अनुच्छेद 361
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है









होम / एडिटोरियल

सांविधानिक विधि

अनुच्छेद 361

    «    »
 23-Jul-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

भारत के उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 361 के अंतर्गत राज्य के राज्यपालों को दी गई संवैधानिक उन्मुक्ति की परिधि को चुनौती देने वाली याचिका पर विचारण करने हेतु सहमति व्यक्त की है। यह मामला राज्यपालों को दी जाने वाली विधिक सुरक्षा को संभावित रूप से पुनः परिभाषित कर सकता है तथा राज्यों के संवैधानिक प्रमुखों के रूप में उनकी भूमिका को प्रभावित कर सकता है। न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल से इनपुट मांगा है तथा इस मामले के महत्त्वपूर्ण निहितार्थों को पहचानते हुए संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किये हैं।

वर्तमान मामले की पृष्ठभूमि एवं न्यायालय का निर्णय क्या है?

पृष्ठभूमि:

  • पश्चिम बंगाल राजभवन की एक पूर्व कर्मचारी ने राज्यपाल के विरुद्ध यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है।
  • शिकायतकर्त्ता ने राज्यपाल एवं उनके विशेष कार्यकारी अधिकारी (OSD) सहित तीन कर्मचारियों के विरुद्ध FIR दर्ज कराई है।
  • राज्यपाल ने अनुच्छेद 361 के अंतर्गत आपराधिक अभियोजन से संवैधानिक उन्मुक्ति का दावा किया है।
  • राज्यपाल ने अपनी उन्मुक्ति के उल्लंघन का हवाला देते हुए मामले की विवेचना कर रहे कोलकाता पुलिस अधिकारियों को हटाने की मांग की।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने OSD एवं राजभवन के अन्य कर्मचारियों के विरुद्ध विवेचना पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी।

निर्णय:

  • उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 361 के अंतर्गत राज्यपालों को दी जाने वाली उन्मुक्ति की परिधि को चुनौती देने वाली याचिका पर विचारण के लिये सहमति व्यक्त की है।
  • पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किये गए हैं।
  • याचिकाकर्त्ता के मामले में भारत संघ को भी पक्षकार बनाने की स्वतंत्रता दी गई है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361 क्या है?

  • अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति, राज्यपालों एवं राजप्रमुखों के संरक्षण से संबंधित है।
  • न्यायिक जाँच से उन्मुक्ति: राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने पद की शक्तियों तथा कर्त्तव्यों के प्रयोग एवं पालन के लिये, या उक्त शक्तियों व कर्त्तव्यों के प्रयोग एवं पालन में उनके द्वारा किये गए कृत्य के लिये किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे।
  • राष्ट्रपति के महाभियोग का अपवाद: उपर्युक्त उन्मुक्ति के होते हुए भी, राष्ट्रपति का आचरण अनुच्छेद 61 के अंतर्गत किसी आरोप की जाँच के लिये संसद के किसी भी सदन द्वारा नियुक्त या नामित किसी भी न्यायालय, अधिकरण या निकाय द्वारा समीक्षा के अधीन हो सकता है।
  • सरकार के विरुद्ध वाद संस्थित करने के अधिकार का संरक्षण: इस अनुच्छेद में किसी भी उपबंध का यह आशय नहीं लगाया जाएगा कि यह किसी व्यक्ति के भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के विरुद्ध उचित कार्यवाही करने के अधिकार को प्रतिबंधित करता है।
  • आपराधिक कार्यवाही से निषेध: अनुच्छेद 361(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
  • गिरफ्तारी से उन्मुक्ति: अनुच्छेद 361(3) में कहा गया है कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास के लिये कोई भी आदेश उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय से निर्गत नहीं किया जाएगा।
  • सिविल कृत्यों के लिये सिविल कार्यवाही: अनुच्छेद 361(4) में कहा गया है कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध कोई भी सिविल कार्यवाही, जिसमें राहत का दावा किया जाता है, उनके द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता में किये गए किसी कृत्य के संबंध में चाहे उनके पदभार ग्रहण करने से पहले या बाद में किसी भी न्यायालय में उनके पदावधि के दौरान तब तक संस्थित नहीं की जाएगी, जब तक कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को, जैसा भी मामला हो, लिखित में सूचना दिये जाने या उनके कार्यालय में छोड़े जाने के पश्चात दो महीने की अवधि समाप्त नहीं हो जाती, जिसमें कहा गया हो:
    • कार्यवाही की प्रकृति
    • कार्यवाही का कारण
    • उस पक्ष का नाम, विवरण एवं निवास स्थान जिसके द्वारा ऐसी कार्यवाही प्रारंभ की जानी है
    • वह राहत जिसका पक्ष दावा करता है
  • अस्थायी दायरा: इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त उन्मुक्ति एवं सुरक्षा राष्ट्रपति या राज्यपाल के कार्यकाल की अवधि तक प्रभावी रहेगी।
  • व्याख्या: अनुच्छेद 361 के उपबंधों की व्याख्या सख्ती से की जाएगी, लेकिन इस तरह से कि वे उच्च संवैधानिक पदों के अनुरूप हों, जिनकी वे रक्षा करना चाहते हैं, उन्मुक्ति की आवश्यकता को लोकतांत्रिक गणराज्य में निहित उत्तरदायित्व के सिद्धांतों के साथ संतुलित किया जाएगा।

राज्यपाल की प्रदत्त उन्मुक्ति की अवधारणा का उद्गम

  • यह उन्मुक्ति लैटिन के मैक्सिम लॉ सिद्धांत "रेक्स नॉन पोटेस्ट पेकारे" (राजा द्वारा कोई दोषपूर्ण कृत्य कारित नहीं होता) से ली गई है, जिसे आधुनिक संवैधानिक शासन के लिये अंगीकार किया गया है।
  • संविधान सभा ने 3 सितंबर, 1949 को प्रारूप अनुच्छेद 302 (अब अनुच्छेद 361) पर चर्चा की। सदस्य एच.वी. कामथ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिये आपराधिक उन्मुक्ति की परिधि एवं अवधि के विषय में प्रासंगिक प्रश्न उठाए।
  • अनुच्छेद 361 (2) राष्ट्रपति या राज्यपालों के विरुद्ध उनके कार्यकाल के दौरान आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ करने या जारी रखने पर रोक लगाता है।
  • संविधान सभा की चर्चाओं के दौरान यह प्रश्न किया गया था कि क्या राष्ट्रपति को प्रथम दृष्टया आपराधिक आचरण में लिप्त पाए जाने पर राज्यपाल को हटाने का अधिकार होना चाहिये, लेकिन इस पर कोई निर्णायक निर्णय नहीं लिया जा सका।
  • हाल के वर्षों में न्यायपालिका ने अनुच्छेद 361(2) की व्याख्या पर स्पष्टीकरण दिया है, विशेष रूप से निम्नलिखित के संबंध में:
    • राज्यपाल के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही की "संस्था" की परिभाषा एवं परिधि।
    • वह युक्तियुक्त क्षण जब अनुच्छेद 361(2) के अंतर्गत संरक्षण लागू होना बंद हो जाता है।
  • यह प्रावधान एक लोकतांत्रिक गणराज्य में उच्च संवैधानिक पदों के निर्बाध निष्पादन की आवश्यकता को विधि के शासन एवं उत्तरदायित्व के सिद्धांतों के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है।

