय के विचार में कानून में अमान्य हैं।
- 13 मई, 2022 का आदेश अमान्य:
- उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 13 मई, 2022 को दिया गया निर्णय अमान्य है क्योंकि उक्त आदेश तात्त्विक तथ्यों को छिपाकर और साथ ही तथ्यों की गलत प्रस्तुति करके मांगा गया था और इसलिये, धोखाधड़ी से उच्चतम न्यायालय द्वारा प्राप्त किया गया था।
- जेल में आत्मसमर्पण:
- उच्चतम न्यायालय ने परिहार के लाभार्थियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया।