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सिविल कानून
भारतीय न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
« »29-May-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
भारत की न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे वाद प्रबंधन, विधिक अनुसंधान एवं दस्तावेज़ विश्लेषण में परिवर्तनकारी संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। भारतीय न्यायालयों ने विभिन्न विधिक कार्यों के लिये ChatGPT को अपनाया है, हालाँकि विधिक ढाँचे के भीतर ऐसी AI प्रौद्योगिकियों की स्वीकृति एवं उपयोग में उच्च न्यायालयों के दृष्टिकोणों में भिन्नता है।
- मणिपुर उच्च न्यायालय ने एक मामले पर निर्णय देते समय अतिरिक्त शोध के लिये गूगल और ChatGPT 5 पर अपनी निर्भरता का उल्लेख किया, जिससे भारतीय न्यायालयों में AI के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर प्रकाश पड़ा, हालाँकि AI एकीकरण के संबंध में वैश्विक न्यायिक दृष्टिकोणों के अनुरूप सतर्कता का भाव भी व्याप्त है।
- यह निर्णय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की अग्रणी पहल के उपरांत लिया गया है, जिसने विगत वर्ष विधिक अनुसंधान करने के लिये इस अभिनव दृष्टिकोण को क्रियान्वित किया था।
मोहम्मद जाकिर हुसैन बनाम मणिपुर राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- 36 वर्षीय जाकिर हुसैन को जनवरी 2021 में ग्राम रक्षा बल (VDF) से पदच्युत कर दिया गया था, जब उनकी ड्यूटी के दौरान एक कथित अपराधी भाग गया था।
- हुसैन ने मणिपुर उच्च न्यायालय में इस पद से हटाने के निर्णय को चुनौती दी; न्यायमूर्ति ए. गुणेश्वर शर्मा ने पुलिस को पदच्युत करने की प्रक्रिया का विवरण देने का निर्देश दिया।
- पुलिस द्वारा प्रस्तुत शपथ-पत्र में स्पष्टता का अभाव था तथा उसमें VDF के विषय में स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था; अतः न्यायालय ने आगे अनुसंधान के लिये ChatGPT की सहायता ली।
- ChatGPT ने खुलासा किया कि VDF में स्थानीय स्वयंसेवक शामिल हैं, जिन्हें खतरों से बचाव के लिये प्रशिक्षित किया गया है; न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने निर्णय में इसका उल्लेख किया।
- हुसैन की पद समाप्ति को रद्द कर दिया गया; न्यायालय ने वर्ष 2022 के मणिपुर गृह विभाग के ज्ञापन का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि पदच्युत कर्मियों को कथित आरोपों को स्पष्ट करने का अवसर दिया जाना चाहिये, यह अवसर हुसैन को नहीं दिया गया।
विधिक प्रक्रिया में ChatGPT के उपयोग के प्रति विभिन्न उच्च न्यायालयों का दृष्टिकोण किस प्रकार भिन्न है?
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय:
- मार्च 2023: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा ने मृत्यु कारित करने वाले हमले के आरोपी जसविंदर सिंह को ज़मानत देने से मना करने के लिये ChatGPT का इस्तेमाल किया।
- न्यायमूर्ति चिटकारा ने क्रूरता से हमले के मामलों में ज़मानत के संबंध में, न्यायशास्त्र पर ChatGPT की सहायता ली।
- ChatGPT की प्रतिक्रिया ने न्यायाधीशों के सतर्क दृष्टिकोण को प्रकट किया, जिससे ज़मानत देने से इनकार किया गया अथवा उच्च ज़मानत राशि निर्धारित की गई।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ChatGPT की सहायता लेना व्यापक विधिक संदर्भ के लिये था, न कि मामले के लिये कोई विशिष्ट राय लेने के लिये।
- यह उदाहरण न्यायिक प्रक्रिया को तर्कसंगत बनाने के लिये विधिक अनुसंधान हेतु, उच्च न्यायालय द्वारा AI के उपयोग को दर्शाता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय:
- अगस्त 2023: दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने ट्रेडमार्क मामले में क्रिश्चियन लुबोटिन के पक्ष में निर्णय सुनाया।
- लुबोटिन के विधिक पक्ष ने ChatGPT द्वारा उत्पन्न प्रतिक्रियाओं का उपयोग ब्रांड की प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करने के लिये किया, जिसमें "रेड सोल" के साथ "स्पाइक शू स्टाइल" शामिल है, जिसकी नकल, शुटिक नामक एक अन्य ब्रांड द्वारा की जा रही है।
- हालाँकि, न्यायमूर्ति सिंह ने न्यायालय में विधिक या तथ्यात्मक मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये ChatGPT के उपयोग को अस्वीकार कर दिया और इसमें संभावित अशुद्धियों, काल्पनिक निर्णय विधियों तथा AI चैटबॉट्स द्वारा उत्पन्न कल्पनाशील डेटा के विषय में चिंता व्यक्त की।
- यह मामला विधिक कार्यवाही में AI एकीकरण के प्रति दिल्ली उच्च न्यायालय के सतर्क दृष्टिकोण का उदाहरण है, जो निर्णयों में AI-जनित सामग्री की तुलना में मानवीय निर्णय पर महत्त्व देता है।
भारत के बाहर न्यायिक क्षेत्राधिकारों की न्यायिक कार्यवाहियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वर्तमान विधिक स्थिति क्या है?