अनुच्छेद 361 से संबंधित ऐतिहासिक मामले

  • राज्य बनाम कल्याण सिंह एवं अन्य (2017): उच्चतम न्यायालय ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कल्याण सिंह की उन्मुक्ति को यथावत बनाए रखा। न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्यपाल पद से हटने के बाद आपराधिक कार्यवाही पुनः प्रारंभ हो जाएगी।
  • व्यापम घोटाला मामला (2015): मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 361(2) राज्य के प्रमुख को दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है। इसने अन्य आरोपियों के विरुद्ध जाँच की अनुमति दी, जबकि राज्यपाल के पद छोड़ने तक उनके नाम को "मिटा" दिया।
  • रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006): उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों को संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिये अनुच्छेद 361(1) के अंतर्गत पूर्ण उन्मुक्ति प्राप्त है, लेकिन न्यायालयों के पास ऐसे कार्यों की वैधता की जाँच करने का अधिकार है, जिसमें दुर्भावना के आधार पर किये गए कृत्य भी निहित हैं।
  • उन्मुक्ति की परिधि: ये मामले सामूहिक रूप से स्थापित करते हैं कि:
    • वर्तमान राज्यपाल के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ नहीं की जा सकती या जारी नहीं रखी जा सकती।
    • अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध जाँच की जा सकती है, लेकिन राज्यपाल का नाम पद पर रहते हुए ही हटाया जाना चाहिये।
    • यह उन्मुक्ति अस्थायी है, जो राज्यपाल के पद छोड़ने पर समाप्त हो जाती है।
    • न्यायालय राज्यपाल के कार्यों की वैधता एवं दुराशय के लिये समीक्षा कर सकते हैं, भले ही वे राज्यपाल पर सीधे वाद संस्थित न कर सकें।
  • न्यायशास्त्र, राज्यपालीय उन्मुक्ति की आवश्यकता को न्यायिक निगरानी एवं संवैधानिक शासन के सिद्धांतों के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है।

राष्ट्रपति की उन्मुक्ति के विषय के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्थिति क्या है?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • निक्सन बनाम फिट्ज़गेराल्ड (1982): अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपतियों को आधिकारिक कार्यों के लिये नागरिक क्षति दायित्व से पूर्ण प्रतिरक्षा प्राप्त है।
    • क्लिंटन बनाम जोन्स (1997): न्यायालय ने निर्णय दिया कि वर्तमान राष्ट्रपतियों को उनके आधिकारिक कर्त्तव्यों से असंबंधित कार्यों के लिये सिविल वाद से उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है।
  • फ़्रांस:
    • 1999 में फ्राँसीसी संवैधानिक परिषद ने निर्णय दिया था कि वर्तमान राष्ट्रपतियों को अभियोजन से उन्मुक्ति प्राप्त है, लेकिन पद त्याग के बाद भी उन पर वाद संस्थित किया जा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC):
    • रोम संविधि, राज्य प्रमुख सहित आधिकारिक क्षमता को, अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के लिये अभियोजन में बाधा के रूप में मान्यता नहीं देती है।
  • यूनाइटेड किंगडम:
    • जबकि सम्राट को संप्रभु उन्मुक्ति के सिद्धांत के अंतर्गत पूर्ण उन्मुक्ति प्राप्त है, प्रधानमंत्री को ऐसी व्यापक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। आधिकारिक कृत्य के लिये पूर्ण उन्मुक्ति है, लेकिन अनौपचारिक कृत्य के लिये नहीं।
  • इजरायल:
    • इज़रायली सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में निर्णय दिया था कि किसी मौजूदा प्रधानमंत्री पर आपराधिक कृत्यों के लिये वाद संस्थित किया जा सकता है।
  • ब्राज़ील:
    • ब्राज़ील के सर्वोच्च न्यायालय ने 2021 में निर्णय दिया कि पद ग्रहण करने से पहले किये गए कृत्यों के लिये वर्तमान राष्ट्रपतियों की जाँच की जा सकती है।

निष्कर्ष:

अनुच्छेद 361 के अंतर्गत राज्यपालों की उन्मुक्ति की परिधि पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय भारत में राज्यपालीय संरक्षण एवं उत्तरदायित्व के मध्य संतुलन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। जबकि अनुच्छेद 361 राज्यपालों को व्यापक उन्मुक्ति प्रदान करता है, हाल ही में न्यायिक निर्वचनों ने इसकी सीमाओं को परिभाषित करने का प्रयास किया है, विशेषकर कथित आपराधिक आचरण के मामलों में।