- वर्ष 2023 में, मैनहट्टन के एक संघीय न्यायाधीश ने ChatGPT द्वारा उत्पन्न काल्पनिक विधिक शोध प्रस्तुत करने के लिये एक अधिवक्ता पर 5,000 डॉलर का अर्थदण्ड लगाया।
- अधिवक्ता ने कोलंबियाई एयरलाइन एविएंका से संबंधित व्यक्तिगत क्षति के वाद में "वर्गीस बनाम चाइना सदर्न एयरलाइंस" तथा "शाबून बनाम इजिप्ट एयर" जैसे काल्पनिक मामलों को प्रस्तुत किया।
- इसी वर्ष दिसंबर में, यूके की न्यायपालिका ने न्यायालयों में AI पर दिशा-निर्देश जारी किये।
- जबकि न्यायाधीशों को मूलभूत कार्यों जैसे कि पाठों का सारांश तैयार करना, प्रस्तुतियाँ तैयार करना, अथवा ईमेल का मसौदा तैयार करने के लिये ChatGPT का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी, उन्हें विधिक अनुसंधान अथवा विश्लेषण के लिये AI का उपयोग करने के विरुद्ध चेतावनी दी गई थी।
- ये उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में न्यायिक कार्यवाहियों में AI-जनित सामग्री के उपयोग से संबंधित विधिक तथा नैतिक विचारों को रेखांकित करते हैं।
- अभी तक भारत में न्यायिक कार्यवाहियों में ChatGPT जैसे जनरेटिव AI के उपयोग के संबंध में कोई विशिष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के उपयोग के उदाहरण क्या हैं?
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न्यायिक प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने की संभावना और व्यापकता क्या है?
- अनुसंधान उपकरण: AI वर्चुअल सहायक, निर्णय विधियों के विशाल डेटा को संसाधित करके विधिक अनुसंधान में तीव्रता लाते हैं तथा अधिवक्ताओं एवं शोधकर्त्ताओं को कुशल सूचना पुनर्प्राप्ति में सहायता करते हैं।
- तंत्र संवर्धन: UK की पहलों के समान न्यायालय प्रणालियाँ AI उन्नयन से लाभान्वित हो सकती हैं, जिससे स्वचालन और सुव्यवस्थित कार्यप्रवाह के माध्यम से वाद प्रबंधन, संगठन एवं प्रशासनिक कार्यों में वृद्धि होगी।
- अनुवाद: SUVAS (सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवाद सॉफ्टवेयर) जैसे उन्नत AI अनुवाद उपकरण न्यायिक प्रणाली में भाषा संबंधी बाधाओं को समाप्त करते हैं, तथा विधिक सामग्री के अनुवाद की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे समानता, पारदर्शिता एवं न्याय तक व्यापक पहुँच को बढ़ावा मिलता है।
- AI पूर्वानुमान: पूर्वानुमानित AIअनुप्रयोग वादों के रुझानों एवं दण्ड का विश्लेषण करते हैं, तथा न्यायिक प्रणालियों के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को बढ़ाते हैं। हालाँकि, नैतिक चिंताओं एवं एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रहों को संबोधित करते हुए निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये, AI उत्तरदायी उपयोग सर्वोपरि है।
न्यायिक प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को अपनाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सटीकता: AI तकनीकें अचूक नहीं हैं, जैसा कि खुद तकनीकी कंपनियों ने माना है। उदाहरण के लिये, OpenAI अपने उपयोग की शर्तों में इस बात पर प्रकाश डालता है कि परिणाम, सदैव सटीक नहीं हो सकता है तथा सत्यता अथवा व्यावसायिक सलाह के लिये एकमात्र स्रोत के रूप में इस पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिये।
- AI तंत्र के पूर्वाग्रह तथा जोखिम: AI तंत्रों में निहित पूर्वाग्रह महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करते हैं, विशेषतः अपराध मानचित्रण तथा भविष्यवाणी जैसे क्षेत्रों में। अमेरिका में किये गए अध्ययनों से नस्लीय पहचान करने एवं अल्पसंख्यकों को असंगत रूप से निशाना बनाने का पता चला है। विधिक कार्यों के लिये AI पर निर्भरता समानता, न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों को चुनौती दे सकती है।
- अधिकारों की सुरक्षा: विधिक प्रणालियों में AI को लागू करते समय जीवन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा, गोपनीयता, नैतिकता एवं संरक्षण के विषय में अस्पष्टताएँ एवं चुनौतियाँ बनी रहती हैं। ये जटिलताएँ AI एकीकरण में सावधानीपूर्वक विचार एवं नैतिक निरीक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
निष्कर्ष:
यद्यपि भारत की न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनाने से न्याय तक पहुँच एवं दक्षता के लिये आशाजनक अवसर सामने आए हैं, परंतु इससे महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं। AI के उपयोग के प्रति भारतीय उच्च न्यायालयों के अलग-अलग दृष्टिकोण स्पष्ट दिशा-निर्देशों और सतर्क कार्यान्वयन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका और ब्रिटेन के हालिया मामलों ने न्यायिक कार्यवाहियों में AI -जनित सामग्री से जुड़ी कानूनी तथा नैतिक जटिलताओं को उजागर किया है। चूँकि भारत अपनी न्यायिक प्रणाली में AI को अपनाने की संभावना और व्यापकता पर विचार कर रहा है, अतः इसकी सटीकता सुनिश्चित करना, पूर्वाग्रह को कम करना एवं मौलिक अधिकारों की रक्षा करना AI प्रौद्योगिकी के संतुलित तथा प्रभावी एकीकरण के लिये सर्वोपरि हैं।